परिवर्तन
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नीता कॉलेज के लिए निकल रही थी तभी उन्होंने आवाज दी " ऋत्विक बेटा, नाश्ता कर लेना और दरवाजा भी बंद कर लो।" "जी माँ" कहता हुआ ऋत्विक सामने बाइक की चाबी के साथ खड़ा था। "अरे तुमने नहा भी लिया।" "हाँ माँ, चलिये आप को छोड़ देता हूँ" "अरे नहीं, मैं तो रोज जाती हूँ, चली जाऊंगी, तुम अपनी छुट्टियों का मजा लो" उसने हंस कर कहा। ऋत्विक ने उन्हें कंधे से पकड़ा और बाहर की ओर ले चला और कॉलेज छोड़ कर ही माना। कितना बदल गया है इस बार ऋत्विक वरना उसे हर चीज हाथ मे ही चाहिए होती थी। आज ऋचा भी जल्दी कॉलेज चली गई थी सारा काम अकेले करने में वो थक भी गईं थीं। बाइक से आना बड़ा सुकून दे गया। दो बजे जब वो घर पहुँची तो ऋत्विक ने बिना बेल बजाए ही दरवाजा खोल दिया। "अरे,तुम इंतजार कर रहे थे मेरा।" "हाँ माँ, बैठो और पानी पियो।" "अरे नहीं तुझे भूख लगी होगी जल्दी से कपड़े बदल लूँ और दाल चढ़ा दूं। फिर बैठती हूँ," "अरे माँ, पहले आराम से बैठ कर पानी पियो, फिर खाने के बारे में सोचते है" तभी ऋचा भी कॉलेज से आ गई। दोनो ने पानी पिया फ्रेश होने चली गई जब दोनों रसोईघर की ओर गई तो देखा खाने की मेज पर खाना लगा हुआ था।
"अरे,शुभ्रा मासी आयी थी क्या ? लंच तो रेडी है।" वो मुस्कुराया "नहीं माँ मैने एक कुक रख लिया है। अब खाओ और बताओ कैसा बनाया है।" शाही पनीर और भिंडी के साथ रोटी ख़ाना वाकई स्वादिष्ट था। दोनो ने खूब तारीफ़ की और पूछा " बताओ न किसने बनाया ?"
"मैंने बनाया माँ" वो धीरे से बोला । नीता और ऋचा दोनो अवाक रह गईं। "तुमने इतना अच्छा खाना बनाना कब सीखा ?" वो नज़रें नीची किये बोलने लगा " माँ मेरा एक दोस्त है उसकी मम्मा का पोलियो से एक पैर खराब है और उसके भी पापा नहीं हैं फिर भी वो उसे बी. टेक.करवा रही हैं। एक दिन मैं उसके घर गया देखा आंटी परीक्षा की कापी चेक कर रही थी और वो खाना बना रहा था। मैंने कहा तू खाना बना लेता है ? तो वो बोला हाँ यार मेरी कोई बहन तो है नही मां थक जाती है, तो उनकी मदद करने के लिए मैंने सीख लिया, खान बहुत अच्छा बनाता हूँ और माँ उसकी मम्मा इतने गर्व से उसे देख रही थी तो मुझे समझ आया आप हमारे लिए कितना करती है और हम बच्चे कितने एहसान फरामोश होते हैं। तभी मैने उस से खाना बनाना सीख लिया।"
ओह ! कितना बदल गया है मेरा लापरवाह ऋत्विक सोचते हुए कुछ बोले बिना उसे बॉंह में भर लिया।