खुशियों की चाँदनी
खुशियों की चाँदनी
शहर के एक योग सेंटर में कार्यरत योग इंस्ट्रक्टर कोमल और उसके पति शौर्य आज शनिवार की छुट्टी पर घर ही थे। कि तभी सासु माँ ने कोमल को पुकारा, “कोमल, आज नाश्ते में पालक के पकोड़े बना रही हूं। जरा पालक काट दे बेटा।”
यह सुन कर उसका मुंह बन गया था। “ये माँ जी भी न कितना ही कह लो इनसे, तला भुना ज्यादा ना बनाएँ, लेकिन आए दिन कड़ाही चढ़ा ही लेती हैं। हर पकवान इतना सुस्वादु बनाती हैं और कड़ाही से उतारते उतारते इतनी मनुहार कर उसे और शौर्य को खिलाती हैं कि मना करते नहीं बनता।
कितनी ही बार दबे ढके स्वरों में उसने शौर्य से भी कहा था, “शौर्य, तनिक माँ जी को समझाओ ना, हर समय डीप फ्राइड खाना हैल्थ के लिए बिलकुल ठीक नहीं। हम दोनों तो अभी यंग हैं। लेकिन माँ जी तो सत्तर पार कर चुकी हैं, उनके लिए तो यह जहर है जहर।
लेकिन शौर्य हमेशा उसकी बातें हंसी में उड़ा देते। “अरे तुम बेकार में ही डरती हो, ये मत खाओ, वो मत खाओ, सब बेकार की बातें हैं। अब तो नामचीन डाइटीशियन राजिता दिहाकर का भी कहना है, वह सब कुछ खाओ, जो हमारी नानी दादी बनाती थीं। टेंशन मत लो, माँ को कुछ नहीं होगा”।
कोमल ने आज सुबह ही अपना वजन लिया था। इस महीने फिर से पूरा एक किलो बढ़ गया था। नियमित योग करके भी गलत डाइट की वजह से बढ़ते वेट के कारण वह कुछ कठिन यौगिक मुद्राएँ उस सहजता से अपने स्टूडेंट्स के सामने प्रदर्शित नहीं कर पा रही थी, जितना कि वर्ष भर पहले कर लेती थी। कल ही उसकी सीनियर ने कड़े स्वरों में उसकी क्लास भी ली थी, “मिस कोमल, अब आपकी बौडी में वह लचक और आपके मूवमेंट्स में वह सफाई नहीं रही जो कभी आपकी पहचान हुआ करती थी”।
सो उसका मूड आज थोड़ा आफ़ था आज। और मन का मलाल रूखे स्वरों में बह निकला था, “माँ जी शाम को तो पूड़ियां बनेंगी ही, अभी पोहा ही बना लीजिये"
तभी एकाएक माँ जी अपना सीना हाथों से पकड़ दर्द से दोहरी हो उठी थीं। उसी वक़्त उन्हें अस्पताल ले जाया गया था और उनका ई.सी.जी और कुछ और टेस्ट्स हुए थे। दोपहर तक सभी रिपोर्ट्स आ गई थीं।
उन्हें एंजाइना का दर्द उठा था। उनकी आर्टरीज़ में ब्लौकेड आया था। डाक्टर ने कहा था, दवाईयों और लाइफ स्टाइल में बदलाव से वह ठीक हो जाएंगी। लेकिन उन्हें तली भुनी चीजें एक दम छोड़नी पड़ेंगी।
साँझ गहराने लगी थी। तभी कोमल दो बड़े से पैकेट ले कर घर में घुसी, “माँ जी ये आपके करवाचौथ के गिफ्ट्स। इन दोनों में सारे पकवान जैसे कोफ्ते, कटलेट, समौसे फिंगर चिप्स, ब्रेड पकौड़े सब बहुत कम तेल के बखूबी बन सकते हैं", कह कर कोमल रसोई में घुस गई थी।
साँझ का अंधेरा गहराता जा रहा था। चौथ का चाँद अपने पूरे शबाब पर धवल चाँदनी बिखेर रहा था। सोलह श्रुंगार कर कोमल ने चाँद को अर्घ्य दिया था और माँ जी के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लिया था। और फिर रसोई से सारे पकवान ले आई थी, “माँ जी, ये रहीं पालक की पूड़ियां, बथुए की कचौड़ियां, आलू धनिये की सब्जी, भरवां टिंडे और परवल, चटनी और मेवे की खीर”।
"पूड़ी, कचौड़ी,................पर बेटा डाक्टर ने तो तला भुना बंद कर दिया है मेरा। फिर.................?"
"अरे माँ आपकी वजह से ही तो लाई हूं मैं ये तंदूर और एयर फ्रायर। ये सारी चीजें मैंने बिना तेल के ही तो बनाई हैं। अब जल्दी से चख कर बताइये, कैसी बनी हैं?"
नम आँखों और भर आए गले से माँ जी ने सारे पकवानों की ओर एक नजर डालते हुए कोमल से कहा था, “तू मेरी बहू नहीं री, पिछले जनम की बेटी है, और बड़े लाड़ से उसे हृदय से लगा लिया था।
खुशियों की चाँदनी तले सब के चेहरे खिल उठे थे।