Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Meenakshi Bhardwaj

Inspirational Others

3.0  

Meenakshi Bhardwaj

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मोह बेटे का

मोह बेटे का

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हमारा समाज पुरुष प्रधान है पर सही में पुरुष प्रधान बनाने में अस्सी प्रतिशत हाथ हम महिलाओं का ही है, ये इसलिये है कि शुरू से ही हमने हमारी बेटीयों को बेटों से कम आका है। बेटीयों को बचपन से ही ये बताया जाता रहा है कि तुम्हें ये नहीं करना चाहिए तुम्हें वो नहीं करना चाहिए आदि,आदि। उसके पंख तो है पर उड़ान भरने पर पाबंदी लगाई जाती है। उनको भी उतना ही अधिकार है उड़ने का जितना की बेटों को। ऐसी ही एक कहानी में आपको बताने जा रही हूँ जो की वस्तविक है। मनीषा की शादी एक सम्पन्न घराने में हुई थी, वो अपने पति नवीन के साथ खुश थी। शादी के कुछ दिनों बाद ही मनीषा के घर पर एक बेटी ने जन्म लिया। घर में सब खुश थे काफी समय बाद घर में बच्चे की किलकारियाँ गुंजी थी। नवीन और मनीषा ने बहुत अच्छी तरह से बेटी की परवरिश की। दो साल बाद उन्होंने फिर से बेटे की चाह में बच्चा करने का निर्णय लिया। दोनो खुश थे की बेटा होगा किन्तु घर में फिर से लक्ष्मी ने जन्म लिया।अब दोनों पहले जैसे खुश नहीं थे उनको तो सिर्फ बेटे की चाह थी। उन्होंने अपने बेटीयों की परवरिश तो की पर सिर्फ अपनी जिम्मेदारी समझ कर।बेटे की चाह ने उनको ये नहीं देखने दिया कि बेटी भी बेटे से किसी भी स्तर में कम नहीं है। कुछ सालों मे उनका इन्त्तजार ख़त्म हुआ और उनके यहाँ बेटे ने जन्म लिया। अब तो मनीषा और नवीन की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा उनको जिस की चाह थी वो उन्हें मिल गयी थी। उन्होंने थोड़े दिनों बाद घर में पूजा करवाई और ब्राह्ममणो को भोजन और दक्षिणा दी। थोड़े दिनों में तीनों बच्चों का स्कूल में दाखिला करवाया गया। मगर यहाँ पर भी भेदभाव, बेटे को शहर के सबसे बड़े स्कूल में और बेटीयों को सामान्य स्कूल में दाखिला करवाया। समय बढ़ता गया बेटियां अव्वल आ रही थी और बेटा सामान्य विद्यार्थी था। खाने, कपड़े, घूमना हर चीज में बेटे की पसंद -नापसंद पूछा जाता था।ये सब के बीच दोनो बेटीयों ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली और बेटे की भी ग्रेजुएशन पूरी हो गयी। आगे की पढ़ाई के लिए उसको अमेरिका भेजने की तैयारी की गयी। इधर दोनों बेटीयाँ पढ़ने में अव्वल थी जिस कारण उन्हें स्कूल से स्कोलरशिप मिल गयी। एक बेटी तो डॉक्टर बन चुकी थी और दूसरी वाली फैशन डीजाइनर । उधर बेटे ने पढ़ाई पूरी करते ही वही पर नौकरी ढूंढ ली और अपनी पसंद की लड़की से शादी भी। घर वालो को बताना भी जरुरी नहीं समझा। विदेश की हवा जो लग चुकी थी। मनीषा और नवीन को बस इन्त्तजार था बेटे की एक झलक देखने का, आना तो दूर फ़ोन पर बात करना भी जरुरी नहीं समझा बेटे ने,अब इस समय जो खालीपन था वो बेटीयों ने भरा । दोनों बेटीयों ने अपने मुकाम पर जो हासिल किया था वो हर माता पिता के लिए गर्व की बात है। मनीषा और नवीन जहाँ भी जाते सब उनकी बेटीयों से उनको सम्बोधित करते थे की ये डॉक्टर शिल्पा के माता पिता है, ये फैशन डीजाइनर नीलम के माता पिता है, ये सुनकर दोनों को बहुत गर्व महसूस होता था और साथ ही मन में एक कसक भी थी कि बेटे की चाह में बेटीयों के साथ कहीं न कहीं अन्याय भी किया। जो हक़ उनको बराबर का मिलना था वो भी बेटे को ही दिया।जिस बेटे को इतना नाज से पाला वो आज सारी जिम्मेदारियों से विमुख हो रहा था और बेटीयों ने अपने बूढ़े हो चुके माँ बाप की जिम्मेदारियां ले ली थी।। आज मनीषा और नवीन दोनों अपनी बेटीयों के साथ खुश है ,दोनों बेटीयों की शादी भी हो गयी। और मनीषा और नवीन नाना -नानी भी बन गए।बेटे के मोह मे जो खुशीयाँ वो अपनी बेटियों को नही दे पाये थे वो अब अपनी नातियों को देने मे कोई कसर नहीं रखना चाहते थे। सारी खुशीयाँ है पर उसके साथ साथ एक आस भी की हमारा बेटा हमारे पास कभी तो आएगा।।


👉ये कहानी मात्र नहीं है ये हमारे समाज का सच है, भारत में सिर्फ २०%परिवार ही है जहाँ पर बेटीयों को पूरी तरह से स्वतंत्रता है।बेटे और बेटी में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। बेटा हो या बेटी सबकी अपनी स्वतंत्रता है।दोनों का अपनी जगह महत्व है। पर बेटा हो या बेटी दोनों को सामान अधिकार मिलना चाहिए।जहाँ बेटे को कुलदीपक कहा जाता है वही बेटीया भी तो कुल को आगे बढ़ाती है।इसलिए सभी से ये गुजारिश है कि बेटों और बेटीयों में कोई भेदभाव न करे और अपनी बेटीयों को खुल कर उड़ान भरने दे।



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