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Ramandeep Kaur

Inspirational

2.0  

Ramandeep Kaur

Inspirational

प्रसाद के मीठे दाने

प्रसाद के मीठे दाने

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जब हालात खराब हो, तो हम अपने से ज्यादा शक्तिशाली से मदद मांगते हैं। यदि शारीरिक बल की जरूरत हो तो बल-वान के पास जाते हैं और यदि धन की आवश्यकता हो तो धन-वान के पास पहुंच जाते हैं। सोच कर देखो ज़रा कि जब हम परेशानी में किसी पर आस लगाकर मदद मांग रहे हों और वह हमें अपमानित कर अपने दर से वापस भेज दे तो कैसा लगेगा? जिस काम के लिए आए हैं वह तो रह ही जाएगा ऊपर से अपमान का बोझ, जो ना चाहते हुए भी ज़हन पर जिंदगी भर रहेगा!

सफेद साड़ी पहनी एक वृद्ध महिला अक्सर पूर्णिमा, अमावस्या, एकादशी को गलियों में घूम घूम कर घरों से मांगा करती थी और मांगी हुई चीज़ें अपनी टोकरी में रखकर कुछ मीठे दाने प्रसाद स्वरूप दे जाया करती थीं। उसी मुहल्ले में रिया भी अपने परिवार के साथ रहती थी, माई उनके घर भी पर आती और बड़ी बेतक्लुफी से मेन गेट खोल कर अंदर आंगन में आराम से बैठ जाया करती थी। रिया की मम्मी उन्हें अपनी सुविधा अनुसार कुछ दान दे दिया करती और बदले में माई कुछ मीठे दानों का प्रसाद उनकी की हथेली पर रखते हुए अनेक शब्द आशीर्वाद में कह जाती। कभी कभी माई अपनी डिमांड भी रख दिया करती जैसे साड़ी, चप्पल, कम्बल या कुछ और काम की चीज़ें। माई की जो बात रिया को बहुत अखरती थी वो यह की वे बोलती बहुत अकड़ कर थी। रिया को लगता था कि यह यहां बैठकर इस तरह रॉब झाड़ती हैं, मानो किसी शोरुम में बैठीं कुछ पसन्द कर रही हैं। “मैं पहनी हुई साड़ी नहीं पहनती मुझे नई ले कर देना, मैं ऐसी हूं मैं वैसी हूं।

एक दिन रिया के घर मेहमान आने वाले थे, सुबह से ही सारा परिवार अपने कामों में वयस्त था। माँ रसोई में पकवान बनाने में लगी थी। उसी समय माई आ कर बाहर आंगन में बैठे गईं, और लगातार माँ से उनकी किसी मांग पर सख़्त स्वर मे चर्चा कर रहीं थी, रिया की माँ उन्हें समझाने की कोशिश कर रही थी की आज जो है वह लेकर चली जाएं बाद में बाकी चीज़ों के बारे में भी बात कर लेंगे। पर माई तो कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थी, और तो और बड़ा अकड़ कर अपनी बात सुना रही थी। यह सब देखकर रिया को बहुत गुस्सा आ गया और उसने उनसे कहा कि आप कृपया करके यहां से चले जाइए और माँ की ओर चुप रहने का इशारा करते हुए कहा कि, कभी मांगने वाला भी अपनी चॉइस रखता है। यह भी कोई बात हुई मम्मी ने रिया को बहुत रोकना चाहा कि किसी के सामने यह सब ना करे, पर रिया ने एक ना सुनी और माई को सादर, बिना कुछ लिए ही घर से चले जाने के लिए मजबूर कर दिया। किसी के साथ बुरा व्यवहार करके रिया को बुरा तो लग रहा था पर वह बस इस बात से संतुष्ट थी कि वह अपनी मम्मी की रक्षक बनकर खड़ी थी।

अक्सर शाम को रिया के दादाजी सैर के बाद उनके घर के लॉन में बैठकर परिवार के सभी सदस्यों से बातें किया करते थे। उस दिन बातों बातों में रिया की माँ ने सुबह की यह घटना दादाजी को सुनाई। उस दिन तो दादा जी ने कुछ ना कहा, इधर उधर की बातें करके चले गये। एक दिन दादा जी ने रिया को अकेले में बुलाकर जो बात समझाई वही तो संस्कारों की नींव बन कर इन्सान के जीवन का आधार बनती हैं।

उन्होंने कहा, “बेटा मांगने वाले और देने वाले दोनों में अपना अपना गुण होता है। मांगने वाले की कोई पसंद नहीं चलती और देने वाले का अहम् नहीं चलता। एक बार यह सोचो कि यदि कोई आपके दरवाज़े पर आकर कुछ मांग रहा है तो इसका मतलब प्रभु ने आपको देने योग्य बनाया है। देने योग्य बने हो तो देने का गुण भी आना ही चाहिए। क्या और कितनी मात्रा में देना है, यह दानी के सामर्थ्य से निर्धारित हो सकता है, पर याचक की आस को तोड़ना दानी का व्यवहार नहीं होता।

दादा जी ने रिया से पूछा, सोचो, यदि तुम को कुछ चाहिए तो तुम किसके पास जाओगी?

रिया ने कहा, “आपके पास या मम्मी पापा के पास जाऊंगी।”

दादा जी ने फिर पूछा, “और यदी हमारे पास से कुछ ना मिला तो किसके पास जाओगी?

रिया ने कहा, “तो फिर भगवान के पास जाऊंगी।

तब दादा जी बोले कि, तुम्हें यह तो पता हि है ना कि भगवान के पास सब के लिये सब कुछ है, तो सोचो यदि हम और उस पर से भगवान भी तुम्हें इसी तरह अपमानित कर अपने घर से निकाल दे, तो फिर तुम कहां जाओगे?

दादाजी ने रिया को बढ़े प्यार से समझाते हुए कहा, "देखो बेटा याचक उसी के पास जाता है जिसके पास देने की क्षमता होती है और देने वाले को याचक को खाली हाथ नहीं मोड़ना चाहिए।" यदि कोई चीज़ आप देने में सक्षम नहीं हो तो आप उन्हें प्यार से समझा सकते हो।

कई बार कुछ लोग अकड़ कर बात करते हैं या अपना महत्व दर्शाने की कोशिश करते हैं, पर वे आपसे ज्यादा खुद ही की मानसिकता को यह एहसास दिलाते रहते हैं कि वे किसी से कम नहीं हैं। इसलिए आप अपना रोल अदा करो, यदि आप याचक हो तो प्रेम से मांगो, और यदि दानी हो तो चाहे जो भी दो हर्ष से दो।

कई दिनों तक रिया इस विषय में सोचती रही। बूढ़ी माई भी फिर उनके घर की ओर नहीं आई। अब तो रिया को बुरा लगने लगा था उसने दादा जी से इस विषय पर बात की, उसने पूछा, “दादाजी मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है, मैं अपनी ग़लती को सुधारना चाहती हूं।” तब उन्होंने कहा, आने वाली पूर्णिमा को गली में ध्यान रखना आसपास कहीं भी वे नजर आए तो तुम उनके पास जाकर उनसे हाथ जोड़कर माफ़ी माँगना वे तुम्हें ज़रूर माफ़ कर देंगी।

रिया ने कैलेंडर पर आने वाली पूर्णिमा की तारीख़ पर चिन्ह लगा दिया। उस दिन सुबह से ही वह गेट के आसपास ध्यान रखने लगी अचानक दूर से उन्हें आते देखा तो रिया दौड़ी दौड़ी उनके आसपास पहुंच गई। रिया ने उनसे माफ़ी मांगी और उनसे अपने घर चलने के लिए आग्रह किया, माई को किसी से अपने लिये इस व्यवहार का बिल्कुल अंदाजा नहीं था, वह बहुत हैरानी से रिया की ओर देख रही थी। रिया ने माई की टोकरी पकड़ी और दूसरे हाथ से माई का हाथ पकड़ कर अपने घर ले आई, इधर रिया की माँ ने माई के लिये चाय और पराठा बना रखा था पर उन्होंने पूर्णिमा का उपवास है यह कहकर सिर्फ चाय पी और बदले में रिया के हाथों में कुछ मीठे दाने प्रसाद के रूप में दिए और ढेरों आशीर्वाद जिनकी तो कोई कीमत लगाई ही नहीं जा सकती।

यही वे संस्कारों की नींव के पत्थर हैं जो एक एक करके इंसान के व्यक्तित्व का मज़बूत आधार बनते हैं। इस श्रंखला में और भी शिक्षाप्रद कहानियां जोड़ती रहूँगी।


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