रिश्ते
रिश्ते
तवालत की हद इस क़दर बढ़ गयी है कि तवाफुक्र की कोई सूरत ही नहीं बची है।आज अपनी ज़िंदगी का दूसरा सबसे बड़ा फैसला लेने जा रही हूँ। पहला फैसला था,उनसे अलग होने का,जिसमे मेरे घरवाले तक मेरे ख़िलाफ़ थे। तुम उस वक़्त न थे। लेकिन मैने लिया।अपने इरादे को मजबूत किया औऱ बढ़ चली थी।
और आज एक बार फिर उसी मोड़ पर आकर खड़ी हूँ ।आज भी अपने जीवन का बहुत बड़ा फैसला ले लिया है...अचानक ही। घरवाले इस बार भी मेरे साथ नहीं है। अफ़सोस तो इस बात का है कि तुम भी मेरे साथ नहीं हो। 2 साल के रिश्तों का भरम तुमने एक ही झटके में तोड़ दिया। आज तक कहते आये कि हर हाल में मैं तुम्हारे साथ हूँ और जब साथ देने की बारी आई तो पीछे हटने वालों में सबसे पहला नाम तुम्हारा ही है। कोई बात नहीं।अच्छा है आख़िर हमारे रिश्ते की सच्चाई तो सामने आई।
मैं यहां डॉक्टरों से मिल रही हूं।रोज चेकअप हो रहा है,पर मेरे साथ कोई भी नहीं है अपना।यहां कहने को तो मेरे कई अपने हैं,पर अपनों की हक़ीक़त अच्छे से जान गई हूं मैं।वैसे भी प्रारब्ध ही मेरा मुकर्रर नहीं है तो मैं किसी और को दोष क्यों दूँ?
मन बहुत अशांत है। मेरा अकेलापन मुझको खाये जा रहा है। ऐ खुदा! तूने मुझे मुखिलस सा कोई रिश्ता क्यों नहीं आता की..??? यकबारगी ही तू मुझे मौज में बहा ले जाता है,फिर यक व यक ही ग़मो के बोझ तले रौंद डालता है।
आख़िर क्यों..?