पहल
पहल


सुबह सुबह अखबार पढ़ने का वक्त...
अचानक तेज चीखने की आवाज.....
चल निकल तुम यहां से.......
मैं क्यों निकलूं.......
तू ही निकल..........
बड़ी आई है...........
तू बड़ा आया....
मुझे निकालने वाला....
...... ............कहीं की
..........…………कहीं का
तू......……………….....
तू.................... ....
तेरे बाप का नहीं है..........
तेरे बाप का है क्या...........
अरररररररर.....
क्या है माजरा ?
आखिर हुआ क्या है ?
आपको भी कुछ ऐसा ही लगा होगा ऊपर के लाइन्स पढ़कर ।
जी हां तो यह आवाजें आ रही थी मिस्टर एंड मिसेज छुगानी के पुराने लंबे चौड़े मकान से।
मात्र दो प्राणी इतने बड़े मकान में !!
पूरे गली-मोहल्ले रौशन इनकी खनकती खडकती आवज से....
अब तो सबको आदत सी हो गई है.....
आए दिन और भी नाना प्रकार के ऐसे ही सुसज्जित लबालब संवाद और दृश्य (आप इमेजिन कर सकते हैं) आम बात है ।
कितनी उम्र होगी ?
आपके दिमाग में भी यह प्रश्न अवश्य ही कौंधा होगा ??
यही एक की 76 वर्ष और
दूसरे की 70 ...
जी हां यही उम्र है ....
मिस्टर एंड मिसेज छुगानी में 6 वर्ष का फासला मात्र.....
पूरी कॉलोनी इनकी खनकती खड़कती तड़कती भड़कती आवाज से चिरपरिचित.....
वो दम है इनकी आवाज में कि .....
उम्र तो महज़ एक संख्या है ....
सिद्ध हो जाता है....
पॉश कॉलोनी है हर कोई अपने मतलब से सराबोर हैं ...
किसी को किसी से मतलब नहीं....
सबको आदत सी हो गई है.....
कोई किसी को तवज्जो नहीं देते....
दोनों (मिस्टर एंड मिसेज छुगानी) की ना जाने किस मुहुर्त में गठबंधन हुआ होगा....
काॅलोनी की सारी महिलाएं के मस्तिष्क तंत्रिका तंत्र में यह सोच हिलोरें मारते रहती ।
राम मिलाए जोड़ी....
किस मिट्टी से बने हैं न जाने !
और ऐसे ही अनेक व्यक्तिगत विचार !!
मेरी भी मस्तिष्क कोशिकाओं में सुनामी पैदा कर जाती इनके बेतरतीब संवेदनहीन संवाद की झड़ी ।
ऐसे कैसे कोई......?????
जी हां इतनी लंबी लड़ाई आज तक शायद किसी ने देखी हो !?
सोचने वाली बात है कि छुगानी दंपति आज तक ऐसे ही बने हुए है अलग नहीं हुए !
अभी तो अंगड़ाई है आगे पूरी लड़ाई है वाली कहावत भी इन दंपति ने खारिज कर दिया ।
क्योंकि जब से परिणय सूत्र में बंधे तब से यही हाल है ....
इन दोनों में कभी पटी ही नहीं।
एक बार बातों बातों में मिसेज छुगानी ही बता गई थी।
मगर दोनों को एक चीज बांधकर रखे हुए थी तो वो है इनका मितव्ययिता ( अर्थपिशाच ज्यादा सटीक शब्द) और अड़ियल रवैया ।
ऐ दो गुण इनके बाकी चौंतीस गुणों पर भारी पड़े।
दो गुणों के मिलान से इन दोनों ने बाकी लोगों की बैंड बाजा दी है।
वैसे दोनो ब्रह्म मुहूर्त में ही उठकर अपनी दिनचर्या में लग जाते ।
हर किसी के अखबार पढ़ने की अपनी अपनी रूचि है।
मिस्टर छुगानी भी पढ़ते हैं।
अखबार तो वैसे पूरी पढ़ते हैं मगर ज्यादा सरोकार सिर्फ और सिर्फ बाजार भाव वाले पेज पर रहता ।
मिसेज छुगानी की स्वर लहरी अक्सर घर के अंदर से मोहल्ले तक सुनाई पड़ती है ।
क्यों जी कोई डिस्काउंट उस्काउंट नहीं है क्या खरीदी पे ?
दाल मिर्ची का होलसेल भाव क्या चल रहा देख लेना ।
मिस्टर छुगानी भी बड़े सिद्धत से ऑफर, छूट , आज का भाव में पेन से गोला लगाते ।
बाज़ार रिक्शे में ऐ अक्सर पैदल ही जाते।
कभी कभी तो मिस्टर छुगानी रास्ते पर गिर जाते ।
उम्र का तकाजा है ।
ऊपर से हाई शुगर ।
क्या जिंदगी जी रहे है दोनों ??
क्या करेंगे ऐं इतने रूपए पैसों का...
बच्चों तक की परवाह नहीं इन्हें....
जी हां ठीक सुना आपने दो लड़कें है और पोते पोतियों से भरा-पूरा परिवार इनका..........
मगर अफसोस................
दोनों दूसरे मकानों में रहते हैं......
इनकी रोज की किट-किट और अर्थपिशाची आदतों से तंग आकर मजबूरन उन्हें अलग जाना पड़ा...........
फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ता है मिस्टर एंड मिसेज छुगानी दंपति को.........
इतनी संपत्ति ऊपर ले के जाएंगे ..........?
और भी अनेक व्यक्तिगत विचार इन्हें देखकर आता.....
बच्चें और रिश्तेदार इन्हें समझा समझा कर थक गए....
लेकिन सब..........शैतान के कान में भजन गाने के बराबर ।
ऐसे ना जाने कितने ही छुगानी दंपति जैसे लोग हैं
जिनके अड़ियल रवैऐ के कारण घर में अशांति और असहजता का माहौल पैदा होता है और घर बिखरते हैं।
आपको नहीं लगता ??
कभी सास भी बहू थी... कभी छांछ भी दही थी...
जनरेशन गैप तो रहेगा ही यह कोई नई बात नही है।
सभी यह फिकरे बोलते हैं....
लेकिन यह कितने लोग समझ पाते हैं कि जो पारिवारिक कष्ट या झमेले हम लोगों ने उठाए है वह आने वाली जनरेशन को नहीं बांटेंगे......
बहोत ही कम ऐसे लोग मिलेंगे....
हर समय छोटे ही गलत हो ऐसा नहीं होता है ।
छुगानी दंपति के मामले में साफगोई से देखा जा सकता है।
इनके बच्चों का पैत्रिक निवास से दूर रहने का एकमात्र और गहन कारण अशांति और असहजपूर्ण वातावरण घर का....
हर उम्र की अपनी अलग ख्वाहिशें , आशाऐं , अपेक्षाएं होती है...
यह बात समझने की जिम्मेदारी बड़ों की भी उतनी ही है जितने छोटों की....
बड़े बुजुर्ग अगर थोड़े से अपने रोजमर्रा के व्यावहार में बदलाव लाके देखें तो शायद समस्या ही उत्पन्न ना हो ।
फिर बुजुर्गों का अकेलेपन की समस्या का निराकरण भी इसी तथ्य में निहित है ।
कुछ सीमाओं का होना भी तय है जो हर किसी को बन्धन में बांधती है.......
लेकिन एक हद तक.....
और जब बंधन हद पार करती है तो सीमाएं लांघ जाती है।
इस बात को घर के बड़ों को समझने की जरूरत अधिक है क्योंकि वें उम्र के बाकी सारे पड़ाव पार कर चुके हैं और उनका तजुर्बा ज्यादा है छोटों से..................
छोटों का झुकना जब संस्कार और मर्यादा का पर्याय है तो बड़ों का थोड़ा सा झुकाव उनका प्यार और बड़प्पन है ।
प्यार तो वो स्वर्णिम बंधन है जिसमें कौन न बंधना चाहे।
इसकी डोर तो घर के बड़ों के पास है । बस जरूरत है तो सिर्फ एक पहल की ।
मित्रवत व्यवहार की पहल क्यों नहीं पहले अपने ही घर से शुरू करें ।
फिर भरसक हम मित्रता दिवस बाहर भी मनाएं ।