परिचय
परिचय
"बदतमीज़ ..जाहिल..गँवार औरत.…"और एक तड़ाक की आवाज़ के साथ खामोशी।
अचानक सरिता को होश आया..घड़ी पर नज़र गयी 11 बज चुके थे...मतलब वो दो घण्टे से ज्यादा बेहोशी रही..।दो घण्टे पहले का घटनाक्रम सामने आ गया।
"तुझ से मैंने कितनी बार कहा है कि ध्यान से खाना बनाया कर और ये बाल कैसे आ गया"..थाली पटकने के साथ एक जोर का थप्पड़ भी सरिता के गालों में पड़ा और वो दरवाज़े से जा टकराई...
सरिता उठी बिखरे खाने को उठाने लगी। घर को व्यवस्थित कर मशीन में कपड़े डाल सुबह के बर्तन जल्दी जल्दी साफ करने लगी अभी तो दिन का खाना भी तो तैयार करना था।मशीन की तरह तेजी से काम करने लगी उसे तो दो बूंद आंसू भी अपने लिये गिराने का समय नहीं था। सुबह का नाश्ता तो ऐसे ही चले गए...सुमेर दुकान से आता ही होगा फिर बच्चे भी .…ऊफ़्फ़
"सुन सरिता अब तुझ से कोई गलती नहीं होनी चाहिये"खुद से बड़बड़ाती हुई वो बोली..
सब काम हो चुका था ..उसने सलाद काट के करीने से टेबल में लगा दिया। तभी सुमेर बच्चों को लेकर आया।बेटी बोली -"मम्मा ये आपकी आँख में कैसे सूजन आयी और माथे में तो खून भी लगा है।सुमेर खिसिया कर तपाक से बोल उठा.."क्या हुआ तुझे..जरूर फिसल गयी होगी..चलो दवा लगा दूँ.."और फिर बच्चों के सामने दवा लगाने लगा।खाने की टेबल में भी बच्चों के सामने बोलने लगा "वाह तुम्हारी मम्मी कितना अच्छा खाना बनाती है"।
बिटिया बड़ी हो रही थी उसे पिता की आँखों में झूठ और माँ की आँखों में बेबसी साफ नजर आ रही थी।
वक़्त की नज़ाकत समझ चुप रही और बोली माँ हमारे स्कूल में डिबेट कॉम्पटीशन है टॉपिक 'समाज में स्त्री की दशा है'...मैने भी इसमें भाग लिया है पहला राउंड क्लीयर हो गया है अब दूसरा और फाइनल राउंड है जिसमें मातापिता को भी आना है ।
सरिता और सुमेर नियत समय पर बिटिया के स्कूल पहुँच गए।बिटिया की बारी आयी और वो बोली।
" पुरुष स्त्री की परवाह नहीं करता उसे मात्र वस्तु समझता है..जब जी चाहा तब प्यार वरना दुत्कार देना..स्त्री के पास तो स्वयं के लिये आँसू भी नहीं बने हैं..उसने पुरुष से इतनी चोट दिल पे खायी होती है कि उसे उसके जिस्म पर पड़ी चोट का अंदाज़ा भी नहीं रहता..और वो स्त्री सब कुछ भूलकर उसकी लम्बी उम्र की कामना के लिये करवाचौथ पर निर्जला व्रत रखती है..नियति तो देखिये स्त्री की उसे जन्म लेने वाले कुल से नहीं पहचाना जाता..उसका दुर्भाग्य देखिये उसे आशीर्वाद भी खुद के लिये न मिलकर पति की लंबी उम्र के लिये ही मिलता है"...
सरिता की आँखों से सूख चुकी अश्रुधारा बह निकली ....वहीं सुमेर भी खुद की नज़रों में गिरता जा रहा था।उसकी चौदह वर्षीय बेटी ने आज उसे उसके ज़मीर से परिचय करवा दिया।पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा...और परिणाम स्वरूप मेडल बिटिया के गले में था।