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parm singh

Comedy Drama

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parm singh

Comedy Drama

साइकिल

साइकिल

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यह तब की बात है जब मैं 8वी कक्षा का छात्र हुआ करता था। मुझसे छोटे बच्चे साइकिल पर स्कूल जाया करते थे।और एक हम मस्त हाथी जैसे पैदल जाते ऐसा भी नही था कि साइकिल लेना हमारे बस की बात नही था। असल में मैने कभी साइकिल सीखने पर ध्यान ही नही दिया। शरीरिक क्ष्मता से भी मैं भीम के नाखून में फंसी मैल जैसा दुबला पतला था,तो साइकिल से गिर जाने से हड्डी वड्डी टूटने का खतरा भी मन में डर के रूप में कुंडली मारकर बैठा हुआ था। बहुत बार मेरे दोस्त मेरा मजाक उड़ाया करते की देखो गधे जितना बड़ा हो गया साइकिल चलाना नही आता इसको। लेकिन हम किसी की परवाह नही किया करते थे बस किसी ने मुंह पर बोला तो उसको जी खोलकर गालियों का प्रसाद देकर भेजते। सब अच्छा चल रहा था मनमाफिक काम करते ससुरा स्कूल भी कौन सा दो चार मील दूर था।

वह तो बस घर से आधा किलोमीटर की दूरी पर पड़ता था। साइकिल वालों से पहले पहुंचने का रास्ता भी हमने ढूंढ रखा था। कभी किसी से ना लिफ्ट ली ना किसी ने कभी लिफ्ट दी।हमारी एक नानी (मॉम की मौसी जी, हम भी उसी शहर में रहने आए थे उसी गली में यहा पर मेरी वह नानी नाना परिवार के साथ रहते थे)ने एक बार एक काम बोल दिया शहर जाना था तो उन्होने ने जानबूझकर कहा कि साइकिल ले जा अपने मामा की हालांकि वह जानती थी कि मुझे साइकिल चलाना नही आता। फिर भी बोल दिया मैने कहा मुझे साइकिल नही आती तो ताना मारते हुए बोले शादी के बाद पत्नी को कंधो पर उठाकर शहर ले जाया करेगा क्या। गधे जितना बड़ा हो गया एक साइकिल चलाना नही सीख पाया। अक्ल कम है तेरी बादाम खाया कर यह पचास रूपये ले जा बादाम लेकर खा लेना। मुझे इस बात की बहुत बहुत शर्म आई।

तब मैने साइकिल सीखने की ठान ली मेरे एक दोस्त की साइकिल तब छोटे साइज वाली थी उस पर बैठकर शुरूआत कर दी। किंतु पैंडल मारना नही आ रहा था तो एक ऊँची ढलान से नीचे की तरफ साइकिल की सीट पर बैठकर साइकिल ठेल ली, किंतु बीच रास्ते में हैंडल ठीक से संभाल ना पाने की वजह से धडाम से गिरा। घुटने छिल गए साथ में एक हाथ भी जब खून बहने लगा तो रोते हुए घर चले गया। किंतु साइकिल चलाना सीखने का जुनून सवार हो गया। दो दिन बाद फिर से लगोट कस लिया फिर से ढलान पर गया साइकिल पर बैठा और ठेल दिया, किंतु इस बार गिरने से बचने की कोशिश की हैंडल को आडा तिरछा करते हुए चलते रहे फिर पैंडल भी मारे। साइकिल चल निकली मन खूशी से झूम उठा। मुंह से हुररे की चीख मारी और मेरे साथ ही किसी और की भी चीख निकली किंतु रोने की, आडा तिरछा चलते हुए एक अपने से बड़ी बालिका की साइकिल में हमने अपनी साइकिल ठोक दी थी खुद तो गिरने से बच गया पर वह बेचारी गिर गई। हम साइकिल को हैंडल से पकड़कर भाग निकले ठेलते हुए ऊपर बैठकर नहीं।

तीन दिन साइकिल चलाने नही गया डर के कारण क्योंकि उस बालिका के तीन भाई थे जो कि कक्षा 11 में पढते थे। उनकी मार से डरे हुए स्कूल भी ना गया। फिर जब साइकिल सीखने फिर चार दिन बाद गया तो इस बात का ध्यान रखा की कोई आकर पीट ना दे। दो दिन ढलान पर चढ़कर साइकिल सीखने की अच्छी प्रेक्टिस की और फिर तीसरे दिन स्पाट मैदान में पहली बार जोर लगाकर पैडल मार कर साइकिल चलाया आपार खुशी हो रही थी हैंडल भी संभालना आसानी से आ गया। झूमते हुए साइकिल चलाने लगा तभी किसी ने पीछे से साइकिल को ठोक दिया चक्करघिनी खाकर साइकिल समेत औंधे मुंह गिरा रोनी सूरत बनाकर उठा तो पाया वही बड़ी बालिका खड़ी मुस्करा रही थी। और साइकिल पर बैठी जाते हुए बोल गई उस दिन का हिसाब पूरा हुआ।


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