Bhoop Singh Bharti

Inspirational

4.5  

Bhoop Singh Bharti

Inspirational

एकता में बल

एकता में बल

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नन्दनवन का राजा शेरसिंह बड़ा ही ऐय्याश ओर आलसी था और उसका महामंत्री गजराज बड़ा ही धूर्त ओर चालाक था, इसलिये वह राजा की ऐय्यासी का फायदा उठा खुद नन्दनवन का राज-काज चलाने लगे। सत्ता के मद में गजराज अहंकारी हो गया और वह सभी जानवरों को बात-बेबात तंग करने लगा। गजराज की इन हरकतों से जंगलवासी परेशान रहने लगे, मगर बेचारी प्रजा अपना दुख कहे तो किससे कहे? राजा तो खुद महामंत्री गजराज के इशारों पर नाचता था क्योंकि महामंत्री हर पल राजा को शराब, शबाब ओर कबाब में सरोबार रखता था। आखिर तंग आकर एक दिन सभी जानवरों ने एक गुप्त सभा की, जंगल के सभी जानवरों ने शिरकत की। सभा का विषय था - 'महामंत्री की दुष्टता से कैसे छुटकारा पाया जाए?' सभा की अध्यक्षता करते हुए भालू ने कहा, 'हमे मिलजुल कर इस समस्या का हल करना है। सभी को अपनी बात कहने का पूरा हक है।' इतना सुनते ही कौआ अपनी कर्कश आवाज में बोला, 'हमे गजराज से छुटकारा पाने के लिये किसी मनुष्य की मदद लेनी चाहिये। गजराज जैसे बली को तो केवल कोई मनुष्य ही वश में कर सकता है, वह गजराज को पकड़कर ले जाएगा और फिर हम सब यहाँ फिर चैन से रहेंगे।' ये तर्क सुनकर कई जानवर एक साथ बोले, 'हाँ, हाँ, हाँ ये ठीक रहेगा।' खरगोश सबको चुप कराते हुए बोला, ' सुनो भाइयों, मेरी राय में तो ये तरीका सरासर गलत है।' कोए की बात का समर्थन करने वाले जानवरो के मुंह से एकसाथ निकला, 'क्यों गलत है?' बूढ़ा खरगोश सहजता से बोला, 'गजराज सत्ता के मद से हमें केवल तंग करता है, यदि हम किसी मनुष्य को बुलाकर गजराज जैसे बली को पकड़वा देते हैं तो फिर मनुष्य बेख़ौफ़ हो रोज नन्दनवन आएगा हम में से एक-एक को पकड़-पकड़ कर ले जाएगा। तब हम कुछ भी न कर पाएंगे। अतः हमें अपनी समस्या को खुद सुलझानी चाहिये, एक आफत को दूर करने के लिए दूसरी बड़ी आफत को न्योता नहीं देना चाहिये।' बात इतनी सीधी और सपाट थी कि सबकी समझ मे आ गयी। समस्या की विकटता ने सभा मे सन्नाटा फैला दिया। गीदड़ ने सन्नाटे को तोड़ते हुए कहा, 'अब इस समस्या का हल भी खरगोश बाबा ही बताएंगे। बूढ़ा खरगोश गम्भीरता से बोला, 'इस समस्या का केवल एक ही उपाय है।' सभी के मुख से एकसाथ निकला, 'क्या उपाय है?' खरगोश बोला, 'गजराज को थल पर केवल राजा शेरसिंह ही हरा सकते हैं, लेकिन राजा तो खुद उसका गुलाम बना हुआ है। अब गजराज को केवल जल में ही हराया जा सकता है, क्योंकि जल में सर्वशक्तिशाली मगरमच्छ होता है। अगर मगर दादा हमारी मदद करें तो गजराज से हमें मुक्ति मिल सकती है। खरगोश का तर्क सुन सब वाह वाह करने लगे।

सभी जानवर एकत्रित होकर नन्दनवन के तालाब पर गए और मगर दादा से सब कह सुनाया। मगरमच्छ ने जानवरों की मदद का वादा कर लिया। अगली सुबह जब सत्ता के मद में चूर गजराज तालाब पर नहाने के लिए गया तो उसने सभी जानवरो को सपनी शक्तिशाली सूंड से इधर-उधर फेंकने लगा तो पेड़ पर बैठा बन्दर बोला, 'महामंत्री जी, इतना गुमान भी ठीक नहीं, कभी-कभी सेर को सवा सेर भी मिल जाता है।' इतना सुनते ही क्रोधित हो गजराज ने वह पेड़ की शाखा को तोड़ डाला और बन्दर को अपनी सूंड में लपेटकर दूर फेंक कर बोला, 'इस वन में मुझसे टकराने की किसमे हिम्मत है।' चिंघाड़ते हुए गजराज तालाब में घुस गया।

पानी में घुसते ही पानी मे तैयार बैठे मगरमच्छ ने गजराज की एक टांग को अपने काल रूपी जबड़ो में दबाया और गजराज को पानी मे खींचने लगा। गजराज ने अपनेआप को छुड़ाने में अपनी सारी ताकत लगा दी, मगर सब बेकार। सामने साक्षात मौत को देख वह जोर-जोर से चिंघाड़ने लगा, उसने जानवरों को मदद के लिए पुकारा, लेकिन कोई भी मदद को आगे नहीं आया। मगर के जबड़ो में फंसा गजराज तालाब पर तमाशा देख रहे जानवरों से माफी मांगते हुए बोला, 'दोस्तों, मैंने तुम्हारे साथ सदा बुरा व्यवहार किया, जिसकी सजा आज मुझे मिल रही है। अलविदा कहते हुए गजराज ने अपनी आंखें मूंद ली। तभी बूढ़े खरगोश ने पूर्व योजनानुसार एक बड़ा सा रस्सा गजराज की तरफ फेंकते हुए कहा, 'महामंत्री जी, जब आपने हमें अपना दोस्त मान लिया तो अब हम आपको नहीं मरने देंगे। इस रस्से को पकड़ो। हम सारे मिलकर तुम्हें बचा लेंगे। आपने सुना तो होगा ही  केि एकता में बल होता है।'  गजराज ने रस्से को सूंड से पकड़ लिया और जैसे ही सबने मिलकर बोला, 'जोर लगाओ, हईशा....।' तो ये आवाज सुनते ही मगर ने गजराज का पैर छोड़ दिया और गजराज बच गया। अब सब फिर से नन्दनवन में आनन्दपूर्वक रहने लगे।


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