सेक्टर 71 का खूनी चौराहा

सेक्टर 71 का खूनी चौराहा

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सर्दियों की रात के करीब 11 बजे का वक्त था। कॉल सेंटर की ड्यूटी से कर्मा घर के लिए निकल पड़ा। फिल्मी गानों तक में दिल्ली की सर्दी का डंका है, यमुना पार कर यूपी की तरफ नोएडा पड़ता है, सो वहां की सर्दी दिल्ली से बढ़कर ही रहती है। उस पर मोटरसाइकिल की सवारी कर्मा को मुफ्त में बर्फीली हवाओं का अहसास करा रही थी।

कुछ दूर निकल 

सुनसान सड़क उस T प्वॉइंट पर दम तोड़ती थी, जहां से मुख्य सड़क के  सकती है, इसलिए मेन सड़क छोड़ आबादी के बीच वाला रास्ता पकड़ता था। आज भी सफर वहीं से जारी रहा।

सिर पर रोशनी आ जाए तो खुद की परछाई गायब सी हो जाती है, लेकिन कॉल सेंटर की जॉब का फ्रस्ट्रेशन कर्मा के दिमाग में परमानेंट बस गया था। अंधेरी सर्द रात में भी वही भड़ास हमजोली थी। ठिकाने पर पहुंचकर 2 लंपट दोस्तों संग दुनिया को गाली देते वक्त कुछ राहत महसूस होती थी।

सेकेंड हैंड बाइक बाइकसवार शॉर्ट कट से होता हुआ साईं मंदिर के पास फिर मुख्य सड़क पर जा चढ़ा। इस जगह पहुंचने पर ऑफिस वाली फीलिंग निकल जाती और अपने इलाके का अहसास बढ़ जाता।

बढ़ते 

कर्मा ने नजरों से 30-40 मीटर दूर मौजूद चौराहे के पार झाकने की कोशिश की। बाकी दिन उस जगह पुलिस पीसीआर गाड़ी लाल बत्ती चमकाती खड़ी रहती  सड़क पार कर घास में अंधेरे की तरफ निकल गया। कुछ देर बात हुई, भीड़ फिर गुस्सा होने लगी।

पुलिसवाला लौटने पर बदला हुआ था। भीड़ के सामने तो नतमस्तक था, लेकिन  आए। बोले भईया, कोई रास्ता निकालो। छह फुट का कर्मा गुस्से से भरकर बोला- मैं घंटा रास्ता निकालूं। हरामी लौंडों को सड़क पर कोहराम मचाने के लिए छोड़ देते हो। हॉस्पीटल में पड़ा लड़का मर गया, तो ये सारा चालूपना निकल जाएगा। फिर ना तेरा फोन काम आएगा, ना तेरा पहलवान।

45-50 साल के पेटू आदमी ने कर्मा के सामने बेहद दबी आवाज में कहा कि उसका नाम  

अगले दिन फिर मक्कार कॉल सेंटर की जॉब पर जाना था, बिना कुछ खाए कर्मा बिस्तर पर पड़ गया।

सुबह जाते वक्त और रात को लौटते हुए कर्मा सर्फाबाद में मकान के पास खड़े होने वाली ऑटो की कतार पर नजर दौड़ाता था। नजरें हरिओम यादव को खोजती थी, लेकिन वो कभी दिखाई नहीं दिया।

छुट्टी वाले एक रोज कर्मा दुकान से कुछ खरीद रहा था, पीछे से आकर दुकानदार की तरफ एक आदमी ने हाथ आगे बढ़ा सिग्रेट मांगी। कर्मा ने बिना देखे नजरअंदाज किया, लेकिन धुंआ हवा में छोड़ते हुए आदमी ने कर्मा को पहचान लिया। भईया उस दिन आपने बड़ी मदद की। हम तो खोज रहे थे, आप कहां रहते हैं? कर्मा ने ध्यान से देखा- वो हरिओम यादव ही था।

कर्मा कुछ बोलता उससे पहले धुंए से भरी यादव की चोंच लगातार चालू थी। कहा- कभी मैनपुरी से अकेला आया था, आज इतने ऑटो का मालिक है। अपने गई तो सिविल अस्पताल वालों ने दिल्ली के AIIMS फिंकवा दिया. एम्स भी लावारिस का कहां ध्यान रखे? पड़ा पड़ा मर गया। उसके घरवालों का भी कई रोज बाद पता चला। आए और डेड बॉडी उठा ले गए। यहीं कहीं कंपनी में मजदूर था बेचारा! बेसहारा का दुनिया में कोई नहीं. बोलते-बोलते हरिओम ने सिग्रेट को आखिर तक चूस लिया और कर्मा को मिलते रहने को बोलकर आगे बढ चला।

झटके से जागे कर्मा के मन में आया कि हरिओम के मोटे पेट में दबाकर लात मारे। ऐसी लात कि मुंह से पेट की अंतड़ियां बाहर निकल जाएं। लेकिन न मुंह से शब्द निकले और न शरीर हिला। बस जाते हरिओम को देखता रहा.

चंद रोज 


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