मन का लगाव।
मन का लगाव।
एक संपन्न परिवार था। उसमें दो भाई थे, एक का नाम व्रत था और दूसरे का नाम सुब्रत। घर में कथा वार्ता होती रहती थी, धर्म का वातावरण था ।दोनों भाइयों के धर्म के संस्कार भी थे। एक दिन वह किसी बड़े शहर में गए। दोनों भाइयों ने जो अपना काम था वह पूरा किया। रात्रि होने वाली थी तो एक भाई जो व्रत था वह बोला कि आज मेरा मन तो यह कर रहा है कि कहीं जाकर नाच गाना देखूँ। दूसरा भाई बोला कि मैं तो आज मंदिर जाना चाहता हूं वहां शयन की आरती तक रात को 12:00 बजे तक रहूँगा। दोनों ने यह तय किया कि अपने-अपने कार्यों के बाद 12:00 बजे बाद एक स्थान पर मिल जाएंगे।
जितनी देर बड़ा भाई नाच देखता रहा, गाना सुनता रहा उसके मन में प्रायश्चित होता रहा कि देखो मैं कितना बुरा हूं कि मंदिर छोड़कर वैश्या के यहां बैठा हूं। बैठा तो वह शरीर से वहीं था परंतु उसका मन हर समय मंदिर में लगा हुआ था। वह सोचता था कि छोटा भाई मंदिर में भगवान के दर्शन कर रहा होगा, आरती देख रहा होगा। इसके विपरीत छोटा भाई मंदिर में खड़ा तो था परंतु उसका मन यह कह रहा था कि अरे तू बड़ा मूर्ख है देख बड़ा भाई तो नाच देख रहा होगा, गाना सुन रहा होगा तुझे भी वही जाना चाहिए था। इस तरह से दोनों ने अपना समय पूरा किया और मध्यरात्रि के बाद एक जगह मिल गए।
देव योग से दोनों को उसी समय मृत्यु प्राप्त हो गई। दोनों ने देखा कि देवदूत और यमदूत दोनों आए हुए हैं। देवदूत ने तो बड़े भाई की आत्मा को पकड़ा ,यमदूत ने छोटे भाई की आत्मा को पकड़ा। तो बढ़ा भाई बोला कि आप लोगों से कुछ ग़लती हो गई लगती है, क्योंकि छोटा भाई तो अभी मंदिर से आ रहा है वह बड़ा धर्म का कार्य करता है उसको तो स्वर्ग ले जाना चाहिए और मैं अभी वैश्या के यहां से आ रहा हूं मुझे यमदूतों को ले जाना चाहिए। देवदूत बोले कि देखो हमसे कोई ग़लती नहीं हुई है। मन से जो जैसा कार्य करता है वही उसको फल देता है। तुम थे तो नाच घर में परंतु तुम्हारा मन भगवान के चरणों में लगा हुआ था, मंदिर की आरती में था जहां मन होता है वही तन गिना जाता है इसलिए तुम को स्वर्ग की प्राप्ति हुई है। तुम्हारा भाई था तो मंदिर में परंतु उसका मन नाच घर में था इसलिए उसको नर्क में जाना पड़ा।