सुनील अग्निहोत्री,,,,ऑटोबायोग्राफी
सुनील अग्निहोत्री,,,,ऑटोबायोग्राफी
कभी खट्टा कभी मीठा कभी तीखा कभी खारा कभी कड़वे स्वाद सी होती है ये जिंदगी , एक उम्र के बाद जब पलट कर अपने ज़िंदगी का बीता हुआ कल के बारे सोचते है तो ये सारे स्वाद खुद ब खुद वख्त की जुबान पर आ जाते हैं। आज मैं अपनी जिंदगी के वो पन्ने खोल रहा हूं जो बहुत कम लोगो को पता है, कहने को तो बहुत कुछ है है लेकिन कुछ बहुत मुख्य घटनाओं और अनुभवों को आप से साझा कर रहा हूं क्यों की मेरे आंख में समस्या है ज्यादा देख और लिख नही पता ,जो कुछ याद आता जायेगा सिलसिलेवार कहने की कोशिश करता हूं ।तो मेरे प्यारे परिवार की साधारण सी जिंदगी हम पांच भाई बहनों मम्मी पापा के साथ इलाहाबाद के एक छोटे से घर में खरामे खरामे चल रही थी , पापा सरकारी नौकरी रेलवे में थे इस वजह से दो तीन दिन ट्रेन पर एक दिन घर पे रह पाते थे , मम्मी का प्यार ही ज्यादा मिला , पापा तो सिर्फ जिम्मेदारियों का बोझ उठाने में मशगूल रहते थे ,पापा से ज्यादा मित्रता नहीं हो पाई थोड़ी दूरी ही बनी रहती थी। जब पापा घर होते तो सुबह उठा कर स्वयं सेवक संघ की शाखा में ले जा कर खड़ा कर देते और खेल कूद व्यायाम करा वापस ले आते ,यही से अपने भारतीय संस्कार का मेरे जीवन में आना आरंभ हो गया, कुछ दिनों बाद मेरा एडमिशन भी सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल में हो गया, मेरी शिक्षा दीक्षा भी इसी भारतीय संस्कारों वाले माहौल में होने लगी , तब ये सब बिलकुल अच्छा नही लगता था ,पूरे दिन अनुशासन में रहना हे भगवान दिमाक की बत्ती गुल हो जाती थीं, लेकिन उसका महत्व आज मेरी जिंदगी में बहुत है और उसकी महत्ता समझ में आती है।
मेरे घर में एक जनरल स्टोर दुकान भी हुआ करती थी ,क्यों की मेरे दादा जी गांव में रहते थे और उनका मन शहर में लगता नहीं था , तो उनको शहर में लाने और व्यस्त रहने के लिए एक दुकान खोल दी गई थी वो भी उनके कहने पर लेकिन आप को तो पता है "जंगल का शेर जंगल में ही खुश रहता है " सो उनको शहर की लीला न भाई और कुछ ही दिन में गांव की ओर दौड़ लगाई , अब मुसीबत ये थी कि ये दुकान जो इतने पैसे लगा कर खोली गई थी उसका क्या करें ? कौन चलाए? ये एक यक्ष प्रश्न था, क्यों की पापा ऑफिस हम सब स्कूल तो बचा कौन मेरी प्यारी अनपढ़ लेकिन समझदारऔर कर्मठ मम्मी ये जिम्मेदारी उनके सर बंध गई, "हर जिम्मेदारी इंसान को कुछ सिखाने के लिए ही होती है" और यही हुआ मम्मी उधारी खाता लिखना, हिसाब किताब गणित ,हिंदी लिखना पढ़ना सब सीख गई । नाप तौल की गणित मम्मी की इतनी मजबूत हो गई की हम लोग पेन पेपर ले कर हिसाब कर रहे होते और उधर मम्मी का जवाब आ जाता की कितना पैसा लेना है ग्राहक से , वाह मम्मी लव यू , जो की आज कल के लोगो को एक दम नही आता बल्कि लोग जानते ही नहीं की २०० सौ रुपए किलो किसी समान का दाम है तो १००ग्राम कितने का हुआ , हम लोग भी जब टाइम मिलता तो दुकान पर बैठते नतीजा ये हुआ कि हमारी भी गणित हिंदी हिसाब किताब एक दम मजबूत हो गई , इसी प्रायोगिक ज्ञान विज्ञान के लिए आज शिक्षा विभाग बच्चो को सिखाने की कौशिश कर रहा हैं, नई शिक्षा नीति के तहत जिसको की "आर्ट इंटीग्रेशन कहते" , मैं भी कर रहा हूं अपने स्कूल में ओ हो बातो बातो में बताना भूल ही गया की मैं भी एक अध्यापक हूं, इसके विषय में मैं आगे चर्चा करूंगा बड़ा ही रोचक घटना कहूं या विधि का विधान समझ नही आता, तो फिलहाल ये भी उस दुकान ने सीखा दिया ।
भगवान ने मुझे प्रतिभा खूब कूट कूट कर दी ,शायद वो भी मेरे बारे में थोड़ा कन्फ्यूज थे की जो सब से बचा है इसे दे दो की जिंदगी में ये भूखा नही मरेगा और शायद ये सही भी है ।
बचपन में गाना ,नाचना ,पैरोडी, अभिनय , आर्ट, मॉडल, बनाना , मतलब मैं हर कुछ कर लेता था वो आज भी है , लोग राह चलते बचपन में मुझे सड़क पर पकड़ लेते कहते जरा गाना सुनाओ, नाचो मैं वही पर नाचने गाने लगता था जबकि मैं हकलाता था लोग उसी का मजाक बना कर हंसते थे लेकिन मुझे कोई फर्क नही पड़ता था ,उसी का नतीजा है की मैं आज अपने निजी जिंदगी में जब मंच पर होता हूं घबराहट नही होती , चाहे कवि सम्मेलन में कविता पाठ हो या अमेरिका में वाशिंगटन का मेड अरेना सेंटर का मंच , मैं हर जगह दहाड़ कर आया हूं ।
आज लिख रहा हूं तो सोचता हूं "कितना अटूट रिश्ता होता है जिंदगी के हर पल का आपस में" ।
संगीत मेरे अंदर था जब भी कोई गतिविधि मेरे मुहल्ले में जैसे रामायण सुंदरकांड ,रामलीला होती मैं मौजूद रहता था तब मजा बहुत आता था लेकिन "वो मेरे जीवनी की खुली पाठशाला थी ,जो मैं जाने अंजाने सीख रहा था आज वो मेरे रोजी रोटी है" ।
हां तो मैं कह रहा था नाचने गाने के बीच पढ़ाई भी चल रही थी , मेरे मुहल्ले के एक मित्र ने बताया सैनिक स्कूल के बारे में उस वक्त मैं क्लास 6 में था , घर में बिना बताए उसकी तैयारी शुरू कर दी किताबे अपने मित्र से ले कर के ,अब बारी थी फॉर्म भरने की तब पापा को बताया तो कुछ अजीब सा रिएक्शन था मैं कुछ समझ नही पाया की वो खुश थे या नाराज लेकिन फॉर्म भर गया सेंटर पड़ा बनारस क्वींस कॉलेज , गया पापा के साथ परीक्षा दी पास भी हो गया ,सैनिक स्कूल जाने की तैयारी शुरू हो गई ,नए कपड़े जूते बेडिंग, हां उसी समय पहली बार वीआईपी अंडर वियर पहनने को मिली थी बहुत खुश हो रहा था की मैं बड़ा हो रहा हूं और जाने क्या क्या , लेकिन क्लाइमेक्स तो अभी बाकी था , जाने से पहले मेरे दादा जी और बड़े बुजुर्ग मेरी जिंदगी के सुनहरे भविष्य में प्रवेश कर गए, उनके अपने अनुभव सैनिकों की जिंदगी के बारे में थे जो मेरे ऊपर डाल दिया की जनाब वहां तो गोली बंदूक बम पिस्टल तोप चलते है इस लिए नही जाना है और मेरे सुनहरा भविष्य का अंडा फूट गया मैं सैनिक बनते बनते रह गया।
कोई बात नही मुझे तो शायद कुछ और बनाना था इस लिए इसी बहाने थोड़ी और पढ़ाई लिखाई हो गई । इसके बाद मैं स्कूल वापस गया तो टीचर बहुत खुश होते की मैं बहुत मेधावी छात्र हूं । लेकिन मेरे आर्ट के टीचर अजीब ही थे उन्हे मुझ पर हमेशा शक रहता था मैअपनी आर्ट फाइल की पेंटिंग किसी और से करवाता हूं , एक वाकया बताता हूं मैने अपनी आर्ट बुक से एक पेंटिंग हुबहु बनाई और स्कूल ले जा कर दिखाया बस क्या था मेरे टीचर ने एक जोरदार तमाचा जड़ दिया ,मेरे कान एक दम सुन्न हो गए दिन में तारे दिखने लगे मैं समझ ना पाया की क्या हुआ, उन्होंने कहा आज फिर से दूसरे से बनवा का लाए हो , मैं चुपचाप घर आया कान दर्द कर रहा था पापा को बताया , पापा स्कूल गए टीचर से बात की फिर मैने उनके सामने वही पेंटिंग बनाई तब जा कर उनको पश्चाताप हुआ और माफी मांगी , और वही पर मेरे संगीत के अध्यापक मुझ पर इतना भरोसा करते की मेरे बिना उनका कोई भी गाना होता ही नही था, ये उन्ही का विश्वास और आशीर्वाद है जो आज मैं अपनी रोजी रोटी पहचान बना पाया हूं , बहुत बहुत धन्यवाद मेरे प्यारे आदरणीय मधुकर आचार्य जी ।
मेरे घर में टीवी तो था नही ,मुहल्ले में किसी और के घर में चित्रहार फिल्म देखने जाते थे , गाने में हीरो गाते समय गिटार ले कर गाते हुए मुझे बहुत आकर्षित करते थे , बस अब मुझे बुखार चढ़ा गिटार सीखने का ,मैं ज़िद पे अड़ गया और मेरे पिता जी तो गांव के उन्हें लगा अब ये क्या बला है "बाप न मारे पेढ़की बेटवा तीरअंदाज" , उसी बीच मेरे खुराफाती दिमाग ने सोचा चलो घर में बनाते है , बस खोज शुरू हुई , मेरी नजर मेरे घर के सामने के मकान में एक खिड़की पर टिकी उसमें मच्छर वाली जाली लगी थी बस मेरा मन झूम उठा निकाला पेचकस प्लास और दुकान पर दोपहर में बैठा था, सब तरफ सन्नाटा औजार ले कर टूट पड़ा जाली के ऊपर उसमे से तार निकाल लिया और एक लकड़ी का फट्टे पे चार कील गाड़ कर दोनो तरफ तार टाइट कर के बीच में लाल दंत मंजन का डिब्बा फसां दिया बस बन गया गिटार और दोपहर के सन्नाटे में मेरे गिटार का जन्म हो गया टूं टू टन टन टून्न टून्न आवाज आने लगी , मेरा घरेलू गिटार तैयार था लेकिन साथ साथ घर में गिटार आंदोलन जारी
था ।
जद्दोजहद एक साल तक चली घर में गिटार के लिए भूख हड़ताल लड़ाई झगड़ा सब शुरू हो गया और अंत में मेरी जीत हुई , मुझे घर में सब लोग गांधी जी कहते थे क्यों की मैं अपनी बात मनवाने के लिए भूख हड़ताल कर देता था , फिलहाल इलाहाबाद छोटा सा शहर एक दो दुकान संगीत वाद्यों की थी , पापा ने पता लगाया और एक दिन हम दोनो लोग पापा की सायकल पर पीछे बैठ कर गिटार खरीदने चल दिए, मुझे लगा अब तो मेरे और गिटार के बीच में कोई भी नही आ सकता , दुकान पर गए उसने कहा कौन सा गिटार चाहिए बस मैं और पापा एक दूसरे का मुंह देखने लग गए अब क्या करे, गिटार तो मेरे हाथ से जाता हुआ दिख रहा था,तभी मैने कहा कौन कौन सा है दिखाओ , उसने हवाइन और स्पेनिश गिटार दिखा दिया मैं कन्फ्यूज क्या करूं , दोनो गिटार दिखने में एक जैसे थे और पहली बार सामने से देखा फोटो के बाद तो और कन्फ्यूज हो गया था , पता तो कुछ था नही फिर मैने कहा यहां कौन सा गिटार सिखाया जाता है उसने कहा हवाइन, मैने कहा ठीक है यही दिला दो पापा जी , शिक्षा के लिए संगीत समिति में प्रवेश लिया , लेकिन मन में था की मुझे तो हीरो की तरह बजाना है और हवाई गिटार बजने का तरीका एक दम फिल्मों से अलग था , उसको बैठ कर गोद में रख कर बजाते थे , मैने सोचा अभी ये शुरुआत है शायद बाद में उस तरह सिखाएंगे , लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं तीन साल बीत गए मैं बहुत अच्छा सीख रहा था, लेकिन स्पेनिश और हवाइन गिटार दोनो अलग होते है इस लिए इस मोह भंग हुआ ,अब स्पेनिश गिटार सीखने की तरफ खोज शुरू हो गई , कोई मिला नही क्यों की इसका कोई स्कूल नही था ये स्पेनिश एक पश्चिमी विदेशी वाद्य है
लोग निजी तौर पर एक दूसरे से सीखते थे , मैं छोटा था ज्यादा बाहर जाने की आजादी नहीं थी पैसे भी नही थे ।
अब कहीं शादी ब्याह में जाते और ऑर्केस्ट्रा को देखता तो मन बेचैन हो उठता की ये सारे वाद्य यंत्र कैसे बजते है कोन सी आवाज किसकी है पूरी रात बीत जाती ये सब सोचते सोचते ,
लगता कोई मदद करे मिलवा दे इन कलाकारों से , कहते हैं "जब कोई पूरी शिद्दत से मांगो तो सारी कायनात मदद करती है " वही हुआ ,मैं बचपन में बाल भवन जाता था, आनंद भवन के अंदर था बाल भवन ,ये घर मोती लाल नेहरू जी जवाहर लाल नेहरू जी का हुआ करता था जो अब ट्रस्ट का है वहा पर बच्चो के सिखने के लिए तमाम कलाएं होती थी वोकेशनल कोर्स की तरह , वही मैं भी जाता था ,देखता था, मेरे मित्र जो आज भी है सलिल श्रीवास्तव उनको गाते हारमोनियम बजाते हुए वही पर देखा और उनके साथ क्लास में गाना सुनना और सीखना कर दिया था, फिर बाद ने बाल भाव जाना बंद हो गया था, बड़े हो कर उनको फिर से ढूंढा उनसे मित्रता हुई फिर उनके साथ गाना बजाना शुरू कर दिया ,अब मै स्टेज पर जाने लगा उनके साथ छोटे मोटे प्रोग्राम में ,लेकिन स्पेनिश गिटार तो था नही , कहते है "आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है " वही हुआ मेरे साथ मैने हवाइन
गिटार को स्पेनिश की तरह किसी ना किसी तरह जुगाड कर के बजाने लगा और मेरे जिंदगी में बदलाव आना शुरू हो गया संगीत की दुनिया के लिए । फिर थोड़े पैसे जोड़ कर सलिल के साथ कलकत्ता जा कर एक स्पेनिश गिटार ले आया और साथ ही उसकी किताब सीखने के लिए, उम्र छोटी थी लेकिन मेरे हौसले बुलंद थे। पढ़ पढ़ कर सीखना शुरू किया उन दिनो कोई यूट्यूब इंटरनेट तो होता नही था , बस अंधेरे में लाठी चलानी पड़ती थी हिट एंड ट्रायल वाला फार्मूला चलाता था और मैं आज भी मैं कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेता हूं सीखने के लिए। उसी का नतीजा है की मैं सीख गया और बढ़िया गिटार बजाता हूं । अपनी तारीफ खुद ही कर रहा हूं ।
अब मैं क्लास 10वी में आ चुका था ,मैने कर्नल गंज इंटर कालेज में प्रवेश लिया , मित्रता हुई वही पास में रहने वाले दो भाई दीपक और दुष्यंत चतुर्वेदी से , मैं रात उन्ही के घर रुकने लगा नाइट स्टडी के लिए उनके उस घर में कोई नहीं रहता था बस हम तीन के अलावा बाकी लोग उनके परिवार के दूसरे घर मे रहते थे , अब पूरी आजादी मिलने लगी जिंदगी की , अब मै तरुण अवस्था में प्रवेश कर रहा था मन प्रेम रस उत्पन्न हो रहा था , रोज घर से स्कूल कॉलेज जाते समय गर्ल्स स्कूल का रिक्शा मेरे सामने से जाता था उसमें एक लड़की मुझे बहुत अच्छी लगती थी , उसे देखे बिना चैन नहीं आता था, अब मेरा दिमाग संगीत , लड़की , पढ़ाई के तिराहे पर खड़ा था, क्या करू क्या ना करू उलझन थी बहुत , लेकिन तीनो का सामंजस्य बिठाते हुए प्रथाम श्रेणी में पास वो भी गणित एवं भैतिक विज्ञान के डिक्टिंशन के साथ , फिर कॉलेज बदला मित्र बदले लेकिन पुराने मित्र अब भी साथ थे , 11वी 12वी में के. पी. इंटर कॉलेज में पढ़ाई शुरू की पास किया , अब प्रश्न था की क्या करना है भविष्य में ,,,,
एक दिन मैं अपनी दुकान पे बैठे बैठे सोच रहा था क्या करूं क्या करूं तभी अचानक खयाल आया पत्थर के बारे में क्यों की लोग मुझे भी मनमौजी होने के कारण कहते थे तुम तो "पत्थर दिल हो" किसी से कोई मतलब नहीं बस अपने बारे में सोचते हो ,तो वही ख्याल की पत्थर दिल मतलब पत्थर की कोई मर्जी नही होती पत्थर की भी तो मजबूरी हो सकती है उसका भी तो दिल है यही सब सोचते सोचते मेरी जीवन की पहली कविता निकली "पत्थर का दर्द" जो की उस समय प्रकाशित हुई अमृत प्रभात मासिक पत्रिका में मेरे मित्र शुभेंदु भट्टाचार्य के सहयोग से क्यों की उसी ने कहा की तुमने बहुत अच्छा लिखा है जब की मुझे लग रहा था पता नही कैसा लिखा मैं कोई बड़ा कवि तो हूं नहीं । लेकिन शुक्रिया मेरे मित्र आज मैं 250 सौ से ज्यादा कविता लिख पाया हूं तो वो सिर्फ तुम्हारे उस हौसले के बदौलत ,और यही से मेरी कविता लिखने की शुरुआत हो गई।लिखने की वजह भी मिल गई थी क्यों की वो स्कूल जाते समय वाली लड़की जो मिल गई थी , बस उसके ख्याल हुए तमाम दुनियदारी मुद्दे बनने लगे लिखने केलिए ।
मेरे मुहल्ले के मित्र दीपक भट्ट से मुलाकात होती रहती थी मेरी बहुत अच्छी दोस्ती थी उनके साथ,आज भी है , पढ़ाई करते करते उनसे चर्चा हुई और मैं उनके साथ एरोनाटिक्स इंजिनियरिंग करने दिल्ली आ गया जब की वो पहले से दिल्ली के बारे जानते थे आते जाते थे ।
दिल्ली आना मेरे जीवन की दिशा और दशा बदलने वाला निर्णय था । दिल्ली आने पहले अभी तक मैं इलाहाबाद में ऑर्क्रेस्टा में परफॉर्म करने लगा था , लड़के लड़कियां दोस्त यार बहुत बन गए थे। उन सब को छोड़ कर अब दिल्ली आ गया था, लेकिन पढ़ाई में उतना मन ना लगे की जितना संगीत की खोज करने में अब तो मैं आजाद पंछी था ,मां भाई बाप बहन कोई भी नही था, कुछ दिन तो बहुत अच्छा लगा , लेकिन घर की याद अब आनी शुरू हो गई थी , क्यों की अब खाना बनाना साफ सफाई कपड़ा धुलना मतलब की अब आजादी के साथ जिंदगी की सारी जिम्मेदारी मेरे ऊपर थी क्यों की अब जवाब मुझे देना था ,अपना गार्जियन खुद ही बन गया था ,अब मेरी जवाबदेही थी , कभी पैसा है तो कभी नही , नपी तुली जिंदगी हो गई थी हाथ तंग हो गए थे, क्यों की घर से जो पैसे आते थे उसी से पूरा महीना काम चलना पड़ता था ।
एक बार समय से पहले 15 दिन में पैसे खतम और घर में आटा खतम ,खाने की सब चीज खतम होने लगी , घर से भी नही मांग सकता था इतनी जल्दी ,लगता था क्या करू, मैंने पैसे के लिए कुछ ट्यूशन खोजा और भगवन की कृपा से मिल भी गया , गिटार सीखना शुरू किया 500 रुपया एडवांस ले कर घर का सारा सामान खाने पिने की चीज़वे खरीदी ,तब जा सुकून मिला , हर महीने अलग से फिर और ट्यूशन मिलने लगा आमदनी बढ़ गई , दो साल निकल गए इसी तरह , इसी दौरान दिल्ली में ऑर्केस्ट्रा ढूंढना शुरू कर दिया था , मिल भी गया , अब रात मेंऑर्केस्ट्रा करता दिन में पढ़ाई ,"लोग मिलते गए कारवां बनता गया " तभी एक जिंदगी का मोड़ आया ,मेरे मित्र दीपक भट्ट ने कैसेट का काम शुरू किया , उनके साथ जुड़ गया मैं और सलिल श्रीवास्तव दोनो लोग बहुत मन से काम किया लेकिन सफल नहीं हुए उनका काफी नुकसान भी हुआ अल्प अनुभव के कारण , अब पढ़ाई छोड़ चुका था ,संगीत में ही हाथ आजमाने लगा ,मुझे लग रहा था जैसे मेरी जिंदगी मुझसे कह रही हो के संगीत ही तुम्हारा जीवन है कुछ और मत करो।
एक अंधी गली की तरफ जैसे आगे बढ़ रहा था ,कुछ पता नही कहां जाऊंगा बस बढ़ा चला जा रहा था।
फिर हिम्मत कर के मैने एक नया काम शुरू किया प्री रिकॉर्डेड कैसेट फिल्मी टॉप 10 कैसेट बनाने लगा , ये काम भी मेरा अच्छा चल निकला इलाहाबाद में , दिल्ली से खाली कैसेट लता और खुद ही रिकॉर्ड करता , उसकी कॉपी बना कर मार्केट में बेच देता , वैसे ले गलत काम था लेकिन वक्त जो ना करा दे पैसे के खातिर ये भी कर गया , पहले ऑर्केस्ट्रा में जाता और जब वो खतम होता रात 1 या 2 बजे उसके बाद मैं रिकॉर्डिग करता फिर सो जाता , उठ कर देर से मार्केट जाता सप्लाई कर के वापस घर आता शाम तक फिर से ऑर्क्रेस्टा के लिए निकल जाता , क्या बताऊं मैं एक दम पागल जैसा जुनून चढ़ा था ,उसी आर्केस्ट्रा में एक लड़की से मुलाकात हो गई और काफी अच्छी दोस्ती हो गई और एक अजीब सा रिश्ता बन गया ,वो प्यार था, केवल दोस्ती थी या केवल अच्छी जान पहचान थी क्या था आज तक नही समझ पाया क्यों की हमारे बीच सब कुछ था और शायद कुछ भी नही, फिर उस लड़की को कोई चाहने वाला मिल गया और मैं वहां सा थोड़ा हट के अपने व्यापार पर ध्यान देने लगा वो भी चलता रहा लेकिन कैसेट का काम भी कुछ दिन बाद ठप सा पड़ गया क्यों की गलत काम गलत ही होता कितना भी अच्छा कर लो , मुझसे कुछ दोस्तो पैसे कुछ दुकान वालों ने लिए लेकिन समय से वापस नहीं किया , मैने किसी कोई लड़ाई झगड़ा नहीं किया क्यों आज तक मैंने पैसे के लिए संबंध खराब नहीं किया, मेरे लिए रिश्ते पहले है बाद में पैसा, उसका नतीजा के सब कुछ बंद हो गया । इस लिए एक सीख मिली "जिंदगी में गलत काम मत करो "
मैं वापस फिर से सभी कुछ छोड़ कर दिल्ली आ गया ।
घर से दूर माता पिता की इच्छा के विरुद्ध बढ़ गया , अपना वजूद बचाने और अपने निर्णय को सत्य साबित करने की जंग दिल्ली में ही शुरू हुई, तमाम खट्टे मीठे कड़वे अनुभवों के साथ आगे बढ़ रहा था।
इसी दौरान मेरे कुछ पुराने दोस्त इलाहबाद से म्यूजिक ग्रुप ले कर दिल्ली आ गए काम के लिए , कुछ दिन उनके साथ काम किया अच्छा चला लेकिन कुछ दिनों के बाद वो भी बंद हो गया ,फिर से अंधेरा ,मेरे दोस्तो ने कहा तुम भी इलाहाबाद वापस चलो लेकिन मैने निर्णय कर लिया था की वापस घर नही जाऊंगा जब तक कुछ बन ना जाऊं।
अब मेरी ज़िन्दगी में एक कन्या का प्रवेश होता है ,इसी बीच मुलाकात हुई एक पूर्व परिचित लड़की से वो भी गाना गाती थी जब हम इलाहाबाद में रहते थे,वो भी दिल्ली आ गई थी ,मैं अकेला था उसका परिवार मेरे साथ रहने लगा,लेकिन हम दोनो अपना काम अलग अलग करते थे ।
इसी बीच मुझे दुबई जाने का अवसर मिल गया और वहां जिंदगी के अनेक रंग के अनुभव लिए , ये मेरी पहली विदेश यात्रा थी ,वहां भी नाचने गाने वाली लड़कियों की और कलाकारों की जिंदगी के अजीब अजीब किस्से सामने आए जो रात के चकाचौंध में गुम हो जाती है , किसी को प्यार का दर्द ,किसी को परिवार की परेशानी , कोई पति से परेशान ,कोई बच्चे छोड़ कर आई , कोई तन बेच रहा था कोई मन बेच रहा था सिर्फ और सिर्फ पैसों के खातिर , मेरे सामने अरबी अय्याश आते और उनके साथ रंगरलियां मनाते पैसे देते और चले जाते, दोनो खुश किसी को कोई फर्क नहीं , क्यों की दोनो का मकसद पूर्ण हो रहा था । मैं बड़ा हैरान होता था ये सब देख कर लगता था मैं क्या करने आया हूं और क्या देख रहा हूं । लेकिन ग्रुप का पासपोर्ट होटल में जमा था छोड़ कर आ नहीं सकता था , तो ये भी अनुभव जुड़ गया मेरी जिंदगी मे।
भारत वापस आया और फिर से दिल्ली में काम शुरू करने की कोशिश की क्यों की काफी दिन से दिल्ली छोड़ दिया था तो मेरा काम खतम हो गया था फिर से नई जमीन तलाशनी शुरू की , वो लड़की होटल में गाती थी मैं अलग ग्रुप में काम कर रहा था लेकिन तभी हम दोनो के बीच धीरे धीरे प्रेम हो गया और प्रेम बढ़ता गया जैसा की हर प्यार के आरंभ में होता है , लेकिन समस्याएं तो जीवन का दूसरा नाम है वो आती गई हम बढ़ते गए , बहुत अच्छा ज्यादा काम मिला नही मुफलिसी का दौर शुरू हो गया पैसे के लाले पड़ गए , मकान का किराया दूं की खाना खाऊं ,फिर मुसीबतों का दौर शुरू हुआ , हम दोनो में झगड़े होने लगे , अब मैं दोराहे पर था एक तरफ मेरी जिंदगी और संगीत दूसरी तरफ मेरी प्रेमिका ,क्या करूं कुछ समझ ना आए , फिर अचानक लड़की की माता जी की तबीयत खराब हो जाती है ब्रेन हैमरेज हो जाता है ,मैं फिर से उसकी मदद करने लगा , फिर सब थोड़ा ठीक हुआ लेकिन मैं अंदर से टूटा हुआ था कुछ अच्छा नही हो रहा था ज़िंदगी में , पैसे ज्यादा बचते ही नही थे , मेहनत पूरी करता पर शायद कही कोई कमी रह जाती थी या मेरा मुकद्दर साथ नहीं देता था ।
दिल्ली कनॉट प्लेस हनुमान मंदिर में शाम का प्रसाद खा कर ताज मानसिंह होटल में गाना था रात 8 से 11 बजे तक उसके बाद जागरण में जाता था गिटार बजने के बाद वापसी सुबह 7 बजे होती थी चाय नाश्ता वही करता था पैसे बचाने के लिए, बहुत मेहनत करनी पड़ती थीं । कितनी बार आई टी ओ से लक्ष्मी नगर पैदल आता था ,पैरो में छाले पड़ते और वही फूट जाते दर्द बर्दाश्त करते चलता रहता चंद रुपए बचाने के लिए।
आज की नामी मशहूर सिंगर नेहा कक्कड़ उस समय बच्ची होती थी , जागरण में पूरा परिवार सोनू, नेहा , और टोनी कक्कड़ ,उन लोगो के साथ मैं जागरण किया करता था , क्यों की वो भी अपना वजूद तलाश रहे थे मेरी तरह , आप को आश्चर्य होगा या विश्वास न होगा की कक्कड़ परिवार दस दस रुपए बटोरा करते थे लेकिन माता रानी ने आज उनको बहुत कुछ दिया है । वो एक संघर्ष का दौर था , फिलहाल इसी तरह चलता रहा मैं बिना रुके बिना थके ।
मेरी जिंदगी फिर करवट लेती है और मेरे एक मित्र ने कहा तुम स्कूल में फॉर्म भर दो नया स्कूल है नया काम सीखो और सिखाओ , दिन में मैं स्टूडियो में कोरस करता था , हां एक प्रसिद्ध नाम और बताता हूं कुमार विशु जो एक प्रसिद्ध भजन गायक है टी सीरीज के वो भी उन दिनो कभी कोरस कभी एकल गायन किया करते थे रिकॉर्डिंग स्टूडियो में , उनके साथ भी काम करने का अवसर मिला , फिर मैने सोचा बात तो सही है , मै फॉर्म भर देता हूं , फॉर्म भर रहा था, एक पेज के बाद मैं कुछ भरने के काबिल था ही नही क्यों की जो जानकारी मांगी गई थी वो कुछ था ही नही , 5 पेज में केवल 1 पेज भर कर भेज दिया , मेरे एक बंगाली मित्र देबोजित के घर का पता था, ये भी एक बड़ा महत्वपूर्ण मोड़ है देबोजीत की चर्चा करना जरूरी है ,
इनकी माता जी मुझको बहुत प्यार दुलार करती थी देबू बहुत लाडला सिर चढ़ा इकलौता बेटा था लिहाजा थोड़ा बिगड़ गया था , हर बात की जिद करना लड़ाई झगड़ा कर , फिर मम्मी मुझे बुलाती और मैं उसको समझता , मम्मी की गिटार सीखा दो कुछ तो कर लेगा जीवन में , उसको गिटार सीखना शुरू किया उसका मन लगा और सीखने लगा , ये सिलसिला चलता रहा , फिर मेरा स्कूल का इंटरव्यू पत्र आया उनके घर , मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था की मुझे बुलाएंगे फिलहाल गया इंटरव्यू दिया ,
स्कूल ने कहा हम फोन करवे जवाब देंगे अगर सिलेक्शन हो जायेगा तो , काफी दिन हो गए मैं भूल भी गया था लगभग , फिर एक दिन फोन आता है मुझे बुलाया गया और पार्ट टाइम टीचर की जॉब लग गई । मैं बड़ा खुश हो गया की फॉर्म पूरा भरा नही था केवल मेरे इंटरव्यू के दम पर मुझे रखा गया , मुझे लगा शायद अब मैं कुछ कर पाऊंगा।
फिर मैने जागरण करना छोड़ दिया क्यों की सुबह स्कूल जाना होता था और जागरण देर रात तक होता था ।मैने एक और स्कूल नोएडा में आर्मी पब्लिक स्कूल में भी पार्ट टाइम ज्वाइन कर लिया आधा टाइम अल्कोंन इंटरनेशन स्कूल आधा टाइम आर्मी पब्लिक स्कूल , अब काम अच्छा हो गया था ईश्वर की कृपा से।
अब मैं अपनी प्रेमिका से अलग कमरा ले कर रहता था , मुलाकात भी कम हो गई थी , और हम दोनो के काम का समय भी अलग हो गया था , अब उसको लगने लगा के मेरी जिंदगी में और अच्छी अच्छी लड़कियां आ जाएंगी उसको तवज्जो कम मिलेगी हालाकि ऐसी कोई बात नही थी फिर से तकरार शुरू हो गई ।
इसी बीच सन 2004 की बात है इंडियन आइडल नामक एक रियल्टी शो कांटेस्ट टी वी पर आया मैं भी उसमे पार्टिसिपेट करने पहुंच गया ऑडिशन देने दिल्ली नेशनल स्टेडियम में सुबह 6 बजे , शाम 4 बजे मेरा नंबर आया और सिलेक्शन नही हुआ थोड़ा मायूस हो गया फिर दूसरे दिन मैं सुबह स्कूल के लिए निकला लेकिन मन में आया एक चांस बाकी है अभी ऑडिशन का चलो फिर कोशिश करते है , मै रास्ते से मुड़ गया नेशनल स्टेडियम की तरफ और जा कर एक लंबी लाइन में लग गया अपनी किस्मत आजमाने , नंबर आया और मैने गाना गाया उनको अच्छा लगा और सिलेक्शन हो गया , ज़िन्दगी हिम्मत नहीं हरनी चाहिए परिस्थियाँ चाहे जो भी हो ये सिद्ध हो गया ,संस्कृत में एक श्लोक है-
"उद्द्यमेन ही सिद्धान्ति कार्याणि , ना ही मनोरथैः " कार्य करने से कार्य सिद्ध होता है न की केवल सोचने से "
मैं बहुत ही खुश था लाखो लोगो के बीच से मेरा सिलेक्शन हुआ था , फाइनल ऑडिशन अन्नू मालिक ,सोनू निगम और फरहा खान जी उनके सामने हुआ और मैं वहां भी पास ही गया , दो महीने बाद मुंबई जाना था लेकिन मुसीबत से तो चोली दामन का साथ था मेरा अचानक मेरी आंख में समस्या हो गई रेटीना में खून आ गया मुझे दिखना बंद हो गया एक आंख से अब इसका इलाज शुरू हुआ , स्टायरॉइड के इंजेक्शन, लेजर ऑपरेशन , आई ड्रॉप पड़ने लगे इसका मेरे गले पर बुरा असर पड़ने लगा , गाने में दिक्कत होने लगी , कुछ दिन बाद मुंबई जाना था और डॉक्टर कह रहे थे की गाओ मत आंख में फिर से खून आ सकता है , अब फिर जिंदगी दोराहे पर खड़ी , मुंंबई जाऊं या नही फिर मैने सोचा" जिंदगी ना मिलेगी दोबारा " ऐसे मौके बार बार नही आते , मैने निर्णाय लिया की जाऊंगा ,आगे नही बढ़ पाऊंगा कोई बात नही लेकिन जहां तक भी जा पाऊंगा उसका तो अनुभव होगा ही ये सोच कर गया और उस सफर ने आज की नेहा कक्कड़ , आयुष्मान खुराना आज के सेलेब्रिटी हीरो और गायक हम लोग एक साथ थे , आयुष्मान भी आगे नहीं बढ़ पाया था उसको अन्नू मालिक ने कहा था की तुम गा नही सकते आवाज अच्छी नहीं है, मैं और आयुष्मान खुराना दोनो मुंबई से दिल्ली साथ में वापस आए , लेकिन विधि का विधान देखिए वो आज एक चमकता सितारा है फिल्म इंडस्ट्री का , मुझे ख़ुशी है की मैं ऐसे सितारे के साथ था कभी.
आयुष्मान से काफी दिन तक मेरी बात होती रही , लेकिन जब इंसान बड़ा बनता है तो बहुत कुछ पीछे छूट जाता है मैं भी पीछे रह गया और वो इतना आगे बढ़ गया की मैं सोच भी नही सकता की मिल सकूंगा कभी , लेकिन मैं बहुत खुश हूं की मेरे जिंदगी के सफर में बहुत बड़े बड़े सितारे थे ,वो सब आज आसमान में है और मैं जमीन से उनको देखता हूं । लोगो को तो ये भी नसीब नही होता , और मैं अपनी आंखों की समस्या के साथ वापस दिल्ली आ गया और फिर से स्कूल में और होटल में प्रोग्राम करने लगा ।
उसी बीच मेरी प्रेमिका की मम्मी लड़की से कहती थी बेटा तुम शादी मत करना नही तो हमारा क्या होगा , बस तुम साथ में रहो जो चाहे करो लेकिन शादी मत करो , ये उनकी पैसे और जीवन जीने की मजबूरी थी ,"जिंदगी में पैसा सब कुछ नही लेकिन बहुत कुछ होता है भगवान के बाद अगर कुछ है तो पैसा ही है " बहुत ही करीब से देखा है , इंसान स्वार्थी और मजबूर हो जाता है , ना चाहते हुए भी गलत हो जाता है , जो की उस लड़की के साथ भी हुआ , उसे लगा की इसकी मां सही कह रही है , बस वो मेरा दिल रखती रही लेकिन ज़माने की हवा लग चुकी थी उसको , मैं समझ रहा था , फिर एक दिन उसकी मां की तबीयत खराब हुई और मृत्यु हो गई , और अब वो पूरी तरह से आजाद थी अपना निर्णय लेने के लिए उसने मना किया शादी से , जब की मैंने बहुत समझाया की ऐसा मत करो वार्ना ये समाज तुमको जीने नहीं देगा, उसको दो महीने का समय दिया सोचने के लिए और उसके बाद मैने भी घर में बोल दिया की आप लोग जहां चाहे मेरी शादी कर दीजिए । क्यों की मेरे घर से बहुत दिनो से दबाव था के मैं शादी करू लेकिन मैं अपने ही जाल में फसा हुआ था इस लिए मना कर रहा था।
अब जिंदगी का खेल देखिए , मेरी बड़ी दीदी मेरे एक रिश्तेदार के यहां से कुछ लड़कियों की फोटो लाती है जो की उनके लड़के के शादी लिए आई थीं और उन्होंने रिजेक्ट कर दिया था , उसमे उस लड़की की भी फोटो होती है जिस लड़की के पिता जी को मैने 3 साल पहले मैने मना कर दिया था शादी के लिए , अनजाने में वही फोटो सब को ठीक लगी जब की हम लोगो को उसके बारे में कुछ भी पता नहींथा ,जिंदगी में वही फिर से घूम कर मेरे सामने आ गई,
लेकिन ये बात हम दोनो लोगो को नही पता थी , बाद में एक मुझे याद आया के राष्ट्रपति भवन से किसी ने मुझे फोन किया था शादी के लिए और ये लोग भी राष्ट्रपति भवन में रहते , कही 3 साल पहले वाले वही तो नही , फिर मैंने अपने ससुर जी पूछा की आप ने कभी मुझे फोन किया था क्या
शादी के लिए उनको भी सारी बात बताई तो उनको भी याद आ गया , मैं तो उस दिन से ईश्वर को और भी मानने लगा की " होहिंये वही जो राम रची रखा, को करी तर्क बढ़ावे साखा" इस रामचरित्र मानस की चौपाई की तरह पूर्ण चरितार्थ हो गई ।
अब मैं किराए के मकान से निकल कर अपने निजी मकान में आ गया था जो की मेरे मित्र आलोक ने दिलाया था , थोड़ा आलोक संजय और राजीव की भूमिका भी बता दूं , ये मारे स्कूल में नौकरी के दौरान मिले साथी थे किराए के मकान में , ये भी मेरी तरह संघर्ष कर रहे थे जीवन में , बैंक में काम करते थे , आलोक ने मुझे एक दिन अपने बैंक में बुलाया और मैनेजर के सामने गाना गवाया और उनको खुश कर के मेरा लोन करवा दिया बाकी राजीव संजय ने मिल कर पर्सनल लोन करवा कर और जाने क्या कर के सारा पैसा इकट्ठा करवा कर घर का मालिक बना ही दिया शादी के पहले ही , ये भी ईश्वर की कृपा है ऐसे मित्र मिलना वरना कहां कोइ मित्र होता आज कल अंजान शहर जो घर जैसी चीज दिला दे ।
यही दिल्ली हैबिटेट सेंटर में मेरा प्रोग्राम था , वही पर मॉरीशस के प्रसिद्ध लेखक कवि साहित्यकार श्री राजहीरामन जी से मुलाकात हुई, वो
और मेरे गीत से बहुत प्रभावित हुए और आशीर्वाद दिया , उनसे कई मुलाकात हुई तो वो मेरे कविताओं से भी बहुत प्रभावित हुए , उन्होंने ही मॉरीशस की गवर्नमेंट हिंदी टीचर्स यूनियन की त्रैमासिक पत्रिका में कविता प्रकाशित करवाई जो की आज तक कई रचनाएं प्रकाशित हो चुकी और हो रही है । दिल्ली की जानकारी काल मासिक पत्रिका , सर्व भाषा की त्रैमासिक पत्रिका में मेरी कविताएं प्रकाशित होती रहती है , भारत विकास परिषद पश्चिमी उत्तर प्रदेश की लगभग दस शाखाओं में संगीत प्रतियोगिता में निर्णायक मंडल की भूमिका अदा करता हूं , ऑस्ट्रेलियन म्यूजिक स्कूल , मैक्समूलर भवन की जर्मन म्यूजिक।वर्कशॉप कॉर्डिनेट करवाया। अपनी कविताओं और स्कूल के बच्चो के लिए यूट्यूब चैनल और कविता के ब्लॉग बनाया । सामाजिक संस्थाओं से जुड़ा मेडिका कैंप लगाया ।
अब मैं अपनी वैवाहिक जिंदगी और स्कूल की नौकरी में व्यस्त हो गया था
आज 22साल हो गए स्कूल में म्यूजिक टीचर बन कर ।
आज मेरे दो बच्चे है एक लड़की 12 साल की ऑलिव और 4 साल का बेटा अग्रिम है , मेरी पत्नी वास्तव में धर्म पत्नी है जो भारतीय संस्कारों वाली , परिवार को जोड़ने वाली , गृह लक्ष्मी की तरह पूरे तन मन से समर्पित है।
मेरे स्कूल में मेरे प्रधानाचार्य आदरणीय श्री अशोक पांडे जी से मुलाकात हुई जिन्होंने जिंदगी में आगे बढ़ना सिखलाया और मेरे ऊपर अटूट विश्वास भरोसा कर के मुझे जीवन में कई मुकाम हासिल करवाए,
उनकी कृपा से मैंने दो बार अमेरिका जा कर इंटरनेशल फेस्टिवल ऑफ लैंग्वेज एंड कल्चर में अपने देश का प्रतिनिधित्व किया , पढ़ने पढ़ाने के क्षेत्र में मुझे बहुत सारे मुकाम हासिल हुए ,सब उनका ही आशीर्वाद है कम कम से 10 बेस्ट टीचर्स अवार्ड प्राप्त कर चुका हूं और प्रशस्ति पत्र ट्रॉफी तो इतने है की घर में रखने की जगह नही बची ।
इतने सब के साथ मेरी आंखों की समस्या कम न हुई, हर महीने आंख में इंजेक्शन लगता , तब जा कर मैं थोड़ा अपना काम कर पाता हूं , लिखना पढ़ना बहुत मुश्किल हो गया है , टाइपिंग में समस्या आ जाती है शब्द गलत हो जाते है , लेकिन मैं रुकने वाला नही हूं , सब आप लोगो का प्यार और आशीर्वाद है। आज 21 साल हो गए नौकरी के , आज मेरी पहचान मेरे संगीत और साहित्य की वजह से है । मैं मित्रो का बहुत धनी हूं , जिंदगी ने बहुत कुछ सिखाया, ये मेरे अनुभव है जो आप सब से साझा कर रहा हूं , जिंदगी ने जीना सिखाया , ईश्वर ने सब की ज़िंदगी के फैसले पहले से सुरक्षित कर रखे है , सब का मुकद्दर जन्म से पहले लिखा जा चुका होता है , बस मेहनत कभी भी नही छोड़ना चाहिए , अपने मन की करो लेकिन सही करो गलत नहीं , हर इंसान के अंदर कुछ न कुछ महत्वपूर्ण होता जो उसकी जिंदगी को ऊंचाइयों पर ले कर जाती है ,मंजिल नसीब करती है, बस अपने वक्त का परिश्रम करते हुए इंतजार करो । सफलता जरूर मिलेगी ,
"क्या हुआ जो तू न हुआ सफल ,हर पल प्रयास कर नया प्रयोग, कुच ना कुछ तोआयेगा, रफ्तार तेरी जो बढ़ाएगा "
लिखना तो बहुत कुछ चाहता हूं लेकिन मेरी आंखे साथ नही दे रही है , अगर लिखने में कोई त्रुटि हो गई हो , या किसी का दिल दुखा हो तो मैं हाथ जोड़ कर माफी मांगता हूं ,ईश्वर सब को स्वस्थ, सुखी और खुश रखे ।
