जिन्दगी न मिलेगी दोबारा
जिन्दगी न मिलेगी दोबारा
बात दिल्ली शहर की है, सुहाना सा मौसम है भीनी-भीनी सी ठंड की शुरुआत हो रही है, आस-पास का माहौल खुशमिज़ाज सा प्रतीत हो रहा है। अपने बिज़ी दिनचर्या से आज कुछ वक़्त निकाल 'आभा' अपने लिये सबसे बेखबर हो हाथ मै कॉफ़ी का मग लिये बालकनी की तरफ़ बड़ी और एक कुर्सी का सहारा ले उस पर बैठ गयी और कॉफ़ी की हर एक चुस्की का मज़ा लेने लगी।
आभा एक 38 साल की सुन्दर, संस्कारो से भरी ,एक बेहद ही खूबसूरत दिल की मलिका है , जो हमेशा मुस्कुराती हुई, जिन्दादिल और एक मध्यमवर्गीय सयुक्त परिवार से ताल्लुक रखती है जो दिल्ली में द्वारका नामक जगह पर स्थित है।
कॉफ़ी पीते-पीते आभा की नजर रोड साइड एक प्रेमी युग्म पर पड़ी और उनको देखते ही वो भी अपने अतीत के उन बीते हुए सालों में गुम हो गयी।
बात उस समय की है जब आभा कॉलेज फ़र्स्ट ईयर की स्टूडेंट थी अपनी दुनिया में मस्त हर ग़म से अंजानी नाचती गाती अपने मम्मी-पापा के लाड़-प्यार में पली अपने भाईयों से छोटी और अपनी बहन से बड़ी। हर कोई जब कभी आभा के स्वभाव को देखता तो सिर्फ यही कहता 'तिवारी जी 'आपकी इस बेटी को तो हम अपने घर की बहू बनआएगे इतना सुनते ही आभा के पिताजी मुस्कुरा देते थे।
पर शायद वक़्त को कुछ और ही मंजूर था, आभा के घर में आभा के भाई के दोस्त का आना जाना था, आभा के घरवाले भी उस दोस्त को बेटे की तरह ही मानते थे। सब मिल कर हँसी -मजाक करते थे, अब आभा कॉलेज पास कर चुकी थी और जॉब करना शुरु कर दी थी, वो भी भाई के उसी दोस्त की कंपनी में जहीर है जान पहचान होने के नाते दोनो में बहुत सी बातें होती थी और ये बातें मुलाकातें कब मोहब्बत में बदल गयी पता ही न चला।
बात शादी तक पहुँची दोनो ने सोचा की घरवाले मान जायेगें पर हुआ बिल्कुल उल्टा। पर कहते है न प्यार परवान चढ़ता है उन का भी चड़ा और बाहर वालों के कहने में आकर दोनो ने शादी कर ली।
आभा के घर वालों का दिल बुरी तरह से टूट गया, वो लोग कई सालों तक सिर्फ़ इसी सदमें में रहे की उनकी लाडली ने ऐसा क्यो किया, और आभा को अपने घर से हमेशा के लिये निकाल दिये पर दिल से न निकाल पाये।।
दूसरी तरफ़ विनोद के घरवालों ने उपरी तौर पे इस शादी को मान लिया और समाज के बीचों बीच एक पार्टी भी दे दी पर अंदर ही अंदर इस शादी को स्वीकार नहीं कर पाये थे। उनको लगा की बेटा हाथ से न निकल जाये तो बेटे को आभा के खिलाफ़ बोलने लगे, और बेटा सोचने लगा मेरे घरवाले मुझे गलत न समझे इसलिए दो तरफ़ चाल चलने लगा। आभा को शादी के एक साल में ही पता चल गया था कि ये उसकी जिंदगी का सबसे गलत फैसला है, पर उसने हिम्मत नहीं हारी और अपने दिल में ये निश्चय किया की गलती तो उसने की है अब उसका वो प्रायश्चित करेगी, सब कुछ जानते बुझते उसने हर रिश्ते को दिल से अपनाया, बिना कुछ कहे अपने सारे कर्तव्य पूरे किये और कर भी रही है क्योंकि आभा विनोद से बहुत प्यार करती थी।
धीरे-धीरे जिंदगी आगे बड़ी आभा ने एक छोटी सी प्यारी सी परी को जनां पर ये क्या देखती है बेटी के होने से आभा के ससुराल वालो और विनोद का मुँह बना हुआ है और आभा की जिन्दगी में वो पहला दिन था जब उसे विनोद पे बहुत गुस्सा आया और माँ बनने के बाद ही आभा को एहसास हुआ की माता -पिता क्या होते है।
दिन -प्रतिदिन बढ़ते चले गये, आभा विनोद के बदले हुए रुख को समझ नहीं पाती थी, या यूँ कहूँ समझ कर भी न समझ बन जाती थी
सोचती थी छोड़ो स्वभाव ही ऐसा है जाने दो कुछ पल में ठीक हो जायेगा और जिंदगी चलती चली बेटी के एक साल बाद आभा ने एक बेटे को जन्म दिया, तो जिन्दगी थोड़ी बेहतरीन हुई। आभा और विनोद के रिश्ता भी संभला और जीवन भी सुधरा। पर बेटे के दो साल के होने के बाद विनोद कुछ सालों के लिये बाहर चला गया और इधर आभा अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रही थी। विनोद को भी डिस्टर्ब नहीं करती थी सिर्फ़ यही सोच कर की वो वहाँ पराये शहर में अकेला है और हम लोगो के लिये दिन रात मेहनत कर रहा है तो मेरा भी फ़र्ज बनता है विनोद को घर की जिम्मेदारियों से फ़्री रखूँ और उसने ऐसा ही किया।
आभा अपना घर माता-पिता सब भूल चुकी थी, और अपने परिवार छोटे-छोटे बच्चों, विनोद में मस्त हो गयी हर बात को एक कान से सुनती दूसरे कान से निकाल देती यही सोचती परिवार में ये सब लगा रहता है। पर उसे उस दिन पहला झटका लगा जब उसे पता चला विनोद का किसी और लड़की से चक्कर चल रहा है, अपने स्वभाव से सीधी आभा सीधे विनोद के पास पहुँची और तपाक से पूछ बैठी पर अपने स्वभाव के चलते विनोद ने आभा से माफ़ी माँगी और आगे से ऐसा नहीं होगा वादा भी किया आभा ने भी विनोद को माफ़ कर दिया।
बात यही ख़तम नहीं हुई विनोद की ये आदत नहीं बदली एक जाती दूसरी आती, आभा को पता चलता वो रोती विनोद को बोलती समझाती, विनोद पे गुस्सा भी कर ती उस समय विनोद माहौल को देख आभा को अपनी बातों में ले लेता, पर आभा अंदर ही अन्दर सोचती क्या पता अब सुधर जाय और विनोद को दिल से लगा लेती और विनोद के साथ जीवन के सफ़र में आगे बढ़ जाती।
पर अचानक आभा इस बार बुरी तरह टूट गयी, उसने सोचा न था की उसका विनोद उसकी माँग का सिन्दूर उसका मंगलसूत्र किसी और को पहनाने का वादा कर रहा है किसी और के साथ जिन्दगी दोबारा से शुरु कर रहा है, उसके साथ हनीमून मना रहा है और अपनी सारी गल्तियों की टोकरी आभा के सिर पर फोड़ रहा है, उसके पास आभा को नीचा दिखाने के लिये कुछ नहीं है, ये वो अंदर ही अंदर जानता है कहते है न मर्द अपनी मूंछों पर ताव देना नहीं भूलता।
वही हुआ विनोद ने आभा के लिये खाने-पीने, पहनने की कोई कमी नहीं छोड़ी थी पर आभा को वो कभी वो मान सम्मान न दे पाया जिसकी आभा के दिल में एक चाहत थी। इस बार आभा पूरी तरीके से मर चुकी थी उसे अपने बच्चों को भी भुला दिया था और मौत को गले लगाने की कोशिश करी पर भगवान को ये मंजूर न था। भगवान ने एक इन्सान को आभा की जिन्दगी में दाखिल किया उस इंसान ने आभा को फिर से जीवित किया उसकी सोच बदली उसे जीने का सही तरीका सिखाया उसने बताया की अपनेआप को भी उतनी ही इज़्ज़त दो जीतना दूसरों को देते हो, तब से आज का समय है आभा की जिन्दगी बदल गयी। आभा अब बदल गयी पर उसकी मुस्कुराहट नहीं बदली उसका स्वभाव नहीं बदला पर उसकी सोच बदली। विनोद के साथ वो अब भी रह रही है अपने सारे कर्तव्य निभा रही है क्योंकि वो जानती है विनोद एक पिता बहुत अच्छा है और उसका कोई हक़ नहीं है की पिता और उसके परिवार के बीच में आये और साथ के साथ उसने अपनी जिंदगी को एक अलग पहचान भी देना शुरु कर दिया। अपने लिये भी जीना शुरु कर दिया।।