नव दुर्गा का आध्यात्मिक रहस्य
नव दुर्गा का आध्यात्मिक रहस्य
जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं कि वर्ष में दो बार नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है जिसमें एक शरद ऋतु तथा दूसरी वसंत ऋतु में मनाई जाती है।
हमारा शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है और इस शरीर को हमने तीन भागों में बांटा है, जिसमें पहला भाग स्थूल शरीर का (physical body)तथा दूसरा भाग सूक्ष्म शरीर का(Astral body) तथा तीसरा भाग कारण शरीर का(Casual body) है। स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर मिलकर प्राण शरीर(Ethereal body) का निर्माण करते हैं।
स्थूल शरीर से हम कर्म योग द्वारा अपनी इंद्रियों को शांत तथा निर्मल बनाते हैं जिसके अंतर्गत जप करना, रामायण पढ़ना, भजन गाना इत्यादि कर्मकांड में शामिल हैं । इसी प्रकार सूक्ष्म शरीर को, हम उपासना द्वारा निर्मल बनाते हैं जिसमें हम साकार तथा निराकार की उपासना करते हैं जिसे भक्ति भी कहते हैं। इसमें मन और बुद्धि दोनों सहायता करते हैं, जिससे हमारा मन निर्मल होता है। अब बात करते हैं कारण शरीर की इसमें मात्र हमारी बुद्धि कार्य करती है, इसी में मन की असली सफाई होती है ,जिसमें जन्म जन्मांतर के संस्कार विद्यमान रहते हैं और इसी में साधक के अंतर में अहंकार की उत्पत्ति होती है जो बिना गुरु को समर्पण कर दूर नहीं किया जा सकता। तीनों प्रकार के शरीर को निर्मल करने से ही हमें परमात्मा की प्राप्ति होती है।
अब हम बात करते हैं नवदुर्गा के असली आध्यात्मिक रहस्य के बारे में जिसमें हम इन्हीं तीनों शरीर को निर्मल बनाते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि प्रकृति में 3 गुण हमेशा विद्यमान रहते हैं जिन्हें हम सतोगुण और रजो गुण तथा तमोगुण नाम से जानते हैं।
जगत की सृष्टि हेतु परमपिता परमात्मा ने शक्ति की धाराएं प्रवाहित की जिसे चार भागों में बांटा गया।
पहला भाग जो कि तमोगुण से बनाया गया और यह धार (महाकाली मां )के नाम से बनी, जिस धारा की चकाचौंध इतनी तेज थी कि मनुष्य इसको देख ही नहीं सकता था।
दूसरे भाग में जब यह धारा नीचे आई तो यह रजोगुण से बनी ,जिसे हम (महालक्ष्मी )नाम से जानते हैं यह धारा श्वेत और सुनहरी रूप में थी।
तीसरे भाग में जब यह धारा और नीचे आई तो यह सतोगुण से बनी जिसे हम गायत्री, सरस्वती और सावित्री नाम से जानते हैं ।
अब इन तीनों शक्तियों ने अपने साथ एक एक पुरुष को लिया जिसमें सबसे पहले भगवान शिव ने महाकाली के साथ तथा भगवान विष्णु ने महालक्ष्मी के साथ तथा भगवान ब्रह्मा ने गायत्री के साथ मिलकर एक नई शक्ति का निर्माण किया जिसे हम दुर्गा या नव -दुर्गा शक्ति के नाम से जानते हैं। दुर्ग का अर्थ ही यह होता है कि संसार को चलाना। इसी नवदुर्गा पर्व में हम तीनों शरीर को निर्मल बनाते हैं जो निम्न वत है---
1..स्थूल शरीर--तीन दिन/(सत्,रज,तम्)
२...सूक्ष्म शरीर...तीन दिन /(सत्,रज,तम्)
3...कारण शरीर..तीन दिन /(सत्,रज,तम्)
इस प्रकार शरीर को निर्मल करने के लिए प्रकृति के तीन प्रभाव जोकि सत्, रज और तम् हैं, इनके प्रभाव को दूर करने के लिए 9 दिनों की आवश्यकता होती है। इन 9 दिनों में हमारा मन स्थिर और शांत हो जाता है ,जिसके अंतर्गत हमारे हृदय में एक कम्पन सा पैदा होता है ,जिसे हम अध्यात्मिक भाषा में आकाशवाणी कहते हैं, साधक यह समझता है कि मां बलि चाहती हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि साधक के अंदर अहंकार का निर्माण हो जाता है जिसको मां यह चाहती है कि इस अहंकार की बलि साधक मेरे चरणों में समर्पित कर दें तथा तब वह मां के दर्शन का पात्र बनेगा। परंतु अजीब विडंबना यह है कि मनुष्य यह समझता है कि मां किसी जीवित प्राणी की बलि चाहती हैं । और वह मां को खुश करने के लिए इतनी बड़ी भूल कर बैठता है।
अंत में मैं यह कहना चाहूंगा कि नवदुर्गा का जो आध्यात्मिक रहस्य है उसको सभी साधक उपर्युक्त बताए हुए तरीके से अपने मन तथा हृदय को निर्मल बनाए और मां के साक्षात दर्शन करने का पात्र बने।
मां के दर्शन तभी सुलभ है जब हमारा मन और हृदय निर्मल होगा क्योंकि मां तो अबोध बालक को ही अपने गोद में बैठाना चाहती है ना कि जिसके मन में कुटिल भावना हो।
हे! मां हम सब पर कृपा करें ,एवं इस संसार को इस कोविड-19 जैसी महामारी से हम सबकी रक्षा करें।
जय माँ दुर्गा ।
