रीढ़ की हड्डी...
रीढ़ की हड्डी...
वो बहुत पहले मर चुका था। बाहर से किसी को इस बात की भनक तक नहीं थी। अंदर की लाश जीवित शरीर का नकाब ओढ़े जी रही थी इस आशा के साथ कि एक दिन वो भी मर जाएगी। फिर वक़्त के साथ उसे फरक पड़ना बंद हो गया कि वो क्या सोचता है अपने शरीर के बारे में! पहले उसे बड़ा असहज लगता था मरी हुई लाश के ऊपर जिंदा शरीर को लेकर चलना लेकिन फिर उसे आदत पड़ गई। उसने बहुत बार अपने आस पास वाले लोगों को खुद के बारे में कहते सुना था – “वो आदमी मर गया है। बस जिंदा लाश है। रीढ़ की हड्डी नहीं है उस आदमी की।“ उसने पहले इस बारे मे बहुत सोचा लेकिन फिर छोड़ दिया। जब भी उसे अपने जैसे लोग दिखते जो कि सारे थे वो बहुत खुश होता पर उनसे बात नहीं कर पाता क्यूंकि कोई मानने को तैयार नहीं था कि वो मर चुके हैं। जिस भी आदमी से वो ये बात कहता वो उसे लताड़ कर भगा देते। धीमे धीमे उसने घर से निकालना बंद दिया। अब वो घर मे अकेले रहने लगा। खिड़की से सबको देखता कि कैसे सब तकलीफ लेते हुए भी जी रहे हैं तो उसे अपना मरता हुआ शरीर बहुत पसंद आता।
क्या हुआ होता अगर मरने के ठीक पहले फैसला बदल कर वो जीवित होने को चुन लेता- इस खिलौने के साथ वो बहुत खेलता। फिर बोर होता तो फेक देता। बाहर नहीं, कमरे के भीतर ही। फिर कुछ देर में दोबारा उठा लेता और खेलना शुरू कर देता। धीमे धीमे उसे खिलौने से प्यार हो गया।
उसने बहुत पहले ये भी जान लिया था कि उसकी रीढ़ की हड्डी नहीं है और इसी की वजह से उसकी मौत हुई थी। वो कभी कभी अंधेरे मे चुपके से लेट जाता और ठीक उस जगह टटोलता जहां उसकी रीढ़ की हड्डी हुआ करती थी जो वो बिल्कुल भूल चुका था। ऐसे मौकों पर उसे वो हिस्सा पुलपुला जान पड़ता। जैसे अंदर पानी जैसा कुछ भरा हो। दबाने पर उसे गुदगुदी होती और वो हँसकर रोने लगता।
वो चाहता तो हड्डी को बचा सकता था, पर उसने नहीं बचाया था; हड्डी ना टूटती और वो ना मरता अगर उसने वो फैसला ना लिया होता जो हड्डी टूटने के ठीक पहले लिया था- इस खिलौने से भी कुछ रातों मे वो खेला पर हर बार वो हँसकर रोने लगता तो धीमे धीमे उसने इस खिलौने को एक कोने मे अकेला छोड़ दिया।
अब सिर्फ वो मरने के ठीक पहले फैसला बदल कर जीवित होने को चुन लेता के खिलौने से खेलता। अक्सर रातों मे सोते हुए उसे दोनों खिलोनों के झगड़े की आवाज आती। वो इसमे मुस्कुराकर सो जाता।
एक दोपहर वो मरने के ठीक पहले फैसला बदल कर जीवित होने को चुन लेता के खिलौने से खेल रहा था; तभी उसकी खिड़की पर एक चिड़िया आई। आदमी को महसूस हुआ कि दो आँखें उसे देख रही हैं तो वो सीधे जमीन पर लेट गया। सांस रोककर। मरे हुए आदमी की तरह। उसने सुना था कि मरे हुए आदमी को जानवर और पंछी परेशान नहीं करते। लेटे हुए उसका ध्यान अपनी पीठ पर जाता है और वो रीढ़ की हड्डी टटोलने लगता है, मन ही मन।
चिड़िया उसे गौर से देखती रहती है और फिर चली जाती है। आदमी बहुत देर बाद उठता है और फिर अपने दूसरे कामों मे व्यस्त हो जाता है।
दूसरे दिन फिर चिड़िया खिड़की पर आती है, आदमी फिर लाश बनकर लेट जाता है और अपनी रीढ़ की हड्डी टटोलने लगता है। उसे इसमे मजा आने लगता है। यूँ किसी दर्शक के सामने बिना रीढ़ के मरा हुआ साबित करना खुदको- इसमें उसे आनंद आने लगा। अब उसका ये रोज का खेल बन गया। वो सुबह सुबह ही नहा कर तैयार हो जाता और इंतज़ार करता चिड़िया का। उसका ध्यान बार बार खिड़की की तरफ जाता कि कब चिड़िया आएगी कब वो मरकर लेट जाएगा?
इंतज़ार करते हुए वो मरने के ठीक पहले... वाले खिलौने से खेलता लेकिन अब उसका इसमे मन नहीं लगता था। अब रातों मे उसे रीढ़ की हड्डी टूटने से पहले... वाले खिलौने की मजाक उड़ाने वाली हँसी सुनाई पड़ती। वो अब और सुकून से सोने लगा।
एक दिन जब वो बहुत देर से इंतज़ार करते हुए खेल रहा था उसे परों की फड़फड़ाहट सुनाई दी। चिड़िया उस दिन बहुत देरी से आई थी। आदमी ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उसके मन मे आया कि वो नाराज होने का खेल खेलेगा। वो आज मर कर नहीं दिखाएगा। चिड़िया उसे चुपचाप खिलौने से खेलते देखती रही। आदमी को पता था कि चिड़िया की नजरें उसके ही ऊपर हैं और उसका भी मन खिलौने मे नहीं था पर वो जिद पर अड़ा रहा। चिड़िया ने कोशिश की उसका ध्यान खुद पर लाने की पर उसके परों की फड़फड़ाहट का उस जिंदा आदमी पर कोई फरक नहीं पड़ा।
उस दिन चिड़िया के जाने के बाद आदमी को बुरा लगा। उसने गुस्से में मरने के ठीक पहले फैसला बदल कर जीवित रहने को चुन लेने वाले खिलौने को दीवार पर पटक दिया। खिलौने के टुकड़े पूरे कमरे में बिखर गए। और उसमें से पानी नुमा कुछ निकला जो पूरे फर्श पर फैल गया। वो काफी देर सुखी और सुन्न आँखों से खिलौने के हर एक पुर्जे को देखता रहा। और फिर उसी भीगी जमीन पर लेट कर सो गया। रीढ़ की हड्डी टूटने से ठीक पहले लिए फैसले को नहीं लेना था के खिलौने की हँसी पूरी रात उसके कानों मे पड़ती रही।
सुबह आँख खुलते ही उसने सोचा क्या हुआ होता अगर वो मरने के ठीक पहले फैसला बदल कर जीवित होने को चुन लेता के खिलौने को दोबारा बनाया जाए। उसने एक एक पुर्जाजमीन से बुहारा और एक कोने में इकट्ठा किए फिर मेहनत से उस खिलौने को दोबारा बनाने लगा। कब सुबह से दोपहर हो गई उसे पता ही नहीं चला।
दोपहर होते ही उसके कानों मे परों की फड़फड़ाहट की आवाज आई। अब वो बँट गया। उसे लगा कि उसने मर कर नहीं दिखाया तो चिड़िया फिर नहीं आएगी और खिलौना नहीं ठीक किया तो वो अकेला हो जाएगा, वो जिएगा कैसे। शरीर के मरने तक का वक्त कैसे कटेगा?
वो लेट गया। बिस्तर की आड़ में लेते हुए उसने देखा कि आज चिड़िया अकेली नहीं थी। उसके साथ एक और चिड़िया थी। उससे छोटी। उस दूसरी चिड़िया को देखते ही आदमी को कुछ महसूस हुआ। सीने के ठीक पीछे जहां पर रीढ़ की हड्डी होनी चाहिए वहाँ पानी था और वहाँ पर उसे गुदगुदी महसूस हुई। वो उसमें आनंद लेने लगा। उसका ऊपर का धड़ चिड़ियों की नजर मे था और हाथों से वो खिलौना ठीक कर रहा था। उसके जीवित हाथों का चिड़ियों को पता नहीं था। नई चिड़िया कुछ देर उसे देखकर लेट गई और मर गई। आदमी को कुछ समझ नहीं आया। दूसरी चिड़िया कभी आदमी को देखती और कभी अपनी साथी चिड़िया को। कुछ देर तक जब ना आदमी में हरकत हुई और ना मरी हुई चिड़िया में तो उस चिड़िया ने मरी हुई चिड़िया के पेट में चोंच मारना शुरु कर दिया। चोंच लगते ही मरी चिड़िया जिंदा हो गई और फिर दोनों आवाज करते हुए उड़ गईं।
उनके जाते ही आदमी मरा हुआ प्रतीत होने के खेल से उठकर मरने के ठीक पहले वाले... खिलौने को बनाने में लग गया। आखिरकार खिलौना पूरा बन गया पर एक दिक्कत थी। वो अब शोर बहुत कर रहा था। आदमी देर रात तक माथापच्ची करता रहा कि शोर का कारण क्या है? तभी उसका ध्यान अपने दाग लगे कपड़ों पर गया और सारी बात समझ आ गई। खिलौना टूटने पर जो पानी निकला था वो नहीं है अब खिलौने के भीतर, इसलिए खिलौना इतना शोर कर रहा है। वो लेटे लेटे काफी देर इस बारे मे सोचता रहा। रात मे उसे दोनों खिलौनों की बातचीत सुनाई दी। रीढ़ की हड्डी के टूटने से पहले वाले... खिलौने का कहना था कि जिस पानी से मरने से ठीक पहले वाले... खिलौने का शोर बंद हो सकता है वो पानी आदमी की पीठ मे था, जहां पर उसकी रीढ़ की हड्डी होनी चाहिए थी। दोनों इस बात पर बहस करते रहे कि वो पानी निकालें कैसे?
सुबह आँख खुलने पर आदमी भी यही सोच रहा था कि पानी कैसे निकले बाहर? उसके मन में idea आया। वो चिड़िया का इंतज़ार करने लगा। परों कि आवाज सुनते ही आदमी लेट गया। आदमी को देखकर छोटी चिड़िया मरने की नकल करने लगी। फिर आदमी ने चिड़िया की आवाज निकालना शुरू की । उसे इस पल से पहले नहीं पता था कि वो चिड़िया की आवाज निकाल सकता था। दोनों चिड़ियाँ उसकी आवाज का जवाब अपनी आवाज से देने लगीं। बड़ी चिड़िया ने पर फड़फड़ाए और अंदर आने की कोशिश की। खिड़की पर शीशा लगा था। आदमी उठ नहीं सकता था वरना मरने का ढोंग खत्म हो जाता। बहुत कोशिश के बाद भी जब चिड़िया अंदर नहीं आ पाई तो उसने मरी चिड़िया के पेट पर चोंच मारी और फिर दोनों उड़ गईं।
उनके जाते ही आदमी ने उठकर खिड़की खोल दी और फिर अपने दूसरे कामों मे व्यस्त हो गया। अगले दिन दोपहर से ठीक पहले वो ऊपर से नंगा होकर पेट के बल लेट गया। दोनों खिलौने उसने छुपाकर रख दिए थे। चिड़िया आईं तो आदमी ने आवाज़ें निकाली जिसे सुनकर दोनों अंदर आ गईं। छोटी चिड़िया सीधा आदमी के चेहरे के सामने आकर मर गई। बड़ी चिड़िया उसकी पीठ पर बैठ गई। आदमी ने पीठ पर दाने रखे हुए थे ठीक वहाँ पर जहां रीढ़ की हड्डी की जगह पानी था।
आदमी शांत हो गया। आदमी और छोटी चिड़िया के मरने के बाद बड़ी चिड़िया ने दाना चुगना शुरू किया। दाने खत्म होने के बाद चिड़िया ने चोंच मारी तो पुलपुले हिस्से में से पानी निकला। चिड़िया तुरंत अपनी साथी चिड़िया को लेकर उड़ गई।
आदमी ने उंगली से पानी को छुआ और सूंघा और फिर खूब तेज हँसने लगा। “मेरी रीढ़ की हड्डी नहीं है, पानी है पानी....” वो ये बात चिल्लाते हुए नाचने लगा और हँसता रहा। कई सालों में उसने ये खुशी महसूस की थी। उसने वो दो बूंद खिलौने मे डाले तो वो कम शोर करने लगा।
अगले दिन उसने पीठ पर सिर्फ एक दाना रखा और इंतज़ार करने लगा। चिड़िया आई, उसने आवाज निकाली, चिड़िया अंदर आईं। एक चेहरे के सामने मर गई। और एक पीठ पर बैठकर चोंच मारने लगी। इस बार आदमी मुस्कुरा रहा था। उसे सामने मरी पड़ी चिड़िया भी मुसकुराती हुई नजर आई। वो खुश था कि उसकी रीढ़ की हड्डी की जगह पानी था, इससे उसका मरने से ठीक पहले फैसला बदल कर जीवित होने को चुन लेने का खिलौना अच्छे से बिना आवाज के चल पाएगा।
चिड़िया ने चोंच मारनी शुरू की तो खूब पानी निकला। तभी चिड़िया ने सारा पानी अपने परों में लगा लिया और दूसरी चिड़िया के साथ उड़ गई। आदमी ने पीठ पर हाथ फेरा तो उसे पीठ सूखी महसूस हुई। उसे बहुत गुस्सा आई कि चिड़िया उसका पानी लेकर चली गई। गुस्से में वो रात भर सो ना सका।
अगले दिन फिर उसने एक दाना रखा। फिर वही हुआ। छोटी चिड़िया सामने लेट कर मर गई और बड़ी चिड़िया रीढ़ की हड्डी वाली जगह से पानी निकालने लगी। आदमी ने एक दम आँखें खोली और चुपके से चेहरे के सामने वाले चिड़िया को पकड़ कर उसकी गर्दन मरोड़ दी। तुरंत आदमी के उसी हिस्से में असहनिए दर्द हुआ जहाँ उसकी रीढ़ की हड्डी की जगह पानी था। चिड़िया की चोंच लगने पर ठक कि आवाज आई। आदमी तुरंत उठ गया और बड़ी चिड़िया को पकड़ लिया। चिड़िया चीखने लगी, उसने छोटी चिड़िया की तरफ देखा जो मर चुकी थी। वो सुनी आँखों से आदमी को देखने लगी। उस मरे हुए आदमी ने देखा कि चिड़िया कि चोंच लाल थी। उसमे खून लगा हुआ था। उसका दूसरा हाथ पीठ पर गया तो उसे पुलपुले पानी कि जगह ठोस हड्डी महसूस हुई। उसने चिड़िया की गर्दन मरोड़ दी। और दर्द से बिलखते हुए जमीन पर गिर पड़ा।
मासूम चिड़िया का कत्ल करते ही बिना रीढ़ वाले आदमी की रीढ़ की हड्डी बनने लगी थी। रीढ़ की हड्डी बनते ही वो जिंदा हो जाएगा। ये बात मन मे आते ही उसने दोनों खिलौने- क्या हुआ होता अगर मरने के ठीक पहले फैसला बदल कर वो जीवित होने को चुन लेता- और अगर उसने वो फैसला ना लिया होता जो हड्डी टूटने के ठीक पहले लिया था को उठाकर बाहर फेक दिया।
अब जिंदा इंसान रीढ़ की हड्डी आते ही नए खिलौने की खोज में निकाल पड़ा। उसके हाथ खून से लाल थे।
