परिवार
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आज फिर वही भोली सी, 7 या 8 साल की लड़की, ट्रैफिक सिग्नल पर, भीख मांगती हुई।लगभग 1 महीने से रागिनी, यह दृश्य देख रही थी और इस छोटी सी लड़की की गहरी आंखे कुछ तो कह रही थी मौन में, पर क्या?रागिनी समझ नही पा रही थी।
आज रागिनी रक नही पाई खुद को?जैसे ही वो छोटी सी लड़की सामने आई , रागिनी ने पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है"
वो लड़की जैसे अपनी आंखों से कुछ कह रही थी, पर बोल नही पाई।बस आंखों से झर झर अश्रु बह रहे थे।
रागिनी को जैसे उस लड़की का व्यक्तित्व अपनी ओर खींच रहा था, वह निकलना चाहती इस अनकहे दर्द से उसको, पर कैसे?जब वह बोल ही नही पा रही, तो कैसे जाने वो कुछ।
सहसा रागिनी ने सोचा, चलो आज दिन भर ही इसके आस पास रहते है, जब सांझ होते ही यह लड़की आपने परिवार के पास जाएगी, तब वास्तविकता का पता चलेगा और दर्द का समाधान मिलेगा।
रागिनी ने अपने कुछ दोस्तों संग उस लड़की का पता किया,
वह फूटपाथ पर बने घास फूस के झोपड़े में रहती थी, रागिनी वहाँ पहुंची, तब देखा उसकी माँ तेज बुखार से तप रही हैं और कोई नही था पास, केवल वही छोटी लड़की, जो चिंता से बोल ही नही पा रही थी।पास में दिन भर भीख में मील हुए भोजन के कुछ पैकेट, कुछ 10 या 20 रुपये, फटे पुराने कपड़े।
रागिनी ने तुरंत उसको और उसकी माँ को अस्पताल पहुचाया।पूरी देखभाल की दो दिन तक।
अब सब ठीक था, छोटी भी बोलने लगी, डर जो दूर हो गया था।रागिनी दोनों को अपने घर ले गयी, और छोटी का भी एडमिशन कर दिया।अब रागिनी के पास भी कोई अपना था, आखिर वह भी तो बरसो से माँ पिता के अकस्मात निदान से अकेली थी, अब वो भी खुश थी इस अपनाए हुए परिवार के साथ और छोटी और उसकी माँ भी, आज रागिनी के उपकार से सिर उठाकर अपने पैर पर जो खड़ी हो पाई थी।कोरोना ने दोनों के परिवार को तो डस लिया था, पर आज दर्द ने दिलों को मिलाकर एक परिवार बना दिया था, प्रेम से सजा, त्याग, करुणा, सहानुभुति की नींव से सुशोभित एक परिवार, जहाँ रागिनी, छोटी और उसकी माँ थी प्रेम के सूत्र में बंधी हुई।।