Renu Gupta

Inspirational

3.0  

Renu Gupta

Inspirational

नई बयार

नई बयार

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नेहल और नक्षत्र की सप्तपदी देर रात संपन्न हुई। नेहल की विदाई की रस्म चल रही थी। नई दुल्हन अपने सगे संबंधियो के गले लग पिता का आंगन तज, श्वसुर कुल के चौबारे की नई माटी से जुड़ने जा रही थी। विदाई की घड़ी में सभी की आंखें नम हो आई। पंडितजी ने घोषणा की, "चिरंजीव नक्षत्र के साथ सात फेरों के बाद सौभाग्यवती नेहल अब उस के घर की कुललक्ष्मी है। सुख दुख आंधी तूफान हर हाल में अब वह चिरंजीव नक्षत्र का परछाई की तरह साथ निभाएगी। आज से मन, वचन, कर्म से वह नक्षत्र की अर्द्धांगनी है। उस का घर ही अब नेहल का घर है। पिता का घर अब नेहल बिटिया के लिये पराया हुआ।"

"पंडितजी, क्षमा चाहता हूं, यहां एक संशोधन अपेक्षित है। नक्षत्र बेटे का घर आज से नेहल बिटिया का हुआ लेकिन आपने जो कहा, पिता की चौखट नेहल बिटिया के लिये आज से पराई हुई, इससे मैं कतई सहमत नहीं। मेरा घर आज भी नेहल के लिये उतना ही अपना है जितना कल था। वह इस घर की बेटी है और सदैव रहेगी। वह जितनी नक्षत्र बेटे के कुल की कुललक्ष्मी है उतनी ही मेरे घर की पुत्री है। जो अधिकार मेरे घर में उसके भाई के हैं, उतने ही अधिकार नेहल के भी हैं, न एक रत्ती कम न एक रत्ती ज्यादा।

पंडितजी, नया जमाना है, अब आप यूं कहिये, नेहल बेटी  पिता एवं श्वसुर कुल, दोनों पक्षों की कुललक्ष्मी है, प्रतिष्ठा है।

"सही है, सही है।" सभी उपस्थित जनों ने एक स्वर से इस कथन के पक्ष में अपनी सहमति जताई। नये वक्त की नई बयार दस्तक दे रही थी।


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