शस्य श्यामला
शस्य श्यामला
अबीर न्यूयॉर्क में अपने होटल के बाहर वहाँ के प्रसिद्ध टाइम्स स्क्वैयर घूमने जाने के लिए किसी कैब की तलाश में खड़ा था, तभी उसे सामने से गुज़रती टैक्सी ड्राइव करते एक सरदार जी दिखे। इस पराई धरती पर उस नितांत अजनबी को देख उसका चेहरा खिल उठा- ‘चलो इतने दिनों बाद कोई तो हमवतन मिला, जिससे वह अपनी भाषा में बातचीत कर पाएगा।’
उसने सरदार जी को रोक कर कहा, “सरदार जी! टाइम्स स्क्वैयर चलना है।”
“अपनी ही गड्डी समझो जी! चलो बैठो आराम से!”
गाड़ी में घुसते ही हवा में तैरती एक सौंधी सी महक उसके नथुनों से टकराई और तभी उसकी नज़रें सामने डैशबोर्ड पर पड़ीं। वह उत्कट उत्सुकता से भर उठा।
वहाँ एक छोटा सा गमला रखा था और उसमें चटक सब्ज़ नन्हे-नन्हे पौधे लहरा रहे थे।
“अरे सरदार जी, ये जंगल में मंगल कैसे कर रखा है आपने? क्या उगा रखा है आपने इस गमले में?”
“किसान का बेटा हूँ जी! यूँ समझो, हरे-भरे खेतों में ही आँखें खोलीं मैंने। आते वक़्त थोड़ी सी अपने देश की मिट्टी किसी तरह छिपा कर ले आया था। उसे ही यहाँ की मिट्टी में मिला कर ये मक्का उगा रखा है जी मैंने। जब भी वतन की याद सताती है, अपनी इस पुरसुकून दुनिया को नज़र भर कर देख लेता हूँ। दिल को बेहद करार मिल जाता है।”
टाइम्स स्क्वैयर आ पहुँचा था। अबीर ने एक बार फिर सरदार जी के उस हरियाले सपने पर निगाह डाली। उसे भी उसमें अपनी शस्य श्यामला भूमि की प्रतिच्छाया दिखी।
उसे देख इस बेगाने मुल्क में न जाने क्यूँ उसका गला भर सा आया।
उसने उस गमले की मिट्टी से तिलक लगाते हुए नम आँखों से सरदारजी से विदा ली।
