पति और कविता
पति और कविता
"खुशियों की तलाश," मेरी पहली रचना, मेरी अपनी जिंदगी के लिए अपने वजूद के लिए फिर से की गई एक नई शुरआत।।
मैंने लिखना स्टार्ट किया था स्कूल टाइम से, फिर कॉलेज और फिर जॉब, जैसे - जैसे जिंदगी आगे बढ़ती चली कलम कहीं न कहीं पिछे छुटती चली गई।।
जॉब करते - करते तीन साल ही हुए थे कि शादी हो गई
फिर परिवार, बच्चे घर इन सब में ही उलझ कर रह गई।।
बच्चे छोटे थे तो जॉब छोड़नी पड़ी, बच्चो के साथ - साथ खेलना - कूदना, नाचना - गाना अच्छा लगने लगा।
वक्त के साथ - साथ बच्चे बड़े हो गए और साथ मैं भी,
अब बच्चो की "क्लासेज" और कई चीजें स्टार्ट हो गई।।
कहते है न वो जिंदगी ही क्या जिंदगी जिसमें उतार चढाव न हो और वो भी शादी - शुदा जिंदगी जिसमें भूचाल न हो। एक बार पतिदेव से अनबन हो गई, कुछ बाते दिल को लग गई, दुख बहुत हुआ कि हद होती है ये मर्द ऐसा क्यों सोचते है की हम लोग कुछ नहीं करते है और तो और ‘मुछ मुंडे’ होने के बाद भी अपनी मूछ में ‘ताव’ देना क्यों नहीं भूलते है?
सोचती रही और रोती भी रही। गुस्सा भी बहुत आया कि छोड़ सब कुछ फिर से जॉब शुरू कर लूं, फिर दूसरी तरफ सोचा बच्चे किसके भरोसे छोड़ूंगी? जॉब मतलब बच्चो की एक्स्ट्रा क्लासेज ख़तम! आदि कई सवाल और उनके जवाब भी मेरे दिलो, दिमाग में जैसे युद्ध कर रहे हो, बड़ा ही विचित्र माहौल सा बना हुआ था।
एक दिन यूहीं अकेली बैठी हुई थी, पतिदेव के बारे में सोच रही थी कि कितनी मेहनत कर रहे है वो हम सब के लिए, बच्चो का फ्यूचर सिक्योर करने के लिए दिन रात काम करते रहते है।
पर गुस्सा भी अंदर था मेरे, इसका मतलब ये थोड़े ही होता है जो मर्ज़ी बोल दे। हम भी तो मेहनत करते है और वैसे भी घर दोनों के सहयोग से ही चलता है।
उस दिन मैने अपनी ‘पहली कविता’ अपने पति के नाम लिखी और सही मायने में देखो तो ना लड़ाई होती और ना आज मैं इस तरह अपनी कलम से दोबारा मिल पाती...
इसलिए मैं मानती हूं मेरी लिखने की शुरुआत मेरे पति की वजह से हुई है और अब जब कभी कैसा भी माहौल हो एक कविता रेडी रहती है।