नवभारत के भाग्य विधाता
नवभारत के भाग्य विधाता


नवभारत के भाग्य विधाता थे : डॉ भीमराव अंबेडकर
भारतीय संविधान के निर्माता, नवभारत के भाग्य विधाता, नारी के मुक्तिदाता, सर्व समाज के हितों के रक्षक और मजलूमों के मसीहा भारत रत्न डॉ0 भीमराव अम्बेडकर का जन्म मध्य प्रदेश में इन्दौर के निकट महू छावनी में 14 अप्रेल सन 1891 में महार जाति में हुआ था। इनके पिता का नाम रामजी मालो सकपाल और मां का नाम भीमाबाई था। इनके पिता ब्रिटिश आर्मी में सूबेदार थे। ये अपने माता पिता की चौदहवी सन्तान थे। ये केवल 6 वर्ष के ही थे, जब इनकी मां का देहान्त हुआ।
प्राथमिक शिक्षा :-
बालक भीम को प्राथमिक शिक्षा के लिए सतारा के प्राथमिक विद्यालय में भेजा गया। छुआछूत के दंश के कारण बालक भीम को प्रतिभावान होने के बावजूद कक्षा में नहीं, बल्कि कक्षा के बाहर अन्य छात्रों के जूते निकालने वाली जगह बैठकर पढ़ना पड़ता था। जातिवादी भेदभाव के जहर के कारण प्यास लगने पर भी खुद मटके से पानी नहीं पी सकते थे। इन तमाम कठिनाइयों से जूझते हुए भीमराव ने सन 1907 में हाई स्कूल की परीक्षा पास कर ली।
उच्च शिक्षा :-
हाई स्कूल की परीक्षा पास करने के बाद इनका विवाह रमाबाई से हुआ। सन 1912 में इन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से बी ए की परीक्षा पास की। सन 1913 में इनके पिता का देहांत हो गया तो ऐसा लगा मानो भीमराव के सब सपने धरे के धरे रह गए, लेकिन महाराजा बडोदा सयाजी राव गायकवाड़ की मदद से भीमराव को सन 1913 में कोलंबिया विश्वविद्यालय में पढ़ने का अवसर मिला। वे भारत के प्रथम अछूत थे जो उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश गए। अंबेडकर ने अपनी लगन, कड़ी मेहनत व धैय से कठिन परिस्थितियों का बडी दिलेरी से सामना करते हुए शिक्षा की बड़ी-बड़ी डिग्रियां प्राप्त की।
'मूकनायक' का प्रकाशन :-
डॉ भीमराव अंबेडकर ने अपने समाज की दशा और अपने विचारों को सबके सामने रखने के लिए 31 जनवरी 1920 को एक पाक्षिक समाचार पत्र की शुरुआत की, जिसका नाम था 'मूकनायक' अर्थात गूंगो का नेता। इसके द्वारा बाबा साहब ने दलित समाज के दर्द को लोगों के सामने प्रस्तुत किया। 'मूकनायक' द्वारा बाबा साहब बताते हैं कि भारत को केवल स्वतंत्र कराना ही पर्याप्त नहीं है अपितु स्वतन्त्र भारत एक ऐसा राष्ट्र बने जिसमें सभी को समान अधिकार मिले और जिसमें सभी को अपना भविष्य उज्ज्वल बनाने का मौका मिले। अपने लेखो में उन्होंने कहा कि जिस स्वराज में दलितों के लिए मौलिक अधिकारों की गारंटी नहीं हो, वह उनके लिए स्वराज नहीं होगा अपितु यह एक नई गुलामी होगी।
'बहिष्कृत भारत' पत्रिका का प्रकाशन :-
डॉ० अम्बेडकर ने सन 1927 में 'बहिष्कृत भारत' नामक एक पाक्षिक पत्रिका शुरू की, जिसके माध्यम से उन्होंने जातिवाद का यह कहते हुए खंडन किया कि 'मनुष्य जब पैदा होता है तब वह केवल मनुष्य होता है, ईश्वर की संतान होता है, न कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र की।' मानव ने अपने स्वार्थ के लिए जातियां बनाई है, न कि ईश्वर ने। भारत को छोडकर विश्व में ऐसा कोई देश नहीं जहां मानव को प्रकृति द्वारा दी गई चीजों को अछूत कहकर प्रयोग न करने दिया हो। अम्बेडकर कहते हैं कि मानव जन्म से पंडित या अछूत नहीं हो सकता। उन्होंने अछूतों को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए मंदिर प्रवेश आंदोलन भी चलाया।
जल सत्याग्रह :-
हिंदुओं के धार्मिक स्थानों, तालाबों, कुओं और बावड़ियों में पशु-पक्षी तो पानी पी सकते हैं, नहा सकते हैं परंतु उसी तालाब से एक अछूत अपनी प्यास नहीं बुझा सकता चाहे वह प्यासा ही क्यों न मर जाए। सदियों से चली आ रही इस असमानता के खिलाफ डॉ आंबेडकर ने मार्च 27 को महाड नामक स्थान पर दलितों की एक विशाल सभा आयोजित कर 'जल सत्याग्रह' का बिगुल बजाया। जिसमें डॉ आंबेडकर ने लोगों के स्वाभिमान को जागृत करते हुए कहा कि उन माता-पिता और पशुओं में कोई अंतर नहीं होगा, जो अपनी संतान को अपने से अच्छी स्थिति में देखने की इच्छा न करें। अपने जीवन स्तर को ऊंचा उठाओ, बेगारी करना छोड़ो, चंद पैसों के लालच में अपने आपको दास मत बनाओ, हमारी उन्नति तब होगी, जब हम अपने अंदर स्वाभिमान का भाव पैदा करेंगे। डॉ भीमराव अंबेडकर अपने लोगों को चवदार तालाब पर लेकर गए और वहां जाकर के पानी पीया और अछूतो ने सवर्णो के तालाब से पानी पीकर सदियों से लगे प्रतिबंध का खात्मा किया। इस घटना ने पूरे भारत के अछूतों में अभूतपूर्व हिम्मत पैदा कर दी। इस ऐतिहासिक एवम साहसिक कार्य के लिए पूरे देश में डॉ भीमराव आंबेडकर की भूरी भूरी प्रशंसा हुई।
मनुस्मृति का दहन :-
डॉ भीमराव अंबेडकर को अपने गहन अध्ययन से ज्ञात हुआ कि भारत में शूद्रों के साथ भारी भेदभाव का मूल कारण प्राचीन ब्राह्मण ग्रंथ है। इनमें अमानवीय तथा निंदनीय बातें भरी पड़ी है। इन ग्रंथों में शुद्रों, अछूतों और महिलाओं के साथ छुआछूत तथा दुर्व्यवहार के धार्मिक कानून मौजूद हैं। इन ग्रंथों के अध्ययन से समाज में भेदभाव की भावना को बल मिलता है और इनमें सबसे अधिक हानिप्रद पुस्तक मनुस्मृति है। यही पुस्तक ब्राह्मणी धर्म का संविधान है। जिसकी रचना देश के मूलनिवासियो को सदा के लिए गुलाम बनाए रखने के लिए की गई थी। नारी की गुलामी का मुख्य कारण भी यही पुस्तक है। डॉ आंबेडकर ऐसे इतिहास पुरुष थे जिन्होंने इस पुस्तक की विनाशक मान्यताओ से सभी को अवगत कराया और सावधान किया। 25 दिसंबर 1927 को महाराष्ट्र के महाड़ नगर में डॉ आंबेडकर ने अपने अनुयायियों की उपस्थिति में इस काले कानूनों वाले कलंकित ग्रंथ को आग की लपटों के हवाले कर ब्राह्मणी धर्म के काले कानूनों के विरुद्ध बिगुल बजाकर ऐसे समाज का स्वपन दिखाया, जिसमे सब के लिये समानता, स्वतंत्रता, न्याय और भाईचारा हो।
पूना पैक्ट :-
गांधी जी का कहना था कि वे हरिजनों की भलाई के लिए बहुत कुछ कर रहे हैं जबकि अम्बेडकर का आरोप था कि अछूतों के लिए कुछ नहीं हो रहा। अछूतों के चारों और के द्वार बंद हैं उनकी कोई नहीं सुनता। वे समाज में रहकर भी समाज से दूर हैं। भारत तो गोरों का गुलाम है परंतु अछूत तो गोरों और कालों दोनों के गुलाम है। डॉ०अम्बेडकर के अथक प्रयासों से दूसरे गोलमेज सम्मेलन में ग्रेट ब्रिटेन के सम्राट ने डॉ अम्बेडकर द्वारा रखी गई मांगों - अछूतों को उनकी जनसंख्या के आधार पर सरकारों में प्रतिनिधित्व और अलग निर्वाचन क्षेत्र बनाना आदि सभी मांगों को स्वीकार कर लेने पर अम्बेडकर की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। लेकिन गांधी जी को अम्बेडकर की ये मांगें रास नहीं आई और उन्होंने आमरण अनशन कर दिया।अम्बेडकर पर गांधी जी के जीवन की रक्षा करने का चौतरफा दबाव पडने लगा। पंडित मदन मोहन मालवीय और कस्तूरबा गांधी ने डॉक्टर अम्बेडकर से कहा -'अम्बेडकर, गांधी जी से समझौता कर उनकी जान बचालो। तुम अपने मांग पत्र पर पुन: विचार करो।' डॉ०अम्बेडकर ने गांधी जी के साथ समझौता कर उनकी जान बचाई। गांधी-अम्बेडकर समझौते में दलितों के अधिकारों की पूरी व्यवस्था की गई।
मजदूरों के मुक्तिदाता :-
डॉ भीमराव अंबेडकर को जून 1942 में वायसराय हिंद ने अपनी कार्यसाधक काउंसिल में शामिल किया और उन्हें श्रम विभाग का कार्य सौंपा। एग्जीक्यूटिव काउंसिल में लेबर मेंबर के पद पर रहते हुए बाबा साहब ने मजदूरों की भलाई के लिए अंग्रेजों से अनेक सुविधाए हासिल की। जैसे :- न्यूनतम मजदूरी अधिनियम को असेंबली में 1946 में पेश किया और पास करवाया। मजदूरों के लिए अनिवार्य बीमा योजना की शुरुआत करवाई। मजदूरों के लिए चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करवाई। महिला मजदूरों को वेतन के साथ प्रसूति छुट्टियों की सुविधा दिलवाना। काम करते हुए मजदूर को चोट लगने, अंग कटने या मृत्यु होने पर उचित मुआवजे की व्यवस्था करवाना।अपनी मांगे मनवाने के लिए हड़ताल करने का अधिकार दिलवाया। बाबा साहब ने श्रम मंत्री रहते हुए पूरे देश में रोजगार कार्यालय स्थापित करवाएं।
संविधान निर्माता :-
आजाद भारत के लिए स्वतंत्र व नए संविधान को बनाने की कवायद में डॉ०अम्बेडकर को मसौदा समिति का अध्यक्ष बनाया गया। समिति के सदस्यों का कोई सहयोग न मिलने के बावजूद डॉ० अम्बेडकर ने इस महान एवं पुनीत कार्य को सम्पूर्ण करने में दिन-रात एक कर दिया। भारत के हर नागरिक के हितों को ध्यान में रखकर डॉ भीमराव अम्बेडकर ने अपने अथक प्रयासों से दो वर्ष ग्यारह महीने अठारह दिनों में एक ऐसा संविधान बनाया जो देश में कानून का शासन स्थापित करता है, सब को समानता और स्वतंत्रता का अधिकार देता है और आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करता है। अपने इस संविधान से आंबेडकर ने सदियों से अन्याय की चक्की में पिसते दलितों, मजदूरों और नारियों का उद्धार किया।
भारतीय संविधान की धाराओं में डॉ०अम्बेडकर ने अपनी कलम से दलितों व अछूतों के लिए ऐसा रक्षा कवच बनाया कि जिसे पहनकर आज महिलाएं, मजदूर, अछूत और शोषित अपना सर्वांगीण विकास कर देश की उन्नति में अपनी भागीदारी दे रहे है।
जब डॉ०अम्बेडकर ने संविधान बनाकर राष्ट्रपति महामहिम राजेंद्र प्रसाद और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु को सौंपा तो महामहिम ने प्रसन्न होकर कहा - 'हम डॉ०अम्बेडकर के बहुत आभारी हैं। जैसा संविधान इन्होंने बनाया है वैसा शायद कोई नहीं बना पाता।' पंडित नेहरु ने कहा - 'डॉ०अम्बेडकर संविधान के शिल्पकार हैं। इतिहास के पन्नों में इन का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा और जब तक भारत का नाम रहेगा तब तक डॉ०अम्बेडकर का नाम भी रहेगा।' सभी नेताओं ने भारतीय संविधान के शिल्पकार के इस अनुपम कार्य की भूरी-२ प्रशंसा की। अम्बेडकर निर्मित संविधान को 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया। डॉक्टर अम्बेडकर को आजाद भारत का प्रथम कानून मंत्री भी बनाया गया। उन्होंने दलितों और मजदूरों के साथ साथ एक और शोषित वर्ग महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु भी भरसक प्रयास किए। उन्होंने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए हिंदू कोड बिल बनाया, लेकिन सत्तारूढ दल के कट्टरपंथी नेताओं ने जब इस बिल को संसद में नामंजूर कर दिया तो बाबा साहेब डॉ०अम्बेडकर ने मंत्री पद से त्याग पत्र दे दिया और उन्होंने कहा था कि यह बिल महिलाओं को उनकी खोई हुई गरिमा वापिस दिलाएगा और लडके और लडकियों को समान अधिकार देने की बात करता है। मजदूरी के 8 घंटे निर्धारित कर मजदूरों के शोषण पर लगाम लगाई।
बौद्ध धम्म की दीक्षा :-
आजीवन मिले छुआछूत के कडवे घूंट में व्याप्त हृदय विदारक वेदना ने उनके मन में हिन्दू धर्म के प्रति कडवाहट इतनी अधिक आ गई कि 14 अक्टूबर 1956 में एक ऐतिहासिक सम्मेलन में बौद्ध धर्म की दीक्षा ले ली और लोगों को ढोंग, पाखण्ड और अंधविश्वास को छोड़कर वैज्ञानिक सोच को आत्मसात करने का सन्देश दिया।
निधन :-
6 दिसम्बर 1956 को इस महान आत्मा ने अपने निवास स्थान दिल्ली में अंतिम सांस ली। इनके मरणोपरांत भारत सरकार ने इन्हें सन 1990-91 में देश के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया। लोग प्यार व सम्मान से इन्हें 'बाबा साहेब' कहते है। डॉ भीमराव अंबेडकर का क्रेज इतना बढ़ चुका है कि आज लोग 'जय भीम' कहकर आपस में अभिवादन भी करते है। आज 'जय भीम' का नारा समता, स्वतंत्रता, न्याय, प्रेम, भाईचारे और एकता का जयघोष बन चुका है। वास्तव में डॉक्टर अम्बेडकर भारत के संविधान के निर्माता, नव भारत के भाग्य विधाता और बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।