Nirdesh Tiwari

Drama Romance

3.3  

Nirdesh Tiwari

Drama Romance

पहला आलिंगन

पहला आलिंगन

8 mins
1.2K


कुछ पुरानी यादें कुछ बिछड़े लोग 


शाम के 7 बज रहे थे, मैंने जल्दी-जल्दी कपड़े पहने। मुझे लग रहा था, मैं पहले से ही कुछ लेट हो गया हूं। जल्दी ही बिना मोजे के जूते पहने और पास की अलमारी में रखें परफ्यूम को डालकर जल्दी ही कमरे से निकल गया। पहुँचते पहुँचते करीब 8 बज चुका था, सूर्य अस्त हो चुका था। स्ट्रीट लाइट जल चुकी थी, आकाश में पूर्णिमा का चांद अपने पूरे शबाब पर था, करोडों की संख्या में तारो को साथ लेकर चाँद अपने सौंदर्य को बढ़ाकर इतराता हुआ आकाश में चमक रहा था। गंगा के किनारे लगी लाइट का दुधिया प्रकाश जल में विखर रहा था, चाँद के प्रकाश से गंगा का पानी चांदी जैसा चमक रहा था, गंगा में उठती लहरे दूर तक जा रही थी, ऐसा लग रहा जैसे वो चाँद को अपने आलिंगन पाश में लेने को बेकरार हो। दूर दारागंज की ओर अंधेरे में जल रही आग यह बताने को काफी थी कि अभी अभी कोई मोक्षधाम में आया है। और चारों तरफ से मांझी वापस किनारे आकर अपनी नाव बांध रहे थे, मैं एक सुनसान एकांत जगह में जूते खोलकर पानी में पैर डालकर बैठ गया और इस सुनसान जगह में बज रहे मौन संगीत को सुनने लगा प्रकति कुछ कहे भी न जाने क्या क्या कह देती है। उसके मौन में भी एक संगीत है। लहरों का प्रभाव तेज होने से कल कल की आवाज करती हुई गंगा प्रखर बेग से बह रही थी।


"आप आ गए..?" 

किसी सुरीली और प्यारी आवाज ने मेरे इस मौन संगीत को तोड़ा। पलट कर देखा तो लगभग 5.4 ऊंची येलो गाउन में यू (u) शेप में कटे कंधों तक लहरा रहे बालों में एक लड़की ने आवाज़ दी उसने कानों में गोल पीले कलर के इयररिंग्स पहन रखे थे। मुड़कर देखते ही पहली बार मे चौक गया लगा शायद इंद्र की कोई अप्सरा मुझे एकांत संगीत सुनाने आयी हो।

ख़ुद को पल भर संभालते हुए मैंने स्वीकृति में सिर हिला दिया और एक अनचाही हँसी मेरे मुंह पर बिखर गयी। पर नजरें अभी भी जमीन पर टिकी हुई थी, मोटी हील्स की चप्पल पहनने के कारण उसकी लंबाई कुछ ज्यादा लग रही थी। समय के साथ रूप लावण्य इंसान को कितना बदल देता है उसे न मैं केवल देख रहा था अपितु महसूस भी कर रहा था।


“तुम यहाँ!” मैंने जिज्ञासा पूर्ण भाव से पूछा। “राहुल कहाँ है?”


“कोई नहीं आएगा। मैने ही उसको तुम्हें यहाँ बुलाने को कहा था, क्योंकि मुझे पता था तुम मेरी कॉल रिसीव न करते।”


'श्रुति मिश्रा' यही नाम था उसका, आज से करीब 3 साल पहले एक डीबेट कॉम्पटीशन में मिले थे। तब शायद एक दूसरे से मिलकर यह निश्चय न कर पाएं कौन कितना फेंकू है पर एक दूसरे से बहुत प्रभावित हुए थे। तभी से एक दूसरे को जानने लगे थे, उसने बताया था वो कन्नौज की रहने वाली है, यहाँ यूनिवर्सिटी से bsc कर रही है। पास आकर बैठते ही उसने कहा, “आजकल कहाँ खोये रहते हो? यूनिवर्सिटी भी नहीं आते। किसी से ज्यादा बात भी नहीं करते। मेरे इतने msg का कोई रिप्लाई भी नहीं दिया, तबीयत तो ठीक है न..?” एक क़रीबी मित्र की हैसियत से उसने मुझसे पूछा।


“हाँ, सब ठीक है।” मैंने एक लंबी गहरी सांस लेते हुए हुये कहा।


”झूठ किससे बोल रहे आप, मुझसे या खुद से? तुम्हारा चेहरा बता रहा तुम परेशान हो।”


“नही तो! जिंदगी है थोड़ा बहुत तो अच्छा बुरा लगा ही रहता है। इंसान है तो समस्याएं है और समस्याएं है तो उनका समाधान है।” मैंने बात को घुमाने की चेष्टा की औऱ “तुम कैसी हो?” मैंने उससे पहले ही वह कुछ पूछे उससे पूछ लिया।


”अच्छी हूं। कल घर से आयी हूं, भाई की इंगेजमेंट थी।” अपने बैग में हाथ डालकर एक छोटा सा टिफिन निकालते हुये उसने कहा, “ये कुछ तुमारे लिए है। उसको खा लेना।”


उसके हाथों में लगी मेंहदी औऱ उसके हवा में उड़ते बाल उसके रूप सौंदर्य को और मनभावन बना रहे थे।


“और क्या चल रहा..?” उसने बडी कतिरता पूर्ण नज़रों से देखते हुए पूछा।


“कुछ नहीं, बस थोड़ा परेशान हूं। पर जिंदगी है तो सुख-दुख तो लगे ही रहते है। वैसे भी अभाव का नाम ही तो जिंदगी है, अगर जो हम चाहे वो सब मिल जाये तो जिंदगी का कोई अर्थ ही क्या रह जाता? इसीलिए जो मिल जाये उसी से संतुष्ट रहो।” मैंने एक लंबे ज्ञान की कटु परिभाषा दी।


”जानते हो आर्यन में इतनी पागल नहीं हूं जितना तुम सोच रहे और तुम्हारी जो ये फिलॉसफी है न उसको अपने पास ही रखों। मुझे क्या यह पता नहीं कि इंसान जब सपने देखने की उम्र में ज्ञान देने लगे तो समझ लेना चाहिए जख्म गहरे है? किसी एक के जाने से जिंदगी ख़त्म तो नहीं हो जाती पर ठहर जरूर जाती है, पर इंसान चाहे तो उसको फिर से शुरू कर सकता।” मेरे दाएं हाथ पर अपना बायां हाथ रखते हुए उसने मेरी ओर आशापूर्ण नजरों से देखते हुए कहा और अपना सिर मेरे कंधे से टिका दिया।


स्त्री का प्रथम स्पर्श कितना मादक और कामुक होता है ये पहली बार मैंने उससे मिलकर जाना। 5 मिनट तक बिना कुछ बोले हम दोनों आॅंखों में आँखे डालकर एक दूसरे को देखते रहे जैसे मन कि बातों को मन समझ रहे हो। लब खामोश है पर भावों का संचार हृदयो में हो रहा है। उसकी काली बडी बडी आँखे न जाने कितने सपने अपने आप में छिपाये है।


रात जितनी गहरी होती जा रही थी, चाँद उतना ही खूबसूरत होता जा रहा था और उसकी चाँदनी उतनी ही मादक भरी हुई महसूस हो रही थी। मांझी ने लंगर बांध दिए थे, सन्नाटा तेजी से फैलता जा रहा था, पानी में उठने वाला ज्वार हृदय में उमड़ने वाले भावों को एक गति दे रहा था। भावनाओं का सैलाब इतना तेज हो चुका था, जिसमें मैं और तुम मिलकर हम हो चुके थे। चाँद आज आसमान से उतर कर मेरे हाथों में आ गया था। दिन के बिछड़े चकवा-चकई आज शाम गंगा किनारे मिल गए थे। गंगा को छूकर आने वाली शीतल हवा औऱ उसमें उठने वाली लहरे एक नयापन लिए एक नया एहसास दे रही थी जो अबतक के एहसासों से अलग था। सबकुछ शांत था प्रेम की भगवत निष्काम कार्य की प्रेरणा दे रही थी। इन सन्नाटो के बीच एक दूसरे के होंठ ही बोल रहे थे और होंठ ही सुन रहे थे। मिलन का एक अध्याय लगभग पूरा हो रहा था। पर मन में न जाने आशंका और डर भी तेजी से घर कर रहा था,?तभी मेरे फोन में आये एक msg ने इस भावनाओं के उदगार में खलल डाला।


देखा तो 9 बज चुका था, श्रुति ने देखते ही कहा, “oh my god! बहुत देर हो गयी मुझे चलना चाहिए।” पर न जाने मेरा मन क्यो बड़ा बेचैन था। क्या अभी तक जो घटित हुआ वह केवल एक संयोग था या कोई पाप? मेरे मन में ये सवाल बार बार आ रहा था। उठकर मैंने किसी अज्ञात डर से बिना उससे कुछ कहे तेज़ी से निकलना चाहा, पर मेरे मुड़ते ही “तुमने क्या सोचा..?” कहते हुए श्रुति ने मेरा हाथ पकड़ लिया। मैं बिना कुछ कहे बस एक जड़ पुरुष की तरह जिसका सब कुछ लुट गया हो या, अपना सबकुछ हार चुके आदमी की तरह बस खामोश उसको निहारता रहा।


“मैं तुमको पसंद करती हूं क्या तुम भी मुझे पसंद करते हो?” एक उम्मीद भरी नजरों ने मेरी ओर देखते हुए कहा, मैं खुद को बड़ा असहज महसूस कर रहा था। बहुत कुछ कहे बिना बस इतना ही बोल पाया,

“ठीक है कल सोच कर बताता हूँ।” मैंने एक लंबी गहरी सांस लेते हुए कहा।


”अरे इसमें सोचने की क्या बात? अगर तुमको मैं पसंद हूं तो हा बोल दो अगर नहीं हूं तो कोई बात ही नहीं। वैसे तुम कोई लड़की तो हो नहीं जो इतना ज़्यादा सोचना पड़े।” श्रुति ने एक उम्मीद भरी नजरों से देखते हुये कहा, “रहा, अच्छा बाबा कल बता दूँगा, मुझे कुछ तो समय दो।” मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “अच्छा अब चलो देर हो रही।” दोनो ने लगभग एक साथ कहा। श्रुति स्कूटी चलाने लगी और मैं पीछे बैठ गया।


“सुनो! क्यों न हम एक साथ डिनर करके अपने अपने घर जाए।” मैंने खुद को सहज करते हुए आशावान नजरों से देखते हुए कहा। दो पल सोचते ही मेरे कानों ने सुना, “ठीक है, पर ज्यादा समय नहीं लगना चाहिए क्योंकि, देर से जाने में गेट बंद हो जाता और फिर मकान मालिक सैकड़ों सवाल पूछने लगता...” श्रुति ने कुछ सोचते हुए कहा।

“ठीक है बाबा, नहीं होगा...” मैंने जवाब दिया। हम लोग पास ही बने एक रेस्टोरेंट में गए, जहां बहुत ज्यादा भीड़ नहीं थी, कुछ coupal आ-जा रहे थे। करीब 1 घंटे में हम दोनों डिनर कर बाहर आ चुके थे। “चलो मैं तुम्हें अगले चौराहे तक छोड़ देती हूं, फिर वहीँ से अपने घर निकल जाऊँगी।” श्रुति ने मुस्कुराते हुए कहा।


”तुम पीछे बैठो मैं ड्राइव करूंगा,” मैंने कहा।


“नहीं यार तुम जानते क्या हो, श्रुति मिश्रा को? मैं हवा की भी हवा निकाल सकती तेजी में...” एक अल्हड़ सी हँसी हँसते हुए कहा और उसने हेलमेट अपने सिर पर लगा लिया।


“श्रुति गाड़ी धीमे चलाओ।” न जाने मेरे मन कोई एक अजीब सा डर पैदा हो रहा था, मेरा मन बड़ा अशांत था, कुछ भयानक घटित होने की आशंका मेरे मन में घर कर रही थी। पर मैं चुप खामोश मन में न जाने क्या सोच रहा था।


“ये सिग्नल भी न जगह जगह रोक देता।” श्रुति ने चिढ़ते हुए कहा और गाड़ी रोक दी। यलो लाइट जल चुकी थी तभी एक शोरगुल की आवाज पीछे से आयी। मैंने जैसे ही सिर घुमा कर देखा एक तेज़ रफ्तार गाड़ी ने पीछे से ठोकर मार दी। मर गए! एक तेज आवाज़ के साथ मैं हवा में उछल गया और श्रुति...?


Rate this content
Log in

More hindi story from Nirdesh Tiwari

Similar hindi story from Drama