प्यार दिल्ली में छोड़ आया - 15
प्यार दिल्ली में छोड़ आया - 15
लेखक : धीराविट पी. नात्थागार्न
अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
*Non caret effectu, quod volere duo (Latin): यदि दो व्यक्ति कुछ करने की ठान लें, तो उन्हें कोई नहीं रोक सकता – ओविद 43 BC – AD C 17
अट्ठाईसवाँ दिन
फरवरी ७, १९८२
एक महीने की जुदाई मानो जीवन भर की जुदाई हो। मुझसे न पूछो कि मुझे तुम्हारी कितनी याद आई। मुझसे न पूछो कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ। मैं सिर्फ इतना कह सकता हूँ कि तुम मेरे लिये सब कुछ हो और मेरा सब कुछ तुम्हीं हो। क्या यह पर्याप्त है? ये मेरी आज की चेतना का आरंभ है।
और अब मेरी खोजों की दुनिया में चलूँ :
सुबह मुझे हल्का-सा जुकाम था। बाहर निकलने के बदले मैंने दवा की एक गोली खाई और घंटा भर बिस्तर पर आराम किया। इसके बाद मुझे कुछ अच्छा लगा। २ बजे मैं फिर से पुस्तक मेले में गया। इस बार मेरा इरादा एम.एल. मानिच जुम्साई की मदद करना था, उनके किसी काम आ सकता! यह हुई एक बात, दूसरी यह कि किताबों में प्रदर्शित ज्ञान की दुनिया में थोडा़ टहल आऊँ। मेरे पास दो रूपये थे। मगर यह कोई समस्या नहीं थी, क्योंकि मैंने कोई किताब खरीदी ही नहीं। किताब का मूल्य चुकाए बिना भी मैं उसमें से कुछ न कुछ हासिल कर सकता हूँ।
बेशक मैं ‘कुछ भी नहीं’ से ‘कुछ’ बनाने की कोशिश कर रहा था। यह संभव है और मैंने यह किया भी। बस ने मेरे साथ मजा़क ही किया। वह दूसरे रास्ते से गई और मुझे कहीं और ले गई। मैंने उतरने की कोशिश की, इससे पहले कि बस मुझे बहुत दूर ले जाये, मगर कोई फायदा नहीं हुआ, ड्राइवर ने मेरी मिन्नत पर ध्यान ही नहीं दिया। मैं महारानी बाग पर उतरा और दूसरी बस पकड़ कर पुस्तक मेला पहुँचा। बस खचाखच भरी थी। मुझे कोहनियों से भीड़ में से होकर अपने लिये रास्ता बनाना पडा़, ताकि मैं उतर सकूॅं। दूसरे यात्री चीख रहे थे और कंधों से धक्के मारते हुए रास्ता बना रहे थे। ये बडा़ दर्दनाक एहसास है, मजा़ भी आता है। नीचे उन देशों के नाम दे रहा हूँ जहाँ मैं आज किताबें देखने गया :
थाईलैण्ड - हर चीज वैसी ही है, जैसी कल थी। एम. एल. मानिच जुम्साई अभी तक आए नहीं थे। मैं देर तक उनका इंतजार नहीं कर सकता था। मैं अन्य स्टॉलो की ओर गया, इस बात का ध्यान रखते हुए कि मैं थाईलैण्ड वापस आऊँगा। फिर मैं आया भी।
बांग्लादेश – यहाँ बस एक किताब मुझे अच्छी लगी। इसका शीर्षक है ‘बांग्लादेश के युवा कवि’। मैंने पन्ने उलट पलट कर देखा तो एक कविता दिखाई दी, जो काफी काल्पनिक थी। ये है वह कविताः
नग्न चन्द्रमा
देखा शशि* को कपड़े उतारते,
उसने अपनी कंचुकी और साया हटाया,
खुशबू, जिसे चांदनी रात कहते है,
उसके शरीर से फिसल गई।
जब मैंने उस पवित्र नग्न चन्द्रमा को
अपनी पिछली जेब में रखा
और चुपके से ले आया
अपने शयनगार में।
(*चूंकि ‘चन्द्रमा’ अंग्रेजी में स्त्रीलिंग है, इसलिये उसे स्त्री की तरह दिखाया गया है, अतः पहली पंक्ति में ‘शशि’ शब्द का प्रयोग किया गया है – अनुवादक)
और फिर मैं आया
ईरान – इमान खोमैनी के बड़े पोस्टर हर तरफ टँगे थे, नीचे लिखा थाः
‘‘अमेरिका एक नंबर का दुश्मन है दुनिया के दलित लोगों का,’’ और ‘‘अमेरिका इतना खतरनाक है कि अगर तुम थोडा़ भी अनदेखा करो तो वह तुम्हें नष्ट कर देगा।’’
यह एक ही ऐसा स्टाल था जो खुल्लमखुल्ला राजनीति करने में लिप्त हो गया था। मुझे विश्वास करने में हिचकिचाहट हो रही थी कि यह एक पुस्तक मेला है। यह तो राजनीतिक प्रचार है, अमेरिका को उसके श्रेय से वंचित रखने का, भारत की मौन अनुमति से। थोडा़ सा निराश होकर मैं आगे बढा़।
ईराक – प्रेसिडेन्ट सद्दाम हुसैन की शानदार तस्वीर एक रंगबिरंगी फ्रेम में लगाई गई थी। मगर यहाँ कोई प्रचार नहीं हो रहा था, सिर्फ एकता के बारे में पोस्टर्स लगे थे। पोस्टर्स और अखबार, अंग्रेजी, उर्दू और अरबी में, बड़ी संख्या में बाँटे जा रहे थे। मैंने एक पोस्टर और तीन अखबार उठा लिये (अंग्रेजी, उर्दू और अरबी) और दूसरे देश को चल पडा़।
फ्रान्स – यहाँ हर चीज़ फ्रेंच में लिखी गई है। मैं समझ नहीं पाया कि यहाँ क्या हो रहा है। एक भाषाविद् का जोश मुझमें हिलोरें लेने लगा। मैंने अंग्रेजी और फ्रेंच शब्दों की तुलना करने की कोशिश की उनके बीच की समानताएं एवम् विभिन्नताएं देखने के लिये।
फ्रेंच अंग्रेजी
Economic Economy
Medecine Medicine
Novembre November
Statistique Statistics
Produits Products
Linguistique Linguistics
Syntaxiques Syntactics
Lettres Letters
Familiale Family
Spendeurs Splendour
Mondes Months
Musique Music
Generales General
फ्राँस से मैं आगे गया
इंग्लैण्ड – यह एक बड़ी प्रदर्शनी है; अलग अलग तरह का ज्ञान लोगों को दिखाया जा रहा था। ब्रिटिश कौंसिल और अन्य कई प्रकाशक इसका संचालन कर रहे थे। मैंने एक किताब उठाई, फिर दूसरी उठाई। मेरे पास पैसे नहीं थे, मगर फिर भी मैं उनमें से कुछ हासिल करना चाहता था। और बेशक मुझे वो मिल ही गई। नीचे देखो :
१. ‘‘मुझे तुमसे प्यार न करने दो, अगर मैं तुमसे प्यार नहीं करता तो (हरबर्ट)’’। यह समझाया गया है कि यहाँ सन्दिग्धता है, ‘‘पुनरूक्ति’’ के कारण। मुझे यह पता नहीं चला कि “पुनरुक्ति” शब्द का क्या मतलब है। मैंने इसे ‘‘उपयोग तथा दुरूपयोग’’ (एरिक पार्टरिज द्वारा लिखित) नामक पुस्तक से लिया।
२. ‘‘मैं अकेला रह गया, दृश्य दुनिया को खोजते हुए, न जानते हुए, क्यों।’’
मेरे स्नेह के स्तंभ हटा दिये गये मगर फिर भी इमारत खड़ी थी, जैसे संभल गई हो, अपनी ही शक्ति से।’
(प्रस्तावना, II, 292-6: वर्डस्वर्थ की काल्पनिक कविताएॅं)
३. ‘‘...प्यार करता हूँ तुमसे?
बेशक, मैं तुमसे प्यार करता हूँ।
इसीलिये मुझे जाना होगा,
इससे पहले कि तुम जानो, कितना’’
(१२वीं घरेलू आपदाः लिन्डा गुडमैन की प्रेम कविताएॅं)
४. ‘‘हर इंसान, मैं तुम्हारे साथ जाऊँगा,
और तुम्हारा मार्गदर्शक बनूँगा
तुम्हारी सबसे जरूरत की घड़ी में
तुम्हारे साथ रहूँगा।’’
(कोलरिज की कविताएॅं)
और कुछ रोमांटिक शीर्षक भी देखे, जो दिलचस्प थेः
१. पीडित प्यार
२. प्यार करने वाला गुलाम
३. प्यार कोमलता से बोलता है
४. अधिकृत लड़की
५. सुन्दर पुरूष का कभी विश्वास न करों
६. एक छोटी सी मीठी घड़ी
७. प्यारा दुश्मन
८. अधिकार से बाहर
इतना ऊब गया हूँ दुनियादारी की बातों से। मैं धार्मिक स्टाॅल्स पर गया, जो बड़ी संख्या में थे। मैं बहुत देरी से नहीं लौट सकता था। इसलिये मैंने सिर्फ भगवान श्री रजनीश का स्टाॅल देखने का निश्चय किया – जो काफी विवादित धार्मिक नेता है। वे मेरे पसन्दीदा भारतीय गुरूओं में से एक है। उनकी लिखी हुई एक हजा़र पुस्तकें प्रदर्शित की गई थी। हर शीर्षक एक आत्मीय झलक देता है। ये कुछ शीर्षक :
१. न पानी, न चाँद
२. खाली नौका
३. सूरज शाम को उगता है
४. जो है, सो है; जो नहीं है, सो नहीं है
५. रेत की विद्वत्ता
६. बस यूँ ही
७. अपने रास्ते से दूर हटो
८. बिना पैरों के चलो, बिना पंखों के उड़ो, और बिना दिमाग के सोचो
९. एक पागल आदमी का पथ प्रदर्शक ज्ञान की दिशा में
१०. घास स्वयं ही उगती है
रूको... और मनन करो, और तुम्हें उनमें से ‘कुछ’ प्राप्त होगा, मेरा यकीन करो।
इसके बाद मैं फिर थाईलैण्ड गया एम. एल. मानिच वहाँ नहीं थे। मैं उनका और इंतजार नहीं कर सकता था। मैंने श्रीलंका-स्टॉल की एक लड़की के पास संदेश छोडा़ और एक किताब ली (फ्या अनुमन राजाधोन की याद में)। जिसकी इजाजत मैंने कल ही ले ली थी। मुफत में! उन्हे धन्यवाद।
मैं गलत गेट से बाहर निकला। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मुझे बस कहाँ से मिलेगी। मैंने सोलह साल के एक लड़के से, जो अनपढ़ लग रहा था, हिन्दी में पूछा।
‘‘आई. टी. ओ. कहाँ है, भाई?’’
‘‘मालूम नहीं,” उसने जवाब दिया।
मैं इधर उधर घूम रहा था यह सोचते हुए कि कहाँ जाना चाहिए। एक ठीक-ठाक आदमी मेरी तरफ आया तो मैंने उससे पूछा :
‘‘क्या आप मुझे आई. टी. ओ. का रास्ता बताएँगे, प्लीज?’
‘आप इस तरफ से सीधे निकल जाईये,’ उसने इशारे से बताया।
मैं उसके बताए रास्ते पर चल पडा़। मेरे सिर के ऊपर चाँद मुस्करा रहा है। जब मैं चल रहा था, तो वह मेरे साथ साथ चल रहा था। जब मैं रूका तो वह भी रूक गया।
मैंने उसकी तरफ सिर उठाकर देखा, उसने सिर झुकाकर मुझे देखा। कभी कभी वह बादलों के पीछे छिप जाता मुझे अकेला, अंधेरे में, छोड़ कर।
ओह, मेरे प्यारे चाँद, मैं बुदबुदाया, मैं चाँद की रोशनी के आगोश में चलता रहा जब तक मैं आई. टी. ओ. बस-स्टॉप पर न पहुँच गया। वहाँ मैंने नग्न चन्द्रमा से विदा ली।
यह थी मेरी आज की खोज, डार्लिंग! चाहो तो मेरे अनुभव को बाँट लो, न चाहो तो ना सही। सब कुछ तुम पर निर्भर करता है। और अब मैं थक गया हूँ। तुम जब मेरे पास फिर से आओगी, तब तुमसे मिलूँगा!