Neha anahita Srivastava

Drama Fantasy Others

4.0  

Neha anahita Srivastava

Drama Fantasy Others

रिश्तों का गुलाल

रिश्तों का गुलाल

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रामनरेश पाण्डेय हमारे पड़ोसी और एक सेवानिवृत्त अध्यापक हैं। पाण्डेय जी के परिवार में पाण्डेय जी के अलावा उनकी पत्नी और दो बच्चे, बेटा सोनू और बेटी स्वाति हैं। सोनू की शादी हो चुकी है और अपने बीवी-बच्चों के साथ वो दिल्ली में रहता है। यहाँ पाण्डेय जी अपनी बीवी और बेटी के साथ रहते हैं।स्वाति एक निजी विद्यालय में शिक्षिका है। पाण्डेय जी आजकल स्वाति के विवाह को लेकर चिंतित रहते हैं। पाण्डेय जी बरामदे में बैठकर अखबार के पन्ने पलट रहे थे, कल होली का त्योहार था, बाहर सड़क पर होलिका सजाई गई थी। बाहर बहुत शोरगुल हो रहा था। पाण्डेय जी को होली के नाम से ही चिढ़ थी। तभी पाण्डेय जी की पत्नी सुनंदा ने चारपाई पर बैठते हुए पाण्डेय जी से कहा,"अजी, कल होली है, जाओ बाजार से मैदा, मावा , शक्कर ले आओ, गुजिया बनानी है।" "अरे पण्डिताईन ,तुम्हें भी शक्कर खाना मना है और हमें भी, ऊपर से तुम्हें उच्च रक्तचाप भी है, का करोगी इ गुजिया बना कर, अरे शर्मा जी बता रहे थे बाजार में बिना शक्कर वाली ,का कहते हैं हाँ, शुगर-फ्री गुजिया मिल रही है ,लाओ दो पैसा और झोला वहीं ले आते हैं।" पाण्डेय जी झोला थामे पैदल ही निकल गये। बाजार में बहुत भीड़ थी। पन्नालाल मिष्ठान के पास पहुंच कर पाण्डेय जी के कदम रूक गये लेकिन शीशे सी चमचमाती दुकान,बाहर खड़ी गाड़ियों को देखकर पाण्डेय जी अंदर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। किसी तरह झोले को मुट्ठियों में जकड़ते हुए पाण्डेय जी अंदर पहुँचे, शीशे के अंदर तरह-तरह की मिठाइयाँ रखीं थीं। दुकान के अंदर भी बहुत भीड़ थी। "भाई बिना शक्कर वाली गुजिया कितने रुपए किलो है।"पण्डित जी ने सकुचाते हुए पूछा,'भईया, ये बिना शक्कर वाली, शुगर फ्री गुजिया कितने रुपए किलो है? हमें आधा किलो लेनी है।" "४०० रुपए" दुकानदार ने कहा। "भईया, दे दो, आधा किलो" पांडेय जी बोले। दुकानदार ने आधा किलो गुजिया तौल दी। पाण्डेय जी ने दो सौ रुपए निकाले और दुकानदार की ओर बये बये।"अरे भाई,४०० रूपए दो,८०० रूपये किलो है गुजिया।" पाण्डेय जी चकराये जेब टटोली, ३७५ रूपए थे। पाण्डेय जी दुकानदार से बोले, "रहने दो भाई, हमें नहीं लेना है।" "पता नहीं कहाँ-कहाँ से चले आते हैं,"दुकानदार बड़बड़ाया। "एक किलो तौल दो", किसी की आवाज़ आई। "अरे, कलेक्टर साहब आप", दुकानदार बोला। आंगतुक ने पाण्डेय जी के पैर छुए और कहा,"गुरूजी प्रणाम" । पाण्डेय जी ने पहचानने की कोशिश की, अरे, ये तो संजीव है। ‌    


संजीव उनके विद्यालय में अस्थायी अध्यापक था। वह भी पाण्डेय जी की तरह गणित ही पढ़ाता था लेकिन पाण्डेय जी छड़ी वाले गुरु जी थे, संजीव नयी पीढ़ी का शिक्षक था, वह छड़ी से नहीं प्यार से बच्चों को पढ़ाता था। बच्चे भी संजीव को पसंद करते थे। प्रधानाचार्य भी संजीव की तारीफ करते थे। एक बार पाण्डेय जी ने किसी बच्चे की पिटाई की, संजीव ने बच्चे की तरफदारी कर दी। तब से पाण्डेय जी संजीव से और चिढ़ गये थे। यहाँ तक की जब संजीव की मां संजीव के लिए स्वाति का हाथ माँगने आईं तो उन्होंने साफ मना कर दिया। "लीजिए साहब, आपके और गुरु जी के लिए, इसमें आपकी बिना शक्कर वाली गुजिया के अलावा चंद्रकला, नवरंग और खास चॉकलेट वाली गुजिया भी है।", दुकानदार ने दो थैले थमाते हुआ कहा।" बड़े-बुजुर्गों का आदर किया कीजिए", संजीव ने पैसे देते हुए दुकानदार से कहा।  "आइये, गुरु जी आपको घर छोड़ दूँ", संजीव ने पाण्डेय जी से कहा। बाहर नीली बत्ती वाली गाड़ी खड़ी थी ,रास्ते में संजीव इधर-उधर की बात कर रहा था। पाण्डेय जी ने पूछा "और तुम्हारे परिवार में कौन-कौन है? बीवी-बच्चे कहाँ हैं? माताजी कैसी हैं? "गुरु जी मैंने अभी शादी नहीं की है, पिछले साल माताजी का देहांत हो गया।"संजीव ने धीमे स्वर में कहा।" "मेरी बेटी, स्वाति से शादी करोगे और मैं ये प्रस्ताव तुम्हारा ओहदा देखकर नहीं रख रहा हूँ, मैं अपनी भूल को सुधार रहा हूँ।" पाण्डेय जी ने कहा। संजीव ने हामी भरी। गाड़ी पाण्डेय जी के घर के बाहर रूक गयी। पाण्डेय जी ने संजीव को अंदर बुलाया और पत्नी को आवाज़ लगाई,"पण्डिताईन, देखो कौन आया है, कलेक्टर साहब, अरे नहीं होने वाले जमाई बाबू आयें हैं।" स्वाति और पण्डिताईन बाहर आईं, संजीव को देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ। पाण्डेय जी ने चॉकलेट वाली गुजिया थैले से निकाल कर पत्नी को थमाते हुए कहा, "लो नया ज़माना है, नये तरीके से मुँह मीठा करवाओ।" जाते समय जब पाण्डेय जी संजीव को छोड़ने दरवाजे पर आते, एक बच्चे ने उनके ऊपर रंग फेंक दिया, रंगों से चिढ़ने वाले पाण्डेय जी ने बच्चे की थैली से रंग लेकर उसके ही चेहरे पर लगा दिया और थोड़ा सा गुलाल संजीव के गाल पर भी लगा दिया। संजीव ने भी थोड़ा सा गुलाल लेकर पाण्डेय जी के गाल पर लगा दिया और झुककर पाँव छुए। अब पाण्डेय जी कलेक्टर साहब के ससुर के नाम से जाने जाते हैं। और पड़ोसी होने के नाते हमें भी कोई काम पड़ता है तो हम भी दामाद जी की मदद ले लेते हैं। अरे भाई, मोहल्ले में किसी का भी दामाद ऊँचे ओहदे पर हो तो सब रिश्तेदारी जोड़ ही लेते हैं। जिस तरह होली में पाण्डेय जी की ज़िंदगी में रंग घुल गया वैसे ही आपके जीवन में भी रंग घुलता रहे।   होली की अग्रिम शुभकामनाएं।



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