नारी - एक फुलवारी
नारी - एक फुलवारी


नारी एक फुलवारी की तरह होती है । जिस तरह एक बगिया में भांति-भांति के फूल होते है उसी तरह नारी में भी कई रूप समाये है ।फूलो को अलग- अलग मौसम में कैसे रहना है सिखाया नहीं जाता बस उसी प्रकार एक नारी को हर स्तिथि को स्वीकार करना आता है ।उसके अंदर खुद इतनी क्षमता होती है कि वो हर परिस्तिथि में ढलना जानती है ।
एक बेटी से लेकर बहु और फिर माँ तक का सफर वो चुटकियो में तय कर लेती है ।भगवान ने भी नारी की आकृति को उस सांचे से ढाला था की वो हर माहौल में ढल सके ।पहला आशीर्वाद तो उसे भगवान से ही मिल गया है जिसपर खुद ईश्वर का हाथ हो तो फिर वो भला किसी चुनौतियों से क्या डरे ।हर नारी की सौन्दर्यता कुछ कहती है बस उसे परखने की नज़र आपके अंदर होनी चाहिए ।उसके लिए उसके रिश्ते बहुत अनमोल होते है उसे सहेजकर रखने के लिए वो अपने हर दर्द छुपा लेती है ।ममता की परिभाषा ही नारी है उसके वयक्तित्व का वर्णन करना सहज नहीं ।मै सिर्फ कोशिश कर रही हूँ क्युकि चन्द लाईनो मे क्या अभिवयक्त करू पूरी ज़िन्दगी कम पड जाएगी उसका परिचय देने में ।हर वक़्त चेहरे पर हँसी बिखरी होती है मानो की सारी दुनिया की खुशियाँ उसकी झोली में है । आप कभी समझ ही नहीं पाओगे उसके मन मष्तिस्क में क्या चल रहा है ।बहुत सौम्य होती है नारी, लेकिन जब ठान लेती है तो हर एक पर होती है भारी।