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Yash Bagh

Tragedy

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Yash Bagh

Tragedy

पता नहीं क्यों ?

पता नहीं क्यों ?

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बस इतनी सी कहानी थी हमारी, ट्रैन में बैठे कुछ लोग मुझे देख रहे थे नीचे डूबते हुए, एक दोस्त था जो पागल था। मेरे माता पिता घर में बौठे मेरी राह देख रहे थे। एक लड़की हाथ में तोह्फा लिए स्टेशन में खडी रही और एक मैं था जो डूबते हुए भी सोच रहा था कि अगर लड़की अभी भी हाँ कर दे तो उठ जाऊँ पर साला इतनी महेनत करे कौन ? अब मन नहीं है जीने का, अब सोने में ही भलाई है, लेकिन फिर से आएंगे ज़रूर इश्क़ में डूब जाने, टाटा के नगरो में घूम जाने को आएंगे जरूर आएंगे जरूर।

टाटा से कहीं जाऊं बस बाहर जाना था। मेरी बारहवीं की रिजल्ट आये एक महीना हो चुका था।

माँ-" मेरा बेटा तो यही पढ़ाई करेंगे हम उसको कही नहीं भेजेंगे पढ़ने।"

मैं-"हमको और पढ़ाई करनी ही नहीं है मम्मी, हुमको बहार जाना है और यहाँ नहीं रह सकता।"

रोज़ रोज़ की ये बात सुन कर तंग आ गया था, सोचा बहार घूम लूँ।" एक तो साला कोई गर्लफ्रेंड बनी नहीं यहाँ पर रुक के क्या फ़ायदा। आराम से बहार रहेंगे मस्ती करेंगे। एक हाथ के एक तरफ एक लड़की दूसरी तरफ एक लड़की। वाह ! मजा ही आ जायेगा"।मम्मी पापा से ज़िद करने के बाद हमारे भुबनेश्वर यानि ओडिशा जाने की बात उठी और फिर क्या हमने वहाँ की एक सरकारकी कॉलेज की फॉर्म भरी और एक हफ्ते में मेरा नाम भी लिस्ट में आ गया। सब कुछ सही रहा और हम अगले हफ्ते भुबनेश्वर नामक अजीब सी सिटी में आ गए।

वाह ! भईया जैसा जैसा सोचा था सब उल्टा निकल गया । पढाई कम हम कॉलेज की लड़की पे ध्यानथे। वहां के लोग क्या बोलते मुझे समझ नहीं आता और हम जब बोलते वो उनको समझ नहीं आता। हमारे कुछ नए बन गए थे । कुछ हफ़्तों नें हम ,बरुन ,साहिल और आदित्य एक साथ रहने लगे । ये सभी मेरे सात बी•कॉम कर रहे थे। इनके अलावा भी मेरा दोस्त था जिसका नाम था गौतम, लेकिन वो दूसरी जगह रेहता था ।

फिर आप सोच्छ रहे होंगे की सब तो ठीक था तो प्रॉब्लम आयी कहाँ ? जी प्रॉब्लम अब आईं, आई और मुझे पूरी तरह बर्बाद कर दी। एग्जाम के दिन सभी कॉलेज आते थे और तभी हमने अपनी प्यार को देखा "छोटी सी गुड़िया जैसी कद थी, मुस्कुराने से उसकी छोटी आँखे बंद हो जाती थी।

उसके घुंघराले बाल उसके चेहरे पर बार बार आ रही थी। जिसे वो अपने हाथ से कानों के पीछे कर रही थी। बस अब और नज़र ही नहीं हटी बस उसको ही देखता गया।

कुछ देर बाद हम दोनों की नजरें मिली जरूर लेकिन कुछ देर के लिए। पता नहीं क्यूँ वो आज ही के दिन क्यों मिली, आखरी एग्जाम थी और हम सब घर जा रहे थे।टाटा जाने के बाद भी वो लड़की की याद में हम डूबे रहते थे। फिर दिमाग में एक शैतान सी चीज़ आया। मैंने अपने मोबाइल पर व्हात्सप्प खोला और हमारे कॉलेज का ग्रुप में सारे नंबर को डायरी में लिख डाला। फिर एक एक कर के सारी नंबर को ट्रूकॉलर में सर्च किया फिर मुझे जो भी नाम मिलता मैं उसे फेसबुक में सर्च करता और देखते की ये वही है लड़की है या नहीं।

करीब करीब 17 दिन में 40 नंबर सर्च करने के बाद मुझे वो नंबर मिल ही गया नाम था तृषा। फिर और क्या था ख़ुशी से ना और जो जगह भुबनेश्वर मुझे पहले पसन्द न थी अब मुझे पसंद आने लगी थी। करीब एक महीने के बाद कॉलेज खुला। "जो लड़का कॉलेज जाता नहीं था अब वो रोज़ रोज़ कॉलेज जा कर अपना वक़्त बिताता था उसे सिर्फ देखने के लिए।

उसको मुस्कुराते हुए देख कर हम बहुत खुश हो जाते थे। आखिर कर हिम्मत जुटा कर हमने उसे उसके जन्मदिन के दिन मैसेज किया। हम नहीं चाहते थे वो हमें फ्रुएंडजोने में डाल दे इसलिए हमने दूसरे मैसेज में ही आई लव यू लिख डाल कर भेज दिया। देखने के बाद वो कुछ न बोली तो मैंने अपने सारी मन की बात उसे बता दी। हम इतने डरपोक थे की उससे मिल नहीं पाते थे लेकिन बेशर्म की तरह मैसेज पे मैसेज करते थे।

कुछ दिन बात करके पता चला की वो वही भुबनेश्वर की रहने वाली थी और ख़ुशी की बात ये थी की उसका कोई बॉयफ्रेंड नहीं था। ये सब सुन कर हम बहुत खुश हो गए। हम दोनों रोज़ रात के 9 से 2 बजे तक लगातार बात करते थे। हम इतने बेशर्म थे की उससे पूरी रात बात कर ले लेकिन वो 2 बजे सोने जाती थी। हम उससे रोज़ पूछते थे की" क्या तुम कल कॉलेज जाओगी ?" अगर जवाब हाँ आता तो मैं भी चला जाता उससे देखने के लिए।

अगर कोई लड़की बात नहीं करती तो मैं भी उससे परेशान नहीं करता। लेकिन वो भी मुझे मैसेज करती थी मानो मेरे लिए ही वो रोज रात 9 बजे ऑनलाइन आती हो लेकिन उसने कभी भी नहीं कहाँ की वो मुझसे प्यार करती हैं या वो मुझे पसन्द नाज करती। मैंने उससे पहले ही बता दिया था अगर पसन्द नहीं हूं तो बता देना मैसेज नहीं करूंगा लेकिन वो कहती थी की तुम अच्छे हो। ये सब सुन कर मुझे लगा की वो भी मुझसे प्यार करने लगी है लेकिन बता नहीं पा रही। मुझे उसकी मुस्कराहट इतनी अच्छी लगी की मैंने उसकी एक फोटो देख कर उसकी स्केच बनाई थी जो रूबरू उसकी तरह दिखती थी।

स्केच बनाना जानता था लेकिन बनाता नहीं था लेकिन क्या करे इस बार मजबूर जो थे। एग्जाम के दिन भी वो स्केच बनाने में लगा रहता था। स्केच बनाते वक़्त मुझे मेरी मम्मी की बात याद आयी-"बीटा यश कभी तो कोई ड्राइंग बना लिया कर इतना अच्छा सीखा हुआ हैं"।तीन साल में पहेली बार ड्राइंग बनाई तो क्या तृषा की स्केच। बहुत प्यार करता हूँ उससे लेकिन उसने मुझे कभी मना नहीं किया ये बात को लेकर। रोज रात के दो बजे तक बात करते थे कोई भी लड़का लड़की दोस्त नहीं बोल सकते कौन सा दोस्त रात को 2 बजे तक बात करता है बताओ मुझे ?

प्यार ज़्यादा न चला 4 महीने बाद उसकी हरकतों में बदलाव आने लगे जो वो तुरंग मैसेज का रिप्लाई करती थी अब वो एक दो घंटे बाद देतीं थी। उससे भी ख़राब बात बताऊँ तो आज के मैसेज का रिप्लाई कल तक आता था। लेकिन फिर भी हम उसके मैसेज का इंतज़ार में रहते थे एक दिन, दो दिन, तीन दिन जैसे ही मैसेज आता मैं तुरंत अपना मैसेज भेज देता और उसका रिप्लाई आने का इंतज़ार करता फिर। मुझे पता था वो मुझे इग्नोर करने लगी है लेकिन पता नै "क्यों"? अचानक से ऐसा क्या हुआ। मेरा मन नहीं लगता था उसके बिना अब हर रात उसकी बनाई स्केच और पुराने मैसेज को देक कर उसकी याद में रोया करता था। उसके बाद से तृषा का मैसेज आना बंद हो गया था लेकिन मैं रोज़ मैसेज खोल के देखता था कि शायद अब मैसेज आजाये, अब आये ,लेकिन कभी न आया। कॉलेज तो वो आती थी लेकिन मेरी तरफ नहीं देखती थी।

जब एग्जाम के नंबर मिले तो मेरे नंबर मेरे रूमट्स से ज़्यादा थे। मैं पहले से ही कॉमर्स का था तो मुझे कुछ कुछ चीज़ें आती थी जिसे मैं बिना पढ़े भी कर पाता था लेकिन बाकी के तीन लोग मेरे नंबर ज़्यादा आने पर खुश न थे। उनका कहना था " यश एग्जाम के दिन मस्ती करता था हमारे साथ और रात में खुद पढ़ के पास हो जाता हे, यश एग्जाम मेजन 3 घंटे बैठता है और हम 30 मिनट में ही आ जाते है"।मेरा दिल ऐसे ही टुटा था कि इन लोगो के साथ रहने में मुझे अजीब लगने लगा था। रोज़ रात को मैं पढ़ता नहीं था, मैं तो बाहर हवा को महसूस कर के तृषा की याद में रोता था और पूछता था कि "क्यों किया उसने"? कुछ दिन के बाद तृषा ने मुझे ब्लॉक कर दिया मैसेज पे। अकेला हो गया था बिलकुल मेरे रूममेट्स ने मुझे नाश करने के झूठे आरोप में फंसा कर मुझे घर से निकलवा दिया। अब न तृषा थी न दोस्त सिर्फ एक शहर जिससे मैं अंजान था।

एक छूटा सा घर मुझे किराये पे मिला और मैं वहां पर अकेले रहने लगा। चार दीवारी के अंदर न दोस्त न कोई अकेले खाना बनाओ, अकेले खाओ, अकेले घूमो, अकेले करो सब कुछ। कभी कभी बहुत रोता था अपनी हालात देख कर और खुद से बात करता था सोचता -"काश मैं घर पे ही रहता यहाँ न आता"। माँ की बहुत याद आती। कभी कभी खाना पकाते वक़्त हाथ जल जाता। खाना जैसा व् बनता चुप चाप खा लेता। फिर रोज़ रात तृषा की मैसेज का इंतज़ार करता। उसकी स्केच संभाल के रखा था कि किसी दिन दिखाना न पड़ जाए। मन में सोचता "सच्च नहीं तोह झूठा प्यार ही कर ले" रोज़ राह देखता हूं तेरा क्या मैं इतना बुरा हु । बस प्यार ही तो किया था यार"।

मेरी ये हालात और अकेला पन देख गौतम ने मेरे साथ रहने का मन बना लिया। मेरे अकेलेपन को दूर कर खुशिया लाने की कोशिश कर रहा था वो। तृषा की स्केच मुझे हमेशा उसकी याद दिलाती थी। ऐसे ही चलता रहा और हम बी.कॉम के आखरी साल में आ गए लेकिन फिर भी तृषा को अपने दिमाग से निकाल न पाया।

पता नहीं क्यूँ पहले से कमज़ोर महसूस करने लगा था ।हड्डी में दर्द होने लगी थी और बुखार सर दर्द होने लगा था। दवा लेने के बाद भी मेरी हालात ठीक न हुई टी। मैंने डॉक्टर को दिखाना सही समझा डॉक्टर ने मुझे दवा की लिस्ट दी और है हफते चेक करने मेरे रूम में आते थे । लेकिन मेरी हालात और ख़राब होते गयी और चेहरा पीला होने लगा था। मेरे माँ बाप ने मुझे घर लौटने को कहा। घर जाने की तैयारी हो ही रही थी की मेरे doctor का फ़ोन आया।

मैंने अगले दिन कॉलेज जाने का मन बनाया। पहला क्लास ख़त्म हुआ तो मैंने जाके दरवाज़ा बंद कर दी ताकि कोई जा न सके और क्लास के बीच आ गया।

"देखिये हम जो भी कहने जा रहे है हो सके आपको समझ न आय लेकिन कोशिश करना समझने की क्योंकि मुझे सिर्फ हिंदी ही आती है। सबसे पहले हम अपने मम्मी पापा को सॉरी बोलना चाहते हैं उन्होंने मुझे बाहर भेजा पढ़ने को लेकिन मैं कुछ ख़ास नहीं कर सका हमने बेशक उन्हें नाराज़ किया लेकिन हम उनसे बहुत प्यार करते है। मुझे पता है हम बाहर शहर से है इसलिए आप लोग मुझे पसंद नहीं करते, हम आपकी भाषा नहीं बोलते इसलिए लोग मुझसे दोस्ती नहीं करते लेकिन मेरा यकीन करो मुझे किसी से भी शिकायत नहीं है"।

सब मेरी तरफ देख रहे थे , गौतम रो रहा था तृषा भी आई थी आज।

"मुझे ब्लड कैंसर है, ये बात मुझे कल पता चली। बच नहीं पाउँगा शायद डॉक्टर से कहा मुझे थर्ड स्टेज कैंसर है और वक़्त काफी कम है"।अचानक से क्लास शांत हो गया।" मेरा सफर यही तक था जा रहा हूँ अब शहर छोड़ कर, अगर किसी को मेरे तरफ से कोई तकलीफ हुई हो तो माफ़ कर देना"। मैंने रोते रोते अपना बैग उठाया और चल दिया। दोपहर 2 बजे टाटा जाने वाली ट्रेन थी। स्टेशन में ट्रैन आई गौतम मुझे अंदर ले जा रहा था कि मेरे क्लास के कुछ लोग और पुराने रूममेट्स मुझसे मिलने आए और साथ में तृषा भी थी। पता नहीं क्यूँ लेकिन तृषा को देख कर अच्छा नहीं लगा। सभी ने मुझे गले से लगा लिया और रोने लगे। तृषा को पहली बार रोते देखा वो रोते हुए भी सुन्दर लग रही थी। तृषा ने मुझे बताया कि गौतम ने उससे सब कुछ बताया कि कैसे तुम अब भी मुझसे प्यार करते हो ,ये बात सुन कर मैं खुश हो गया। सोचा "अब मुझे मेरे क्यों का जवाब मिल जाएगा"। तभी ट्रैन की सिटी बजी और ट्रेन चलने लगी। मैंने अपने बैग से एक छूटा सा फ्रेम के आकार का बॉक्स निकाल कर तृषा को दिया और ट्रेन में चढ़ गया वो ज़ोर ज़ोर से रोने लगी और कुछ बोल नहीं पाई। तृषा बॉक्स खोल रही थी की मैंने कहा" क्यों तृषा क्यों प्यार करता हूँ तुमसे बहुत , देख दो साल हो गए तुम अब भी मुझसे जुड़ी रही लेकिन ये बॉक्स तुझे देने के बाद तुझे और कभी याद नहीं करूंगा। खोलना ज़रूर लेकिन ट्रैन जाने के बाद।

ट्रैन की रफ़्तार बड़ी और मुझे उस अंजान शेहर से दूर ले गया।

ट्रैन में बैठे बैठे ये सोच रहा था कि उससे मेरा बनाया हुआ स्केच कैसे लगा होगा। वो स्केच मैंने बॉक्स में डाल कर रखा था और रेत से ढक दिया था। पहले बस एक सवाल था कि उसने मुझसे क्यूँ बात करना बंद कर दिया, अब दूसरा सवाल ये है कि मैं क्यूँ उससे इतना प्यार करता हूँ। बस मन में क्या लगा मुझे पता नहीं चलती हुई ट्रैन से नीचे नदी पर कूदने का मन किया, सोचा ऐसे भी मरना है तो जीने का क्या फ़ायदा।


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