पेंसिल
पेंसिल
"मम्मी जो आपने मुझे नई पेंसिल दी थी ना वो मुझसे आज स्कूल में खो गई। पता नहीं किस बच्चे ने मेरे पेंसिल बाक्स से उसे निकाल लिया " कहते हुए अनिका मायूस हो गई। दस साल की नन्ही अनिका रोज़ स्कूल से आते ही पेंसिल खोने की बात करती थी। उसकी इस झूठ बोलने की आदत से मम्मी बहुत परेशान थी। पिछले एक महीने में आज पेंसिल का चौथा डब्बा खत्म हुआ था। अब रिया को फिर से पेंसिल लेने स्टेशनरी की दुकान पर जाना पड़ेगा तभी अनिका अपने स्कूल का होमवर्क कर पायेगी। खिड़की से बाहर झाँका तो बहुत तेज बारिश हो रही थी। शाम के सात बजे थे रिया ने छाता उठाया और पेंसिल लेने चल दी।" आखिर इसकी पेंसिल रोज़ जाती कहाँ है एक रखती हूँ तो एक गायब , दो रखती हूँ तो दो गायब ये इतनी पेंसिल का करती क्या है ? सोचते - सोचते रिया दुकान तक पहुँच गई।
"भैया छह डब्बे पेंसिल के दे दो " रिया बोली। दुकानदार ने तपाक से जवाब दिया," लगता है बिटिया रानी बड़ी अफसर बनेगी,पर उसकी उम्र का भी थोड़ा ख्याल करो दीदी ज्यादा लिखने से उंगलियाँ मुड़ जाती हैं।रिया मायूस होकर बोली," कहाँ भैया,अनिका का तो आजकल पढ़ने में मन ही नहीं लगता। पता नहीं उसे क्या हो गया है रोज़ पेंसिल खोकर आ जाती है,मैं खुद बहुत परेशान हूँ।दुकानदार ये सुनते ही स्तब्ध रह गया और बोला," ये क्या अनिका भी इस फाईटिंग के चक्कर में पड़ गई ? उसे इस जंजाल से निकालो दीदी।
रिया बोली," फाईटिंग कैसी फाईटिंग ? "दुकानदार," अरे ये बच्चे आजकल स्कूलों में पेन,पेंसिल की फाईटिंग कराते हैं और जो जीतता है वो सारी पेंसिल अपने घर ले जाता है।रिया ने कुछ सोचा और बोली," आप आज मुझे छह डब्बे नहीं बल्कि जितने भी डब्बे दुकान में पेंसिल के हैं,वो सभी दे दो।"
घंटी बजते ही अनिका दौड़कर दरवाजा खोलने आई और मम्मी के हाथ में इतनी सारी पेंसिल देखकर बोली,इतनी सारी पर क्यूँ मम्मी ? रिया , "अब मेरी अनिका को मुझसे रोज़ झूठ बोलने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी जब फाईट हार जाओ तब बिना मुझसे पूछे अपने दोस्तों को पेंसिल दे आना।" ये सुनते ही अनिका फूट - फूट कर रोने लगी। आज उसे अपनी गलती का एहसास होने लगा था और पेंसिल के सही उपयोग के महत्व को भी वो समझ चुकी थी। उसने दौड़ कर अपनी मम्मी को गले से लगा लिया और बोली," विद्या पढ़ाई की कसम दुबारा ऐसा कभी नहीं होगा और पेंसिल से अपनी नोटबुक पर लिख दिया "से नो टू पेंसिल फाईटिंग।"