मूलपूंजी - भाग एक
मूलपूंजी - भाग एक
दोपहर के दो बजे। तेज धूप और उमस भरी गर्मी। आग की भांति तपता दिल्ली रेलवे स्टेशन का वह प्लेटफॉर्म, जहाँ मुसाफिरों की निगाहें ट्रेन के इंतज़ार में सूने पड़े ट्रैक पर टिकी थी। तभी पटरियों पर कम्पन के साथ हावड़ा जाने वाली ट्रेन प्लेटफॉर्म पर आकर खड़ी हुई और यात्री अपने-अपने डिब्बे की तरफ बढ़ने लगे। काफी देर से ट्रेन की बाट जोह रहा सत्तर साल का एक वृद्ध हाथ में संदूक लिए ट्रेन की तरफ बढ़ता दिखा। अपने दूसरे हाथ से उसने बारह साल के एक बच्चे की उंगली थाम रखी थी और दोनों ट्रेन की तरफ बढ़ने लगे। हर तरफ यात्रियों का कोलाहल और गर्मी की भारी तपिश के बावजूद भी उन दोनों के चेहरे शांत और निश्चल मालूम पड़ रहे थे।
एक शयन यान डिब्बे में प्रवेश कर दोनों अपने सीट पर आ गये। खिड़की के बाजू में बैठ बच्चे की आंखें दूर किसी शून्य को निहारने लगी थी। वृद्ध ने हाथों में लिए संदूक को बड़ा सम्भालकर सीट के नीचे खिसकाया और उसके आगे अपने दोनों पैर टिकाकर ऐसे बैठ गया मानो संदूक के प्रहरी उसकी रखवाली में डटे खड़े हों। ट्रेन में सफर करने वाले मुसाफिरों का आना-जाना लगा हुआ था और एक-एक करके वे अपनी सीट पकड़ने लगे थे। समय होते ही कानफोडू हॉर्न के साथ ट्रेन गतिमान हुई और स्टेशन को अलविदा कर अपने गंतव्य की तरफ बढ़ने लगी।
कुछ ही मिनटों बाद हाथों में रिजर्वेशन लिस्ट लिए एक टीटीई ट्रेन के उस डिब्बे में दाखिल हुआ। उसके कोट की जेब पर लगे नामपट्टी से उसका नाम लक्ष्मण राजावत साफ झलक रहा था। डिब्बे में प्रवेश कर वह सीधे लोअर सीट पर बैठे उस बुजुर्ग और बच्चे के पास पहुंचा।
“अपना टिकट दिखाएं?” – हाथ आगे बढ़ाकर टीटीई ने कहा। सीट पर मौजूद वृद्ध और बच्चे पर एक नज़र फिरा उसकी आंखें फिर अपने लिस्ट में व्यस्त हो गई।
वर्णहीन चेहरे से वृद्ध ने अपने कमीज की जेब में हाथ डाली और टिकट निकालकर टीटीई की तरफ बढ़ा दिया।
टिकट पर दो नाम अंकित थे- प्रकाश लाल, उम्र सत्तर साल और दूसरा रौशन कुमार, उम्र बारह वर्ष। टिकट की जांच कर और उसपर कलम से निशान लगा टीटीई ने उसे वापस कर दिया। फिर आसपास पड़े खाली बर्थ पर नज़र फिरा वृद्ध प्रकाश लाल से बोला- “इन सीटों की सवारी अगली स्टेशन पर चढ़ेंगे।” शांतचित्त प्रकाश लाल टीटीई की तरफ शून्य भाव से देखता रहा। उसके पास बैठे बच्चे की निगाहें खिड़की के बाहर उल्टी दिशा में भागती खेत-खलिहानों पर टिकी थी।
हाथों में लिस्ट थामे टीटीई आगे की सीटों की तरफ निकल गया। इस पूरे अंतराल में वृद्ध प्रकाश लाल ने सीट के नीचे रखे संदूक की कई बार जांच की मानो उसमें कोई बहुत कीमती सामान बंद पड़ा हो। टीटीई लक्ष्मण ने भी इस बात को गौर किया।
तकरीबन घंटे भर बाद ट्रेन अगली स्टेशन पर आकर रुकी। कुछ यात्री डिब्बे में चढे और प्रकाश लाल के पास वाली खाली सीटों पर आकर बैठ गये। मालूम पड़ रहा था वे सभी एक ही परिवार से हैं जिनमें वृद्ध दंपति, उनका बेटा-बहू और दो नन्हे बच्चे शामिल थे। बच्चों की चहक ने वहाँ के सूने माहौल में जैसे रंग भर दिया था।
पहले से मौजूद प्रकाश लाल और उसके साथ बैठे बच्चे रौशन ने एक निगाह उनपर डाली फिर अपनी सूनी दुनिया में लौट गये। सामने की सीटों पर अभी-अभी पहुंचे बच्चों ने मुस्कुराकर रौशन की तरफ देखा जैसे अपनी टोली में शामिल करने के लिए उसे आमंत्रित कर रहे हों। पर अपनी आँखें मूँद रौशन ने प्रकाश लाल के कांधे पर सिर टिका दिया।
ट्रेन पूरी रफ्तार से आगे बढ़ी जा रही थी। रह-रहकर चिप्स, टॉफियां, समोसे, खिलौने और भी न जाने क्या-क्या बेचने वाला डिब्बे में एक तरफ से दूसरी तरफ आवाज लगाता हुआ फिरता और ललचाई निगाहों से उसकी तरफ देख वे दो नन्हें-मुन्हे बच्चे उधम मचाने लगते। वहीं खिड़की के पास बैठा बारह साल का रौशन इन सबसे एकदम अछूता था। जान पड़ता था जैसे उसके बचपन ने पास बैठे वयोवृद्ध प्रकाश लाल की उम्र वाली गंभीरता हासिल कर ली हो।
उन दोनों के चेहरे पर फैले इस वीरान शांति के चक्रव्यूह को पास की सीटों पर बैठे परिवार के सदस्यों ने अपनी मुस्कुराहट से भेदना चाहा। पर वे इसमें असफल ही रहे। हालांकि इस बीच उन सबने गौर किया कि प्रकाश लाल थोड़ी-थोड़ी देर पर अपनी सीट के नीचे रखे सन्दूक की जांच करता और उन सबकी कौतुक निगाहें उस बंद सन्दूक के भीतर का एक्स-रे उतारने की कोशिश करने लगती।
ड्युटी पर मौजूद टीटीई लक्ष्मण जो बीच-बीच में उनकी सीटों से होकर गुजरता तो शांतचित्त प्रकाश लाल को अपनी संदूक की रखवाली करता पाता। होता है कभी-कभी, अपने सामान को लेकर कुछ यात्री ज्यादा ही संज़िदा और सचेत रहते हैं। उसे देखकर लक्ष्मण के मन में यही बातें उमड़ती फिर वो यात्रियों के टिकट की जांच और उनके सीट की मिलान करने में व्यस्त हो जाता।
टिकट की जांच करता हुआ टीटीई लक्ष्मण कम्पार्ट्मेंट के दूसरे छोर पर सफर कर रहे एक ग्रामीण दम्पति के पास पहुंचा। टिकट की मांग करने पर पति-पत्नी ने एक-दूसरे की तरफ देखा और फफक पड़ें।
क्रमशः....
