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Aniruddh Singh Thakur

Action Inspirational Thriller

3  

Aniruddh Singh Thakur

Action Inspirational Thriller

शहीद: गॉन, बट नॉट फॉरगोटन - १

शहीद: गॉन, बट नॉट फॉरगोटन - १

10 mins
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भाग १

वो रात थी। गर्मियों के दिन थे लेकिन अंधेरा बहुत था और ऊपर से आज बरसात जैसा मौसम था, जिस कारण बादल छाए हुए थे। धां धां धां धां... गोलियों की आवाजें गूंज रही थी। क्रॉस फायरिंग चल रही थी। जिस तरीके और स्पीड से फायरिंग हो रही थी, साफ पता चल रहा था कि दोनों तरफ से ट्रेंड लोग थे व कई तरह के हथियार थे। तभी एक बिजली सी कड़की जिससे वहाँ कुछ प्रकाश हो गया और‌ उस क्षेत्र का धुंधला सा दृश्य दिखाई दे गया तब पता चला कि यह इलाका ऐसा है जिसके आसपास कुछ छोटे-बड़े पेड़ उगे हुए हैं। फायरिंग एक ओर पेड़ों और कुछ घरों की ओट से हो रही थी तो दूसरी ओर सामने बने एक लकड़ियों और कुछ पत्थरों से बनें घर में से हो रही थी। नाइट लैंप भी जल रहा था लेकिन उसका उजाला इतना नहीं था कि वो वहाँ के अंधेरे को मिटा सके या यूं कहें कि उसका उजाला नाम मात्र का ही था। लेकिन जो घर के बाहर थे उन्हें शायद अंधेरे का अच्छा खासा अनुभव था, जो उस अंधेरे में भी बिना किसी चीज से टकराए हुए अपना काम बखूबी कर रहे थे। दोनों और आधुनिक हथियार; मशीन गन, रिवॉल्वर, राइफल्स और हैंड ग्रेनेड भी थे, जिनका अंदाजा उनके चलने से ही लग रहा था। लेकिन हैंड ग्रेनेड सिर्फ घर में से ही फेंके जा रहे थे। बाहर के लोग अपनी-अपनी पोजीशन बदल बदल कर फायरिंग कर रहे थे। फायरिंग जारी ही थी कि ऊपर से एक हैंड ग्रेनेड फेंका गया जिसे नीचे के एक आदमी ने देख लिया और अपने हाथ में पकड़ी राइफल से शूट कर दिया और वो वहीं बीच में ही फट गया और ऊपर ही धमाका हो गया। उसके धमाके से आस-पास बहुत जोर का उजाला हो गया तो वहाँ की स्थिति का साफ पता चल गया कि यह एक आर्मी ऑपरेशन चल रहा था। जिसमें बाहर के लोग आर्मी के थे व अंदर कुछ आतंकी थे। लेकिन सब फौजियों ने अपने-आपको पूरी तरह से कवर कर रखा था जिससे कोई भी पहचान में नहीं आ रहा था पर फिर भी सबको आपस में पता था कि यहाँ कौन-सा व्यक्ति कौन है। गोलियों पर गोलियां चल रही थी। उनकी आवाजों से पूरा क्षेत्र गुंजायमान हो चुका था। दोनों तरफ से पोजीशन बदल बदल कर फायरिंग हो रही थी। ऊपर से किसी आतंकी ने एक गोली चलाई जो एक फौजी के बाएं कंधे के ठीक पास से निकल गई। अगर उसे उसके साथी ने खींचा न होता तो वो गोली उसके सीने में धंस चुकी होती। दूसरे तरफ से एक फौजी ने गोली चलाई जो सीधे उस आतंकवादी के माथे में बीचों-बीच लगी और वो वहीं से नीचे लुढ़क गया। एक फौजी ने अपने पास के साथी को इशारा किया कि वो अंदर जा रहा है तो उसे कवर फायर दी जाए जिससे वो अंदर जा सके और पीछे से वो भी आ जाए। उसने अपने सभी साथियों को इशारा किया और सब लोग आपस में समझाते हुए उन दोनों को कवर देने लगे। पहले वाला चुपचाप अंदर जाने लगा और दूसरे फौजी को वहीं पर रुककर रहने को इशारे में कहा कि जब तक वो उसे इशारा न कर दें वह यहीं रहे। उसने देखा तो एक पहाड़ी का हिस्सा उस घर की बालकनी तक लगता था। बालकनी तक पहुंचने के लिए उस पहाड़ी की चट्टान पर सावधानी से चढ़ते हुए पहुंचा जा सकता था। वहाँ से एक आतंकी छिपकर फायरिंग कर रहा था। वो चुपके से उस पर चढ़ गया और बालकनी में से होते हुए अंदर चला गया और जो बालकनी के पास का जो आतंकी था, उसे वहीं पर शूट कर दिया और एक इशारा किया, जिससे दूसरा भी आने लगा लेकिन वो दरवाजे से आया। अब तक तीन आतंकी ढेर हो चुके थे और चार और बचे थे। फायरिंग अब भी चल रही थी पर अब तक कुछ जवान अंदर आकर पोजिशन ले चुके थे व कुछ बाहर ही थे। पहले वाला फौजी सब ओर से सतर्क रहते हुए आगे बढ़ रहा था। वो अब दूसरे गेट के पास पहुंच चुका था और वहीं से छिपकर एक आतंकी गोली चला रहा था। उस आतंकी को संभलने का मौका दिए बिना ही नरक में भेज दिया। गेट से आने वाले दूसरे फौजी ने एक आतंकी के घुटने पर गोली चला दी और दूसरी गोली कंधे पर; जिससे वो घायल हो गया और जिंदा ही पकड़ लिया गया। बाकी के दो में से एक मारा गया और एक अंदर छिप गया। अंदर कुछ सिविलियन को बंधक बनाकर रखा गया था। जिनमें दो औरतें थी, दोनों बुरका पहने थी और एक बूढ़ा और एक अधेड़ उम्र का आदमी और दो बारह व पंद्रह साल के बच्चे। वे लोग एक कोने में दुबके पड़े थे। उस आतंकी ने उन में से एक बच्चे को अपनी रायफल के निशाने पर रखते हुए दूसरे फौजी से कहा - "खबरदार! जो एक भी कदम आगे बढ़ाया तो! इन लोगों को (सिविलियन्स की तरफ इशारा करते हुए) जान से मार दूंगा। अब भी वक्त है, लौट जाओ। हम लोग तुम काफिरों को मुआफ (माफ) कर देंगे।" यह सुनकर वे लोग घबरा गए और बच्चे रोने लगे।


फौजी - "देखो! तुम उन लोगों को कुछ नहीं करोगे। मैं रुक जाता हूँ। तुम अपने आप को हमारे हवाले कर देते हो... तो.. तुम्हें कम सजा मिलेगी।"


वो बच्चा धीमी-धीमी आवाज में रो रहा था तो उस टेरेरिस्ट ने उस बच्चे को एक लात मारकर कहा - "चुप! वरना तेरी खोपड़ी... सबसे पहले उड़ाऊंगा!"


फौजी - "बच्चे को डराता है... नामर्द!"

"नामर्द तो तुम हो... काफिरों! हम तुमसे कश्मीर लेकर रहेंगे!"

"कश्मीर तो क्या, तुम यहाँ की एक कण मिट्टी नहीं ले जा सकते।"

"हम पूरा कश्मीर लेंगे। अल्लाह के खौफ से डर नामुराद, वो तुझे रहम बख्शेगा!"


फौजी उसे अपनी ही बातों में उलझाए रखता है और चुपके से पहले फौजी को इशारा करता है जिससे कुछ फौजी तो दूसरे के पीछे ही खड़े रहते हैं ताकि उसे शक न हो और वो पहला फौजी जो अब तक अंदर नहीं आया था, वो एक ओर चला जाता है। लकड़ी के पटियों से बने घर में कुछ छेद भी होते हैं जो कभी-कभार ऐसी सिचुएशन में बहुत काम आ जाते हैं। ये छेद आज उन्हें बचाने में काम आए। उसने उन्हीं में से एक छेद पर अपनी रिवॉल्वर को सेट किया और ट्रिगर दबा कर एक गोली चला दी जो सीधे उस आतंकी की बाजू में लगी, जिसने बच्चों और उसके परिवार को बंधक बना रखा था। उसके हाथ की रायफल छूट गई। बस! दूसरे फौजी के लिए इतना समय पर्याप्त था। उसने इतनी देर में उस आतंकी के घुटने पर अपनी बंदूक के बट से एक इतना जोरदार वार किया कि उसका वो घुटना टूट गया। वो आतंकी कानफाड़ू चीख से 'भौंकते' हुए वहीं घुटना पकड़ कर बैठ गया। उसने इशारा किया और दो फौजियों ने उसे भी पकड़ लिया। दो फौजियों ने उन लोगों को समझाया और कहा कि - "आप लोग अब बिल्कुल सुरक्षित है। चिंता की कोई बात नहीं।"


दो फौजी उन्हें संभाल रहे थे और दो उस घर में छानबीन कर रहे थे। पीछे से वो पहला फौजी आया और उसने उन दोनों आतंकियों के चेहरों को ध्यान से देखा जिनके भावों से लग रहा था कि उनकी दूसरी चाल अभी बाकी है। वे लोग उन घरवालों को देख रहे थे। उसने नोटिस किया कि जो अधेड़ उम्र का आदमी जो था, वो डरने का बस अभिनय कर रहा है।


उन दो आतंकियों में से एक ने बोला - "तुम काफिर... हमारे मंसूबों पर पानी नहीं फेर सकते। तुम क्या समझते हो हम शिकस्त खा गए हैं? हम खुदा के सिवा किसी से न तो खौफ खाते हैं... और न ही शिकस्त। उसके लिए अपनी सौ जानें कुर्बान! हम अगर इस जमीं को फतह करते हैं तो गाजी कहलाएंगे... और फतह नहीं कर पाते और जिहाद के लिए लड़ते हुए मरें... तो शहीद कहलाएंगे और... अल्लाह हमें जन्नत बख्शेगा! लेकिन तुम्हें वो जहन्नुम में सज़ा देगा नामुरादों... क्योंकि तुमने अल्लाह के पाक काम में दखल किया है।"

दूसरा फौजी जो अब तक चुप होकर सुन रहा था, उसने एक तमाचा खींचकर उसे मारा और कहा -"साले! तुझे यह अल्लाह का नेक काम लगता है? ये लोग जो बैठे हैं.. वो भी तेरी ही तरह मुसलमान है न! फिर एक मुसलमान होकर दूसरे मुसलमान पर ऐसे जुल्म ढाने को तू अच्छा कर्म कहता है? इससे अल्लाह खुश हो जाएगा?"

"ये लोग सच्चे मुसलमान नहीं हैं... क्योंकि यह लोग हिंदोस्ता को अपना मादर-ए-वतन (मातृभूमि) कहते हैं और संविधान को मानते हैं.. जबकि हम केवल नबी के उसूलों पर चलते हैं, कुरान के दिखाई राह पर चलते हैं।"


उनमें से एक बच्चा बोला - "हमें तुमसे यह सर्टिफिकेट लेने की जरूरत नहीं है... कि हम कौन हैं! हम सब मुस्लिम बाद में है, पहले हिंदुस्तानी हैं। तुम लोग क्यों कुरान को बदनाम करने में लगे हो? हम भी मुस्लिम है... पर हम सब हिन्दुस्तानी थे, हिन्दुस्तानी है... और हमेशा हिंदुस्तानी ही रहेंगे!"


आतंकी चिल्लाते हुए - "चुप कर... खबीज़ की औल़ाद! तू उस के (ऊपर की ओर अंगुलि करते हुए) हुक्म की नाफरमानी करता है!"


उसके पास खड़े फौजी ने दो तीन लातें जड़ दी। फौजी -"बच्चे को धमका रहा है?"

वो आतंकी चुप हो गया। बूढ़े आदमी ने कहा - "साहब! बड़ी गर्मी लग रही है। अगर आपकी इजाजत हो तो.. कुछ देर पंखा चला लें? जिससे हमें थोड़ी राहत मिल जाए।"

पहला फौजी - "हूं! चला लो।"

"शुक्रिया, साहब।"


पहला फौजी, जो बिल्कुल चुपचाप था लेकिन सब तरफ अपनी पैनी नजरों को घुमा रहा था। उसने पंखे की तरफ ध्यान दिया और सोचा कि ऐसी गर्मी में भी इन आतंकियों ने पंखा क्यों बंद किया हुआ था? आखिर इन्हें भी तो गर्मी लगती ही होगी न? कुछ तो बात है। उसने गौर से ध्यान दिया तो उसकी आँखें पंखे को देखटर फटी की फटी रह गई। लेकिन तब तक वो बूढ़ा आदमी पंखा चलाने के लिए उसके स्विच बोर्ड तक पहुंच चुका था। जैसे ही उस बूढ़े ने पंखे का स्विच ऑन करना चाहा तो उसने आव देखा न ताव और बूढ़े की तरफ एक गोली चला दी।


सब तरफ सन्नाटा फैल गया। वो गोली उस बूढ़े के हाथ के पास से निकल गई परंतु इतने निशाने पर चलाई थी कि गोली ने उसके शरीर को छुआ भी नहीं पर वो बूढ़ा पीछे हट गया। सब लोग सन्न रह गए। बूढ़े के हाथ रुक गए और वो पीछे को लड़खड़ा गया। पंखा चालू नहीं कर पाया। दूसरे फौजी ने एक फौजी को इशारा किया तो वो दोनों बच्चों को बाहर ले गया।


"जनाब! आप पागल हो गए हैं क्या? आपके होश तो ठिकाने हैं न? अभी वो गोली... बड़े अब्बू को लग जाती तो?" - एक महिला अपना बुरका हटाते हुए गुस्से में बोली। जैसे ही उसने अपना बुरका उतारा, तो पता चला कि वो एक लड़की थी। जिसकी उम्र यही कोई 18-20 होगी।


दूसरा फौजी भी बोला - "यह क्या कर रहा था भाई?" 


पहला फौजी कुछ नहीं बोला और चुपचाप एक ओर जाने लगा। तो वो लड़की फिर से बोली - "हमने कुछ कहा है, जनाब? जवाब दीजिए, कहाँ चल दिए?"


दूसरा फौजी - "देखिए महोतरमा..."

"हमारा नाम... रुखसार है।" - वो उससे भी तमतमाती हुई बोली।

"जो भी हो, लेकिन आप चुप रहिए। हम अपने दोस्त से बात कर रहे हैं न?"

"अरे ऐसे कैसे चुप रहें? वो हमारे बड़े अब्बू पर गोली लग जाती तब?"

"लगी तो नहीं है न? जब लग जाए तब बात कीजिएगा!"

"लेकिन लग जाती तो?"

"अगर मेरे साथी को उन्हें ही गोली मारनी होती... तो अब तक लग चुकी होती... क्योंकि वो एक शार्प शूटर है।"

"फिर भी आप लोग हम पर ऐसे गोली नहीं चला सकते। यह कुछ भी अपनी मनमा...."


इतने में पहला फौजी जो गोली चलाकर एक खिड़की के पास खड़ा था, ने कुछ देखा और पीछे पलट कर एक गोली और चला दी जो सीधे उस अधेड़ आदमी को लगी। गोली सिर के पार हो जाती है। कुछ क्षण छटपटाकर वो वहीं ढेर हो जाता है। रुखसार के शब्द उसके मुंह में ही रह जाते हैं।

सब लोग फिर से सन्न रह जाते हैं। इस बार रुखसार ने जब पीछे देखा तो उसका अब्बू (अधेड़ आदमी) जमीन पर चित लेटा था, निष्प्राण होकर।


क्रमशः

सिविलियन को गोली क्यों मारी?

उस बूढ़े पर गोली क्यों चलाई थी?

रुखसार के अब्बू को क्यों मारा?

अब ले लोग फौजियों को क्या-क्या कहेंगे?

जानने के लिए मुझे फॉलो करें ताकी अगले भाग का नोटिफिकेशन आप तक जल्दी पहुंच जाए और समीक्षा भी जरूर करें।




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