रोज़ा
रोज़ा
अल्लाह हू अकबर अल्लाह हू अकबर ।"
नमाज का वक्त हो चला था चारों तरफ से अजान की आवाज आ रही थी।रहमत मियां अपने घर की ओर बढ़े जा रहे थे। प्यास के मारे गला सूखा जा रहा था आज उनका बीसवां रोजा था।पर अपने धर्म के पक्के थे।हज जो कर आये थे।आज तो धूप ने कहर ढा रखा था।बैसाख मे ही लू के थपेड़े शरीर को झुलसा रहे थे। ऊपर से सारा दिन की भूख प्यास रहमत मियां को निढाल कर रही थी आज सुबह से ही उन्हें हल्का हल्का बुखार भी था।पर वो रोजा छोड़ने को तैयार नहीं थे।लू थी कि मुंह को थपेड़े जा रही थी। उनकी बड़े बाजार मे फर्नीचर की दुकान थी ।किसी समय मे कही कारीगर का काम करते थे रहमत मियां। अल्लाह की नेमत से आज बड़े बाजार मे खुद का फर्नीचर का शोरूम था।पर रहमत अली जमीन से जुड़ा हुआ इंसान था।हर किसी की मदद करना ,सेवा भाव कूटकूट कर भरा था।इतने साधन होने के बाद भी घर तक पैदल जाते थे खासकर रोजों मे।अब की बार बड़े बेटे ने कहा था ,"अब्बू ।अब की बार आप रोजें मत करो आप की तबीयत ठीक नही है आप की जगह मै कर लूंगा।"
रहमत मियां बेटे का अपने प्रति प्यार देखकर गदगद हो गये।और बोले,"बेटा । जन्नत भी फिर तुम्हें ही नसीब होगी ।जैसे मै तुम्हारी जगह रोटी खा लूं तो तुम्हारा पेट नही भरेगा वैसे ही मै धर्म करूंगा तो ये मुझे ही लगेगा।"और फिर हंसते हुए रहमत मियां दुकान चले गये।उस दिन पहला ही रोजा था।
आज तो बीस हो चले थे प्यास के मारे पैरों ने जवाब दे दिया था।शाम को पांच बजे भी धूप कम नही हुई थी। चिलचिलाती धूप पड़ रही थी।जैसे तैसे करके रहमत मियां घर की दहलीज तक पहुंच गये।बाहर से ही उन्होंने अपनी बेगम को आवाज लगाई कि वो वजू कराने के लिए पानी का लोटा ले आये। गर्मी और धूप ने उनका बुरा हाल कर दिया था।बेगम वजू के लिए लोटा पानी ले आयी ।हाथ पैर धोकर वो कुराने पाक के आगे बैठकर नमाज अदा करने लगे।तपती धूप ने उनका ऐसा हाल कर दिया था कि नमाज़ पढ़ते वक्त उनके हाथ कांप रहें थे। सलमा बीबी ने आज रहमत मियां की पसंद की ही सारी चीजें बनाई थी सेवयी,गोशत, बिरयानी,शरबत,फल सब ही तो था बस बिस्मिल्लाह की देर थी।जैसे ही नमाज़ अदा की रहमत मियां आ के रोजा खोलने के लिए बैठने ही वाले थे कि बहार से आवाज आयी ,"भगवान के नाम पर कुछ दे दो बाबा।मेरे बच्चे दो दिन से भूखे है अल्लाह के नाम पे दे दे।"
बाहर खड़ी भिखारन अपने बच्चों को लेकर घर के बाहर खड़ी थी। रहमत मियां ने जब आवाज सुनी तो उठकर उन्हें खाना देने चले तो सलमा बीबी बोली,"या अल्लाह ।आप खाइये।हम देख लेंगे।"पर रहमत मियां बोले,"बेगम दरवाजे पर भूखा बंदा खड़ा हो और मै रोजा खोलूंगा अल्लाह मुझे कभी माफ़ नही करेगा ।"यह कहकर वो उस गरीब को खाना देने चल दिए अपनी थाली उठा कर।जैसे ही खाना देकर मुड़े एकदम से चक्कर आया और वो वही ढेर हो गये।उनकी आत्मा अल्लाह को प्यारी हो चुकी थी।सही मायने मे उनके रोजे अदा हो गये थे।