मुखौटों की दुनिया
मुखौटों की दुनिया
बात मेरी बाल्यावस्था से आरंभ होती है, जब मैं अपनी बाल्यावस्था का भरपुर आनंद ले रहा था। अपने परिवार का शरारतों से परिपूर्ण अवतार था मैं। चूंकि परम पिता परमेश्वर का मुझ पर कुछ ज्यादा ही उपकार था, इसलिए मैं पृथ्वीलोक पर अपने परिवार में तीन भाईयों में दुसरे नंबर पर अवतरित हुआ। शरारतें मैं किया करता और इल्जामात अपने अग्रज या अनुज की अनुपस्थिति में उनपर डाल देता। पिताजी का मुझपर जरुरत से ज्यादा प्यार, मां को मुझ पर कार्यवाही करने से रोक देता, पर उनकी अनुपस्थति में मां के अस्त्रों और शस्त्रों के अनेकों प्रहार मुझ पर हो जाया करते, जिन्हे मैं बड़े ही धैर्यता और खामोशियों के साथ ग्रहण कर लिया करता।
उन दिनों मुखौटों का चलन कुछ ज्यादा हो चला था। राह चलते, हर बच्चा अलग अलग आक्रतियों वाले मुखौटों के साथ देखने को मिल जाया करता। तो हम सब ने पिताजी के समक्ष मुखौटों के प्रति अपनी रुचि जाहिर कर दी। जिसकी प्राप्ति हमें मां से स्वीकृति मिलने के पश्चात हुई। अब जब भी मुझे मातृ प्रसाद की प्राप्ति होती, मैं अपनी अश्रुधारा को छिपाने के लिये मुखौटे को अपने चेहरे से लगा लिया करता। रात के अंधकार में जब मैं सहम जाता तो खुद को मुखोटे के पीछे छिपा लिया करता। अब मेरा मुखौटा मेरे जीवन का अभिन्न अंग बन चुका था। मुखौटे की दुनिया को मैं अपनी प्यारी सी दुनिया बना बैठा था।
समय धीरे-धीरे अपने गति से चलता रहा और अब मैं बाल्यावस्था से निकल कर युवावस्था मे अपने कदमों को रख चुका था। उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए मुझे अपने शहर और अपने परिवार को छोड़ कर एक अजनबी शहर में अजनबी लोगो के बीच जाना पड़ा। जहां हर एक शक्श केवल अपनी सोच के बंधन में जकड़ा पड़ा था। किसी को किसी दूसरे के सुख और दुःख से कोई मतलब न था। कोई अपने ग़मों को छिपाने में लगा था, कोई अपनी धूर्तता को, कोई लालच को। आप यूं भी कह सकते हैं कि हर एक शक्श अपने असली चेहरे को किसी न किसी मुखौटे के पीछे छिपा रखा था। यहां मुखौटों की दुनिया में खुद को अकेला महसूस करने लगा था मैं और वहां मेरे पिताजी का हृदयाघात होने से निर्धन हो गया। मेरे परिवार पर मानो दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा। अब जिम्मेदारियों के बोझों ने समय से पहले काफ़ी बड़ा बना दिया था मुझे।
दिल का दर्द और आंखों की नमी को छिपाने के लिए अब मुझे अपने बचपन के मुखौटे की जरूरत नहीं थी। आज लोगों के असली चेहरे एक खालनुमा मुखौटों मैं छिप से गए हैं कहीं। बस देखते देखते वही एक मुखौटा मैंने भी लगा लिया और हंसते हंसते इस "मुखौटों की दुनिया" को अपनी दुनिया बना लिया....
