रोशनी का कारवां...!!!!
रोशनी का कारवां...!!!!
जरा सोचिए! कितना मनोहर और कितना सुखद होता है वह वक्त, जब दीर्घकालीन गहन अंधकारमय रात्रि के पश्चात उषा काल का उदय होता है । जब सूर्यदेव अपनी स्वर्णिम आभा की अद्भुत क्रान्ति से तिमिराच्छादित आकाश को आलोकित कर देते हैं। जैसे - जैसे अंधकार छंटता हैं और जगत प्रकाशित होता हैं, वैसे - वैसे समस्त ब्रह्माण्ड में मानो नवजीवन संचारित हो उठता है।
किन्तु क्षणिक कल्पना कीजिए, यदि किसी के जीवन में ' दृष्टि ' जैसे कुदरती, खूबसूरत, अनमोल उपहार का अभाव हो, और उसे सदैव, सर्वत्र, न चाह कर भी जीवन पर्यन्त अंधकारमय जीवन जीना हो । महसूस कीजिए, जब आस पास सभी तरह के सांसारिक रंगों से सराबोर वातावरण से कोई चाहकर भी रू - ब - रू न हो सके । सच में, यह कल्पना जितनी दूभर प्रतीत होती है उससे भी कहीं ज्यादा दुष्कर होता है दृष्टिवाधितों का जीवन ।
जीवन असीम व अनन्त है व इसकी असीमितता को मानवीय सीमित क्षमताओं के द्वारा आँकना पूर्णतः असम्भव है। लेकिन इन्हीं सीमित क्षमताओं के जीवन्त प्रयत्नों से स्वध्येय निर्धारित कर अपने जीवन पथ पर अग्रसर होना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है। ईश्वरीय अनुकम्पा और प्रयासों की निरन्तरता ही हमारे लक्ष्य प्राप्ति मार्ग के सबसे बड़े सहायक हैं । हालांकि यहाँ किसी को ईश्वर से अलग से शक्ति नहीं मिलती, फिर भी एक दृष्टिबाधित व्यक्ति को जीवन में दृष्टि अभाव के कारण अपनी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु विषय परस्थितियों में सीमित साधनों व क्षमताओं के साथ अत्यधिक जुझारू तरीके से अडिग होकर, अनवरत प्रयास करने होते हैं ।
जीवन के अभावों को दूर करने हेतु यदि ज्ञान को अपना सशक्त हथियार, बनाकर, समस्त बाधाओं का दमन कर दिया जाए तो जीवन भी रात्रि के पश्चात् आने वाली सुखद और ज्योतिर्मय सुबह की भाँति ज्ञान से रोशन हो उठता है । अपने जीवन को शिक्षा से रोशन करने के लिए ना जाने कितने दृष्टिहीन भाई - बहिनों ने “ नेत्रहीन विकास संस्थान " में दाखिला लेकर, ज्ञानार्जन कर, स्वयं को आत्मनिर्भर बनाया। आज वे अपनी कार्यकुशलता से हर जगह इस संस्थान के यशोगान का परचम फहरा रहे हैं ।
जन्म से दृष्टि बाधित होने पर मेरे माता पिता ने मेरे इलाज की तलाश में पूरे देश को ही मानो माप डाला। किन्तु जब कुछ भी होते न बना तो उन्होंने अत्यधिक धैर्यपूर्वक यह दृढ़ निश्चय किया कि वे मेरे जीवन के दृष्टि अभाव को ज्ञान से पूर्णतः रोशन करने का हर संभव प्रयास करेंगे। इस कड़ी में बीकानेर अन्धविद्यालय के तत्कालीन प्रधानाध्यापक, स्व. श्री संतलाल आर्य के मार्ग दर्शन में, उन्होंने मुझे भी इस शाला नेत्रहीन विकास संस्थान, जोधपुर में दाखिला दिलाया, जो कि राजस्थान का एकमात्र विशेषकर लड़कियों का छात्रावासीय विद्यालय है ।
जब मैं यहाँ आई थी तो अत्यधिक उचश्रृंखल, अध्ययन में अरुचि रखने वाली व अत्यधिक नटखट बालिका थी। पर मुझे आज भी याद है कि कैसे मेरे शिक्षकों के स्नेहिल प्रयासों व यहाँ हमारी घर की तरह की जाने वाले देखरेख के चलते मैंने मात्र एक महीने की अल्पावधि में ब्रेल लिपि में लेखन, पठन करना सीख लिया था । मुझे याद है तो जीवन परिवर्तन कर देने वाली एक छोटी सी घटना, जब मैं कक्षा चार में थी, मेरे अंग्रेजी विषयाध्यापक स्व. श्री सोहनलाल सुथार के काफी प्रयासों के बावजूद भी मैं इस विषय में हर बार अनुत्तीर्ण होती जाती थी। एक कुशल शिल्पकार जिस तरह अपने एक सटीक प्रहार से अपनी मूर्ति को तराश देता है, ठीक उसी तरह मेरे अध्यापक ने भी मुझे एक ऐसी फटकार लगाई जिसके परिणामस्वरूप मानो उन्होंने मेरी इस विषय में रूचि को ही नहीं अपितु मेरे जीवनोद्देश्य को ही तराश डाला। एक अध्यापक की दूरदर्शिता तो देखी। आज मैं पिछले नौ वर्षों से राजकीय विद्यालय में अंग्रेजी (साहित्य) विषय के ही व्याख्यता के पद पर कार्यरत हूँ।
इस संस्थान की संस्थापिका श्रीमती सुशीला बोहरा मानव सेवा के पर्याय के रूप में जानी जाती है । उन्हीं के असीम, अनवरत, अथक प्रयासों के फलस्वरूप आज न केवल दृष्टिहीन अपितु मूक - बधिर, मानसिक विक्षिप्त व आर्थिक रूप से अक्षम सभी को संबल मिल रहा है । मैं उनके ममतामयी, कर्तव्यपरायण व सहज व्यक्तित्व से अत्यधिक प्रेरित हूँ । हमारे विद्यालय के लगातार पच्चीस वर्षों से दीर्घावधि तक प्राचार्य रहे श्री नरेश कुमार जैन, जो स्वयं भी दृष्टिबाधित हैं, की कार्यकुशलता, सरलता और हर स्थिति में शाला के लिए कुछ कर गुजरने के जज्बे को मैं सदैव अपने जीवन में उतारने का भरसक प्रयत्न करती हूँ । इस विद्यालय के समस्त पूजनीय शिक्षकगण मेरे प्रेरणास्त्रोत, मार्गदर्शक व अभिभावक बनकर सदैव स्तम्भ की तरह मंजिल तक पहुँचाने में मेरे मार्गदर्शक रहे हैं । मेरे सफल शैक्षिक सफर की एक बेजोड़ कड़ी है, मेरे प्रिय दोस्त, जिनकी बेशुमार दुआओं व प्रेम ने सदैव मेरा साथ दिया ।
शाला में शिक्षा, आवास, घर की तरह ही की जाने वाली देखभाल, सभी तरह की सुविधाएँ निःशुल्क मुहैया हैं । यहाँ के शिक्षक विद्यार्थियों के साथ कितना कठिन परिश्रम करते हैं, यह शब्दों में बयाँ कर पाना नामुमकिन हैं । मैंने अब तक एक अंतरराष्ट्रीय, तेरह राष्ट्रीय व पंद्रह राजकीय पुरस्कार प्राप्त किये हैं, जो उनके अथक परिश्रम का एक छोटा सा उदाहरण है। यहाँ से सीखी हर एक जीवनोपयोगी बात मेरे मस्तिष्क में आज भी सक्रिय हैं और मैं उन्हें विद्यार्थियों को भी सिखाने की कोशिश करती हूँ ।
अंततः वंदन करती हूँ मैं अपने माता पिता, परिवार व अपने संस्थान को जिसने ना जाने कितने दिव्यांग विद्यार्थियों को शून्य से शिखर तक का यह जटिल सफर आसान बनाने में अपना अविस्मरणीय योगदान दिया ।
इतना दिया है कि भूला ना सकेंगे,
रोशनी की ऐसी रश्मि अन्यत्र पा ना सकेंगे ।
इस रश्मि से जीवन को सदैव रोशन रखेंगे,
फिर भी इस ऋण से स्वयं को उत्र्ण बना ना सकेंगे ।।