हाँ यही है जिंदगी
हाँ यही है जिंदगी
आज फिर वही भोर और वही रोज का शोर।कही ट्रैफिक की आवाज़,कही रोज की भागदौड़।सड़क के किनारे की एक छोटी सी झुग्गी और भूख से बिलखते छोटू और छोटी।
सोच रही थी ममता कि क्या करूँ,कहाँ से पूरी करूँ मैं जरूरते।कैसे ख़िलाऊ छोटू और छोटी को खाना।पेट की अग्नि तो अन्न मांगती हैं, जो मेरे पास है नही।रिक्शा चलकर रोजी कमाने वाला मदन भी आज बेरोजगार हैं, कौन पूछता हैं आजकल रिक्शा,कौन सोचता है हमारी परेशानी,किसी को क्या है कितनी भी हो दर्द से बिलखती जिंदगी।
तभी छोटी आई माँ ममता के पास,बोली,"माँ, ये बर्थडे क्या होता हैं?वो देखो बाहर लोग खाना दे रहे हैं और कह रहे आज उनके बेटे मिहिर का बर्थडे हैं, सब लोग पेट भर खाओ और आशीष दो मिहिर को।क्या हम भी जाये माँ?"
क्या करती ममता,बुझे मन से सहमति दे दी,आखिर उसके पास था ही क्या जो दो दो मासूमो को खिलाती।सोच रही थी कि क्या यही है जिंदगी,जब कुछ नही होता,तो स्वयं नारायण कुछ न कुछ रास्ता बना देते हैं।अगर यही आशा की किरण कुछ कमाई का रास्ता बना दे तो कुछ कर सके।आखिर केवल भूख ही तो नही,अन्य जरूरते भी हैं,कपड़े,पढ़ाई और भी बहुत कुछ।
तभी न जाने कहाँ से एक कागज उड़ कर वहाँ पंहुच गया।पढ़ी लिखी थी ममता,भले ही कम पर पढ़ना तो जानती थी।उसने देखा,महिलाओं को निशुल्क सिलाई का कोर्स और रोजगार के लिए एक सिलाई मशीन सरकार की ओर से,वो भी पास में ही।शायद फिर से नारायण आये और सुन गए मन की बात।
फिर क्या,सीख लिया ममता ने और आज ममता के पास अपना काम है, कमाई है और स्वाभिमान भी साथ साथ बच्चो को अब ये भी पता है कि बर्थडे क्या होता है, आखिर स्कूल जो जाते हैं , कुछ उत्सव भी हो जाते है, चाहे छोटे ही।
शायद यही है जिंदगी, आशाओं के दीप से जीवन सजाना, संघर्षो से न घबराना,हाँ यहीं तो है जिंदगी।सोचकर ममता की आंखों में आँसू छलक आये।।