मां का आशीर्वाद
मां का आशीर्वाद


ये प्रसंग तब का है जब मैं कक्षा तीसरी में पढ़ता था। मेरी माँ मुझे रोजाना तैयार करके बस्ता-पट्टी थमाकर स्कूल के लिए भेज देती और मैं स्कूल न जाकर स्कूल के रास्ते में बाबा भैया का छोटा सा मंदिर आता था, उसमे रुक कर खेलने लग जाता और छुट्टी के समय अपने घर चला जाता। उस समय हमारे स्कूल में मेरी मोसी का लड़का भी पढ़ाता था। एक दिन वह छुट्टी के बाद हमारे घर आ गया और माँ से मेरे स्कूल में न आने का कारण पूछा तो मेरी माँ अपने आश्चर्य को छुपाते हुए बड़े ही सहज ढंग से बोली, 'भाई हंसराज, कल भूप स्कूल आ जॉएगा।' मास्टर जी चाय-पानी पी कर चला गया मगर मेरी माँ न जाने क्या सोचने में लगी थी। माँ ने मुझसे भी कुछ नही कहा, मगर अगले दिन जब मैं स्कूल जाने लगा तो माँ मेरे पीछे-2 कुछ दूरी बना कर चलने लगी। बाबा भैया के मंदिर में जब मैंने अपना बस्ता रखा और खेलने लग गया तब मेरी माँ मुझे पकड़कर डंडे से पीटने लगी तो मैं मुश्किल से छुड़ा कर हमारे नोहरे की तरफ भागा, जहाँ मेरे बूढ़े बाबा रहते थे, क्योकि माँ केवल वही नही जा सकती थी। मैं वहां जब कई देर खड़ा रहा तो बाबा ने पूछा कि बेटा खड़ा क्यों है तो मैंने बाबा से कहा कि माँ मुझे पीटने के लिए वहां खड़ी है। बाबा ने मेरी माँ की तरफ देखा जो कुछ दूरी पर डंडा लिए खड़ी थी। बाबा मुझसे बोले, तेरी मां तुझे क्यों पीटने आई है? तब मैंने बताया कि मैं स्कूल जो नहीं गया। कारण जानकर बाबा ने माँ से कहा, 'बेटा, अभी ये बालक है, धीरे-2 अपने आप जाने लग जायेगा स्कूल। जा इसे घर ले जा, ये कल चला जायेगा।' मैं खुश हो गया और माँ के साथ घर चला गया। घर ले जाकर माँ ने मेरे हाथ बांधकर मुझे खूँटी से लटका दिया। मै जोर-2 से रोने लगा पर मेरे रुदन का माँ के मन पर कोई असर नही पड़ा लेकिन तभी बाबा भी खाना खाने के लिए घर आये और उन्होंने मुझे रोते हुए खूंटी से लटकतेे देखा तो उन्होंने मुझे खूंटी से उतारा और माँ से बोले, 'के तू आज ही तीनवा नै मास्टर बणावागी।' माँ कुछ नही बोली, मगर मै माँ के अटल निश्चय से ये समझ गया था कि अब स्कूल जाने में ही भलाई है। उस दिन के बाद मैंने कभी स्कूल से बंक नही मारा और एक दिन ऐसा आया जब हम तीनो भाई मास्टर बने मगर उस दिन कहने को तो हमारे पास माँ नही थी, मगर माँ का आशीर्वाद हमारे साथ था। आज बड़ा भाई मुख्य शिक्षक के पद से सेवानिवृत हो चुका है मंझला भाई जिला शिक्षा अधिकारी के पद से सेवानिवृत हो चुका है और मै रावमा विद्यालय पटीकरा में राजनीति शास्त्र के प्रवक्ता पद पर कार्यरत हूँ।
मैं सन 1998 से बाल कविता, कहानी, लघुकथा और आलेख दैनिक ट्रिब्यून, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, पंजाब केसरी, हरिभूमि, अमर उजाला, शिक्षा सारथी, नन्दन, हरिगन्धा, हरियाणा संवाद आदि पत्र-पत्रिकाओं में लिख रहा हूं। आज मैं जो कुछ हूं वो मेंरी माँ की बदौलत हूं। मेरी मां ने हमें लड़ना सिखाया, और लड़ने के लिए पढ़ाई की जरूरत होती है। यह बात मां को हमारे नोहरे पर छब्बीस सालों तक चले कोर्ट केस से पता चली। मेरी मां ने छब्बीस सालों तक कोर्ट केस लड़ा। गुड़गांवा कोर्ट में कई बार तो पैदल भी जाना पड़ा और अंत में नोहरे का केस जीती। मां ने सब कुछ सहा, मगर हमें पढ़ाने में कोई कोताही नहीं बरती। मेरी मां शिक्षा के महत्व को समझती थी। इस नोहरे के संघर्ष में मेरे पिता ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद फोज की नौकरी भी छोड़नी पड़ी। मजदूरी करी, पत्थर फोड़े, खेती करी, मगर मेरे माता पिता ने हमें हजार कष्ट सहकर भी पढ़ाया। मेरी मां कहती थी कि शिक्षा ऐसा धन है, जिसे आंच जला नहीं सकती, पानी गला नहीं सकता और चोर चुरा नहीं सकता। वो अक्सर कहती थी, पढ़ले बेटा, ये पढ़ाई मरते दम तक काम आयेगी।
मेरी माँ मेरे लिए गुरु, दोस्त और एक सच्चा पथ प्रदर्शक रही है। मुझे आज भी माँ का अहसास ही जीवन की सही राह दिखा रहा है।
मातृ दिवस पर माँ को शत-शत नमन।