Hritik Raushan

Inspirational

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Hritik Raushan

Inspirational

पगहा

पगहा

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हुकुमत सिंह को इस बार चुनाव में टिकट नहीं मिला तो वह तिलमिला गया। छिनती ताकत के भय से हाड़ में कंपकंपी उठी तो थी। घर लौटते ही चुन्नीदेवी पर नजर पड़ी। उसको कपड़े धोते हुए देख ठिठक गया। घर की चारदीवारी से बाहर की दुनिया से बेखबर चेहरे पर दो हाथ की घूंघट डाले लट्ठे की मोटी जाजिम को मोगरी से कूट रही थी। उसके लिए हुकुमत सिंह ही उसका ईश्वर। उसी के कहे सुने को गाँठ बांध सहचरी धर्म का पालन कर रही थी। उसने इस बार अलग नजर से चुन्नीदेवी को देखा था। चूल्हे की आँच फूंकते फूंकते चेहरे की त्वचा गहरी हो गई थी। जब से शादी होकर आई है तब से आज तक अकेले ही लम्बी चौड़ी गृहस्थी को ढोया है। गऊ की तरह खूंटे से बंधी, जब जहां हाँक दिया। घूंघट कभी दो हाथ से कम नहीं होती थी। सोचते ही हुकुममत सिंह ने राहत की सांस ली। 

अबकी उसे न सही, चुन्नी को तो इस क्षेत्र से टिकट मिल सकता है। महिलाओं को ही इस क्षेत्र में टिकट दिया जाना था।वह तुरंत पार्टी ऑफिस लौट गया। वापस आया तो कागजों का पुलिंदा हाथ में था।चुन्नी देवी लोटे में पानी लिए दौड़ी आई, "आकर कहां चले गए थे। मन में शंका लिए कबसे इंतजार कर रही हूँ।"

"जरूरी काम याद आ गया था इसलिए....! जरा स्याही लेकर तो आओ।"

"यह लीजिए।"

"यहां अंगूठा लगाओ।"

"अंगूठा नहीं, हम तो दस्तखत करेंगे।" चुन्नी देवी ने घूंघट को जरा ऊपर करते हुए बोली।

"दस्तखत करेगी? लिखना आता है?" अनपढ़ चुन्नी देवी की बात सुनकर वह भौंचक्का रह गया।

"हाँ।" चमकती आँखों से जवाब दिया।

"कब सीखी?" हुकुमत सिंह ने आश्चर्य से पूछा।

"रामकिशोर की लड़की से। मैंने उसको चटाई बुनना सिखाया और उसने मुझे पढ़ना।"

हुकुमत सिंह सुनकर बिदक गया। उसे यह बात अच्छी नहीं लगी थी। 

"अच्छा, अच्छा। अब अधिक शेखी बघारने की कोशिश मत कर।चल यहां दस्तखत कर।"

वह दिन था और आज का दिन।चुन्नी देवी को टिकट मिला। चुनाव प्रचार में आगे-आगे हुकुमत सिंह और पीछे दो हाथ की घूंघट डाले चुन्नी देवी चलती थी।चुन्नी देवी की सामाजिकता का परिणाम था या हुकुमत सिंह का दबदबा यह तो राम ही जाने। परिणाम कुल मिलाकर यह निकला कि चुन्नी देवी ने अपने प्रतिद्वंद्वी को 7 हजार 300 वोट से हरा दिया था।

भारी मतों से जीत की खुशी में हुकुमत सिंह ने घर घर लड्डू बँटवाए। वह खुश था कि चुन्नी देवी तो नाम मात्र के लिए थी, असल में तो कुर्सी उसने ही जीती थी।घर के बाहर प्रेस वाले इंतजार कर रहे थे। वह रेशमी अंगरखा लगा कर इंटरव्यू के लिए बाहर निकला। चुन्नी देवी पीछे पीछे बाहर आई थी। मिडिया के सामने चुन्नी देवी ने अपनी लम्बी घूंघट घटा ली थी।

मिडिया ने हुकुमत सिंह को किनारे हो जाने को कहा। और चुन्नी देवी की तरफ कैमरा घूमाया। कैमरामैन और रिपोर्टर आपस में बात करते हुए सामांजस्य स्थापित किया और चुन्नी देवी से प्रश्नोत्तरी शुरू कर दिया!

चुन्नी देवी ने मिडिया के कहने पर उनका अनुसरण करते हुए अपना पहला इंटरव्यू सफलतापूर्वक पूरा कर लिया था। इंटरव्यू के वक्त वह हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का इस्तेमाल कर रही थी। अब तक गऊ की तरह खूंटे से बंधी रहने वाली चुन्नी देवी को कुर्सी पर विराजमान देख हुकुमत सिंह पहली बार जीत प्राप्त करने के बाद भी पूरी तरह से हारा हुआ महसूस कर रहा था।


                 


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