नन्ही - सी जान का एक सवाल
नन्ही - सी जान का एक सवाल
अजी सुनते हो सजावट पूरी हुई या नहीं। खाने का प्रबंध कैसा है? देख लो ज़रा फिर से - माँ ने कहा। सब ठीक है, सब ठीक है - कहते हुए पिताजी बाहर चले गए। माँ फिर से मेहमानों की देखभाल और रस्मों में लग गई। दीदी को भी नहलाया जा रहा था, सभी गीत गा रहे थे और उनका श्रृंगार किया जा रहा था। यह सब देखकर छोटी नव्या खूब हँस रही थी और गहनों मिठाइयों और नए-नए कपड़ों को देखकर खूब खुश हो रही थी। बारात बस आने ही वाली थी। लो बारात भी आ गई और इनका कुछ पता ही नहीं। कहाँ है ये? छोटू - बोलते हुए आया माँ पिताजी स्वागत के लिए बाहर खड़े हैं। बारात आई, सब कुछ अच्छे से हो गया। शादी भी अच्छे से निपट गई। अब बारी उस घ
ड़ी की थी जिसमें सब का हृदय करुणा से भर जाती है।
छोटी बेटी नव्या देखते ही देखते अपने पिता से कहती है, बाबा आपसे एक सवाल पूछूं? पिता ने कहा - हाँ लाडो पूछो।
नव्या ने कहा- बाबा क्यों होती है बेटियों की विदाई?
क्यों बेटियां ही होती है पराई? बाबा ने बड़ी नम्रता से नव्या को समझाया अरे लाडो कौन कहता है कि बेटियाँ होती है पराई। बेटियाँ तो दिल का टुकड़ा होती है टुकड़ा। बेटियाँ वह होती है जो दोनों कुलों का मान बढ़ाती है। दो घरों को जोड़कर अपना बनाती है। प्यारी सी जान मुस्काई फिर कहती है बाबा मैं आपके दिल का टुकड़ा हूँ और यह कहते हुए नव्या घर के अंदर खेलने चली जाती है।