मंज़िल
मंज़िल
अपनी औकात में रहना सीख जाओ...
क्योंकि मौत ने कभी बादशाहो को भी मुड़ के नही देखा...हमे क्या देखेंगी?
पलट के देखो उन बादशाहो को...
जो सुपूर्द ए खाक हो गए...
निगाहें झुकी रही और हुई बादशाहत खत्म...
और वो भी ज़न्नत नशीन हो गए...
गुरूर हो अपनी होशियारी पर...
तोह मुड़ के देख उन रास्तो को...
जहां से तू गुज़रा था वो आज भी शरीक है वहीं...
बदली है यह दुनिया पर तेरी मंज़िल वहीँ है...