नारी जीवन
नारी जीवन
अब क्या करुं.....
सोचते ही श्यामा के पसीने छूटने लगे।पहिले ही क्या कम मुसीबतें थीं कि एक और गले पड़ गई।
कोई सोलह बरस की थी श्यामा जब उसका बाप उसे जुए के चक्कर में हार गया और रत्न से उसकी शादी करा दी।
बचपन में माँ भगवान को प्यारी हो गई,तब से वह तो संसार में दुख ही उठाती आई।
कभी बापू ने प्यार से बात न की न पढ़ाया ना लिखाया।वो तो विमला चाची ने जाने कैसे लड़ झगड़ कर थोड़ा बहुत पढ़ना सिखा दिया,पर बापू से कहां बर्दाश्त!
उसने वो मुहल्ला ही छोड़ दिया।नई जगह उसे कौन मिले ऐसा जो उसकी बात सुने,फिर बापू ख़ुद तो बिल्डिंग में वाचमैन हो गया और एकाध घरों में उसे बाई का काम दिलवा दिया।अब घरों में झाड़ू कटका करना ,डस्टिंग करना ,बरतन घिसते हुए तो वह भूल ही गई थी कि वह कभी बच्ची भी थी कि कभी यौवन भी आया था।पता भी कैसे चलता, निर्दयी वक्त और जालिम बाप ने इतनी फुरसत ही कब दी इन सबको सोच पाए। फ़िर उस बेरहम से पैसों के बदले ब्याह कर मुक्ति पा ली।
जगह बदला पर किस्मत नहीं।अब तो न दिन चैन न रात। सारे दिन घिसकर पहले घर आती तो कम से कम चैन से सो तो पाती थी,पर अब तो वो भी नहीं।
ये जो था केवल नाम का रत्न; दुनिया भर के अवगुण भरे पड़े थे।दिन भर जुआ - गांजा और रात में बेजान चीज की तरह इसे नोचना खसोटना बस, इतने से ही मतलब!श्यामा ने सुख देखा ही कब ! तो इसे ही जिंदगी समझ ढोती जा रही थी।अचानक उसे लगा कि कुछ तो बदल गया है उसके भीतर !पर उसे क्या पता !वो तो एक दिन मैडम के घर ही उसे उबकाई आने लगी,तो वही उसे स्वास्थ्य केन्द्र ले गई।फ़िर उसे बताया कि अब एक नन्ही सी जान पल रही उसके अंदर!समझ नहीं आया उसे कि क्या करे,इस बात से खुश हो जाए कि अपने जैसी हालात में एक और जान को दुनिया में लाए।पर कुछ भी करके उसे यह बेहद अपना लगा।उसने इसे दुनिया में लाने का और एक अच्छा भविष्य देने का संकल्प ले लिया।
उसे अब अपनी नहीं बच्चे के लिए जिंदगी जीनी थी।रात में जब रत्न ने उससे ज़बरदस्ती करने की कोशिश की तो पहली बार वह शेरनी की तरह दहाड़ कर उसके होश ठिकाने लगा दिए और सुधर जाने को कहा।पहले तो रत्न की समझ में ही कुछ नहीं आया, पर श्यामा का कड़ा रुख देखकर मानना ही पड़ा।
फ़िर बच्चे का मुंह देखकर तो एकदम से पिघल गया।बड़ी मशक्कत से श्यामा की जिंदगी में बहार आई।उसे भी पता चला कि खुशियों का रंग कैसा होता है, जीवन में वसंत का आना ,फूलों का खिलना क्या होता है!
पर हाय,ये सब तो जैसे सपना ठहरा,आंख खुलते ही टूट गया।कल जब टैक्सी पार्क कर रत्न लौटा तो सर्दी खांसी ,बदन दर्द से हालत खराब थी।वह एयरपोर्ट से सवारी लाता था।कई दिनों से दुनिया में कुछ वायरस की चर्चा चल रही थी,भारत मे भी उसके आने की खबर थी।
इसलिए उसे डाक्टर से दिखाया तो पाजीटिव पाकर अब क्या जाने क्या है,"कोरोन्टिन सेंटर" वहां पकड़ कर डाल दिया और अब उसे और उसके बच्चे को भी घर में ही रहना था पंदरह दिन।
रत्न, बहुत रो रहा था बेचारा और अपनी गलतियों के लिए माफी भी मांग रहा था।पहली बार श्यामा के भी आंसू निकल आए,उसका दिल भी पसीज गया।वर्ना तो अब तक जैसे तैसे धर्म निबाह रही थी । अब पंद्रह दिन भगवान निकाल दे किसी तरह,वर्ना तो जिंदगी दुख की सहेली ही ठहरी- बेचारी सोचती और रोती जा रही थी।