STORYMIRROR

Sunil Agrahari

Inspirational

3  

Sunil Agrahari

Inspirational

#पिता जी के साथ रेल यात्रा

#पिता जी के साथ रेल यात्रा

3 mins
179

अपाहिज शिष्टाचार        

यात्रा वृतांत (सत्य घटना )

लोकल ट्रेन स्टेशन पे रुकी रोज़ की तरह, आँखे तलाश रही थी मेरी बैठने की जगह, मैं घुसा लोकल रेल डिब्बे में पिता जी के साथ, तभी एक बुज़ुर्ग ने आवाज़ दी मुझे, हिला के हाथ, कहा, आओ बेटा यहाँ बैठो बाबू जी के साथ। वो डिब्बा था ख़ास अपाहिज और बीमार लोगों का, चारों तरफ उम्मीद, दर्द, शांति, जैसे से भरे हौसलों का, उसमें कोई महिला गर्भावस्था में, तो कोई बुज़ुर्ग ज़र्ज़र अवस्था में, जीवन की चाह से भरपूर ज्यादातर लोग दुखों से द्रवित बैठे थे मैं भी जा रहा था कराने पिता जी का उपचार, बुढ़ापे में दिन बचे है अब थोड़े से चार सब की कोशिश है की जीए दिन हज़ार। मेरे पिता जी ऊपर से स्वस्थ मगर अंदर थे कैंसर से ग्रसित, ज़िन्दगी कर रही थी उन्हें हर पल भ्रमित, बाकी बैठे लोग संतुष्ट है या असंतुष्ट,  समझ नहीं पा रहा था मै था असमंजस में, क्यों की इंसानियत की नूर टपक रही थी इनके सब के चेहरे के नस नस में,  मगर हाव भाव थे ऐसे, जीयेंगे सदियों जैसे इनमें से कुछ की ज़िन्दगी की शाम ढलने वाली है, उनके ज़िन्दगी की चाह भोर की लाली है, लेकिन उन्हें ज़रा भी ना था मलाल, सब कर रहे थे एक दूजे का ख़याल,  दूसरों के आँसू पोंछने को निकल रहे थे कई रुमाल, कौन है किसका सगा कौन पराया कुछ पता ही नहीं चल रहा था, ये बात थी कमाल, ये सब देख कर मैं कर रहा था उनके ज़िन्दादिली को मन ही मन सलाम, यहाँ के माहौल आपसी भाई चारा, प्यार मुहब्बत, इंसानियत से मेरी आँखें नम, ह्रदय करुण क्रंदन कर रहा था अचानक इन सब के बीच "टाटा मोरियल कैंसर अस्पताल आ गया, मैं उठा, पिता जी उठे और ....... "उठा मेरे मानस पटल पर एक झकझोरता सा सवाल", क्या होता जा रहा है आज कल हमारी आने वाली पीढ़ी में कुछ लोगों के सामाजिक संवेदनाओं को ? जिनको, ख़ुदा ने बख्शी है पूरी नियामत, घर परिवार से सुखी और शरीर से सलामत, वो क्यों हो रहे है इंसानियत से दूर मस्ती में चूर और स्वार्थी ? अपने धुन में मशगूल नहीं मतलब किसी की भी हो अर्थी, क्यों वो लोग किसी की परवाह नहीं करते? उनका भी वक़्त आएगा क्यूँ नहीं डरते ?क्यों नहीं बढ़ते हाथ एक अदद ?किसी की करने को मदद, कब जागेगी सहानुभूति असहायों के लिए ?धन के नशे में चूर, पढ़े लिखे अज्ञानी, सभ्य समाज के वासी, शायद ऐसे लोगों का शिष्टाचार अपाहिज हो रहा है, ऐ मेरे ख़ुदा मेरी आप से है दुआ, उन बेगैरत लोगों को, जिनको गुमाँ है अपनी नियामत पर,  उनको दुःख का एहसास ज़रूर कराना उनकी परिभाषित इंसानियत पर, शायद ठीक हो जाये उन लोगों का अपाहिज शिष्टाचार। 

मेरे पिता जी तो स्वस्थ हो गए लेकिन इस दुनिया रुपी ट्रेन के डिब्बे में मेरी यात्रा जारी है, मुझे इंतज़ार है उन अपाहिज शिष्टाचार वालों के ठीक होने का। मुझे मेरे पिता जी के द्वारा सिखाए हुए शिष्टाचार, संस्कार ने मुझे एक आदर्श नागरिक बनने में बहुत मदद की है और वही संस्कार परम्परा मै अपने बच्चों में डाल रहा हूँ, जिससे कि वो एक बेहतर नागरिक बन कर अपने देश समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें। सादर चरण स्पर्श, पिता जी मुझे आप पर गर्व है ।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational