ममता...
ममता...
अस्पताल के जनरल वार्ड के बेड पर पड़ी हुई ममता अपनी जिंदगी की आखिरी सांसें गिन रही थी। ममता को आज अपना बीता हुआ समय याद आ रहा था। जब 11 साल की उम्र में उसके माता पिता एक छोटी बहन और छोटे भाई की जिम्मेदारी उस पर छोड़कर इस दुनिया से चले गए। अभी बच्ची ही तो थी ममता खेलने और पढ़ने की उम्र में जहां उसे अपने भाई बहन की जिम्मेदारी उठानी पड़ रही थी। भाई-बहन के पालन पोषण के लिए लोगों के यहां उसे झाड़ू बर्तन करना पड़ रहा था। भाई अभी महज 2 साल का था और छोटी बहन 5 साल की। पड़ोस में रहने वाली कमला काकी भली औरत थी। मजदूरों की बस्ती में रहने वाली ममता के लिए तो उस संकट की घड़ी में जैसे भगवान बन कर आई थी कमला काकी।
ममता के माता-पिता गांव से अपना परिवार छोड़कर शहर में रोजगार की तलाश में आए थे और यही बस्ती में एक छोटी सी झोपड़ी बनाकर रहा करते थे एक कमरे की झोपड़ी उनके लिए किसी से कम नहीं थी हम तो गांव में ही हुआ था और उसके भाई-बहन का जन्म हुआ गांव के रिश्तेदारों में मुंह फेर लिया था तो अब उनके रहने के बाद उनके बच्चों की क्या खबर लेते। एक दिन ऐसे ही किसी इमारत में काम चल रहा था और अचानक से उस इमारत का एक हिस्सा गिर गया जिसमें ममता के माता-पिता चल बसे।
कमला काकी खुद भी लोगों के यहां झाड़ू कटका करने का काम करती थी। कुछ दिनों तक उन्होंने ही ममता की मदद की पर वह कहते हैं ना गरीब का बच्चा तो बचपन में ही बड़ा हो जाता है ममता ने 1 दिन कमला काकी से कहा
"ममता काकी आप मुझे भी अपने साथ लेकर चलिए ना मैं भी आपके साथ काम करवाऊंगी। "
कमला काकी--" अच्छा बड़ी समझदार हो गई है रे तू। नहीं बेटा अभी तो बहुत छोटी है और इतने छोटे बच्चों को कोई काम पर नहीं रखता पता है न। सरकार के नियम होते हैं "
ममता--" पर काकी आप कब तक ऐसे हमें खिलाओगे। फिर मुझे अपने भाई बहनों को पढ़ाना लिखाना भी तो है?? तब तो पैसों की जरूरत पड़ेगी। आप मुझे भी अपने साथ लेकर चलिए ना !!मैं भी आपके साथ काम करवाऊंगी।"
कमला काकी ने उसे बहुत समझाया पर ममता नहीं मानी तो कमला ने उसे दूसरे दिन से अपने साथ काम पर ले जाना शुरू कर दिया। कमला जितने भी घर जाती थी वहां लोगों से प्रार्थना करती थी कि वह ममता को कोई छोटा मोटा काम दे दे ताकि उसकी मदद हो जाए। कुछ लोगों ने तो साफ मना कर दिया। लेकिन कुछ परिवारों में जिनके यहां छोटे बच्चे थे उनके साथ खेलने और उनकी छोटी-मोटी जरूरतों को देखने का काम ममता को मिल गया। ममता बहुत ही समझदार लड़की थी उन लोगों के बतायी हुई बातों और निर्देशों को सुनती और वैसा ही करती थी। जिसके कारण वह जहां भी काम करती सब उसको और उसके काम को पसंद करने लगते। उन घरों के बच्चों के जो पुराने कपड़े और बाकी सामान मिलता उससे वह अपने भाई बहन की जरूरतों को पूरा करती थी। ममता के जब माता-पिता जीवित थे तब तक वह स्कूल जाया करती थी। उसे पढ़ना बहुत पसंद था लेकिन अब उसकी पढ़ाई छूट गई थी जिसके चलते वह अपना सपना अपने भाई बहनों में पूरा करना चाहती थी।
वक्त गुजरता गया और ममता के भाई बहन स्कूल जाने लगे। बहन सपना और भाई राजू दोनों ही पढ़ाई में बहुत होशियार थे खास करके भाई राजू सभी टीचर्स उसकी बहुत तारीफ किया करते थे उसने हमेशा से ममता को ही अपनी मां के रूप में देखा था ममता भी अपने भाई बहन पर अपनी जान छिड़कती थी।
ममता की पहचान की एक समाज सेविका दीदी थी। जो एक एन जी ओ चलाती थी जिनका नाम निधि गुप्ता था वह अक्सर ममता को बिठाकर पढ़ाया करती थी और ममता भी जब उनके यहां काम करने जाती तो कुछ देर वही बैठकर अपने पढ़ाई के अरमान पूरे कर लिया करो करती थी। निधी दीदी एक दिन ममता से बोली
निधि--" ममता तुम सिलाई का काम क्यों नहीं सीख लेती ???देखो अभी के समय में सिलाई कितनी ज्यादा महंगी हो गई है और फिर तुम्हें घर घर जाकर काम करने की जरूरत नहीं पड़ेगी अगर तुम्हारी इच्छा हो तो हमारे एन जी ओ में बहुत सी महिलाएं हैं जो यह काम सीख रही हैं। तुम भी उनके साथ सिलाई का" काम सीख सकती हो।
ममता कुछ सोचती रही फिर उसने कहा
ममता--" पर दीदी जब तक मैं काम सीखूंगी तब तक तो यही सब करना होगा ना ??क्योंकि राजू और सपना की पढ़ाई के लिए पैसों की जरूरत होती है और मेरा परिवार तो इसी काम से चलता है दीदी। "
निधि--" उसकी चिंता तुम मत करो। तुम ऐसा करना जब तुम्हारा सारा काम पूरा हो जाए तब तुम नाइट शिफ्ट में आकर काम सीख सकती हो। बस एक घंटा तो निकालना है तुम्हें। "
ममता (खुश होकर) जी दीदी !!! मैं कल से ही आ जाऊंगी।"
दूसरे दिन से ही ममता रोज अपने काम पूरे करके सिलाई का काम सीखने सिलाई सेंटर जाने लगी और बहुत कम समय में ही वह सिलाई का काम सीख गई अपनी तनख्वाह में थोड़े थोड़े पैसे बचा कर उसने अपने लिए सिलाई मशीन खरीदी और सिलाई का काम शुरू कर दिया। ममता के अच्छे स्वभाव और व्यवहार की वजह से उसे काफी काम मिल जाता था। धीरे-धीरे उसका काम बढ़ने लगा और उसने अपने पड़ोस की दो लड़कियों को अपने साथ काम पर लगा लिया। अब ममता की झोपड़ी का एक कमरा एक अच्छे खासे पक्के मकान के रूप में बदल चुका था। धीरे-धीरे करके ममता ने अपना घर बनाया साथ ही साथ सपना और राजू के पढ़ाई का खर्च भी उठाती थी।
समय अपनी गति से चल रहा था सपना अब विवाह के योग्य होने लगी थी। ऐसा नहीं था कि ममता के लिए रिश्ते नहीं आए लेकिन उसने अपनी जिम्मेदारियों के चलते शादी के लिए मना कर दिया कमला काकी उसे बहुत समझाती पर वह उनकी बात हंसी में टाल देती कभी-कभी तो कमला काकी उससे कहती
कमला--" ममता तू मेरी बहू बन जा फिर तुझे कोई परेशानी भी नहीं होगी और तू अपनी जिम्मेदारियां भी पूरी कर लेगी। "
ममता (हंसकर)--" अच्छा काकी फिर मुझ पर नई जिम्मेदारी आ जाएंगी फिर मैं अगर किसी एक को भी पूरा नहीं कर पाई तो खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी। तो शादी तो नहीं करूंगी। "
कमला काकी कुछ नहीं कह पाती कमला काकी का बेटा बहुत ही समझदार लड़का था फैक्ट्री में ममता को बहुत पसंद करता था जानती थी पर वह कुछ कह नहीं सकती थी।
सपना कॉलेज पूरा हो चुका था 1 दिन बहुत अच्छे परिवार से उसके लिए रिश्ता आया। ऊंचे घर के लोग हैसियत में ममता से काफी आगे पर सिर्फ लड़के की पसंद की खातिर वे लोग छोटी सी बस्ती की लड़की से अपने बेटे की शादी करने राजी हुए थे। ममता पहले तो थोड़ी घबरा गई कि सब कैसे होगा कहीं यह लोग सपना को यह ताना ना सुनाएं छोटी बस्ती में रहकर पली बढ़ी है वो हमारे तौर तरीके कैसे सीख पाएगी और भी ना जाने क्या-क्या ख्याल उसके मन में आ रहे थे। इसलिए उसने कोई जवाब नहीं दिया वे लोग आकर चले गए लेकिन ममता की चिंता बढ़ती जा रही थी 1 दिन सपना उसी लड़के से फोन पर बात कर रही थी और ममता ने उसकी बात सुन ली
सपना--" हैलो !!!राज मैं क्या करूं??? दीदी तो कुछ कर ही नहीं रही है कोई जवाब नहीं दे रही है। "
राज--" देखो सपना!! तुम्हारी खातिर मैंने ना जाने कितने रिश्ते ठुकरा दिया। बड़ी मुश्किल से मम्मी पापा को तैयार करवाकर वहां लाया था। वह तो बिल्कुल भी तैयार नहीं थे उस बस्ती में जाने के लिए लेकिन मेरी खातिर वो तुम्हारे घर तक आए और तुम्हारी दीदी कोई जवाब नहीं दे रही है। आखिर वो तुम्हारी शादी क्यों नहीं करवाना चाहती?? क्या कमी है मुझमें ??? सब कुछ तो है मेरे पास "
सपना( गुस्से में)--" हम्म्!!! पता है मुझे क्यों नहीं करवाना चाहती?? जो उन्होंने बचपन से देखा है वह हमें भी दिखाना चाहती हैं। वह नहीं चाहती कि मेरी शादी किसी अमीर परिवार में हो। खुद ने तो शादी की नहीं बड़ी महान बनी फिरती हैं। सब जानती हूं पर एक बात मैं बता रही हूं तुम्हें राज चाहे या ना चाहे मैं तुमसे ही शादी करूंगी और यह तय है ।"
ममता ने जब यह सब सुना तो जैसे उसके मन पर वज्र गिर गया हो। वो रोना चाहती थी पर रो नहीं पा रही थी। आखिर किसके कांधे पर सर रखकर रोती। उसने दूसरे दिन ही राज के घर फोन किया और रिश्ता पक्का कर दिया और 2 हफ्ते बाद सपना की शादी राज से करवा दी।
ममता वापस अपने काम में व्यस्त रहने लगी इधर राजू अपनी पढ़ाई में व्यस्त था। वह प्रशासनिक सेवा की तैयारियों में लगा हुआ था इसीलिए ममता ने उसे शहर में ही एक कमरा किराए पर लेने कह दिया था। क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि उसकी पढ़ाई में थोड़ी सी भी दिक्कत आए। राजू भी अपने और ममता के सपनों को पूरा करना चाहता था और कड़ी मेहनत कर रहा था। कॉलेज के आखिरी साल में ही उसने कोचिंग ज्वाइन कर ली और प्रथम प्रयास में ही वह परीक्षा में सफल हुआ ममता की खुशी का तो जैसे ठिकाना ही नहीं था। उसने पूरे मोहल्ले में मिठाई बंटवाई थी उस दिन।
राजू ट्रेनिंग के लिए बाहर चला गया अब ममता को उसके बड़े अधिकारी बनकर आने का इंतजार था और वह दिन भी जल्द आ ही गया राजू अपनी सरकारी कार से बस्ती में आया ममता ने पूरे घर को सजाया था उस दिन दुल्हन की तरह। जैसे ही वह पूजा की थाली लेकर दरवाजे पर आई थोड़ी ठिठक गई क्योंकि राजू अकेला नहीं आया था उसके साथ उसकी पत्नी भी आई थी। राजू ने ममता से उसका परिचय करवाया
राजू--" दीदी यह रेखा है!! मेरी पत्नी और आपकी बहू हम दोनों ने ही साथ में पढ़ाई और ट्रेनिंग की है। मैं आपको बताने ही वाला था पर सब इतनी जल्दी में हुआ कि मैं खबर ही नहीं कर पाया।"
ममता की आंखों में आंसू छलक आए अपने आंसुओं को छुपाते हुए वह मुस्कुरा कर बोली
ममता--" अरे!! इसमें क्या है भैया!! यह तो बहुत सुंदर है। रुको एक मिनट मैं अभी आई"
ममता ने एक कलश में चावल और थाली में रोली और पानी घोलकर चौखट पर रखा और बोली
ममता--" रेखा इस कलश को गिरा कर रोली वाले पानी में अपने पांव रखो और गृह प्रवेश करो। "
रेखा ने वैसा ही किया। ऊपर वाले कमरे की साफ-सफाई करवा कर उसे राजू और रेखा के रहने का इंतजाम करके ममता अपने काम में लग गई। भाई की खुशी में अपनी खुशी जानकर वह दूसरे दिन की तैयारियों में जुट गई। दूसरे दिन सारी बस्ती के लोग राजू को बधाई देने पहुंचे। राजू भी सभी से बहुत खुश होकर पर मिल रहा था पर रेखा को थोड़ा अजीब महसूस हो रहा था। दिल्ली जैसे शहर में पली-बढ़ी रेखा जिसके पिता खुद बहुत बड़े पद पर कार्यरत थे वह कैसे वहां रह पाती। कुछ दिनों बाद उसे वहां रहने में परेशानियां होने लगी। हालांकि ममता उसे खुश रखने की है हर मुमकिन कोशिश करती पर रेखा तो जैसे ठान चुकी थी कि वह वहां नहीं रहेगी। अभी मुश्किल से 2 महीने ही गुजरे होंगे किसी बात को लेकर राजू और रेखा में बहस हो गई और रेखा अपना बैग लेकर जाने लगी। जब ममता को पता चला उसने उसे समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी और जैसे ही रेखा ने घर से कदम बाहर निकाले रेखा चक्कर खाकर गिर गई। राजू ने उसे दौड़ पर उठाया और ममता उसके लिए पानी ले आई कुछ देर बाद डॉक्टर ने चेक करने के बाद बताया कि रेखा प्रेग्नेंट है। रेखा को तो जैसे आप बहाना मिल गया था। राजू और ममता बहुत खुश थे। राजू के जाने के बाद जब ममता रेखा के लिए जूस लेकर आई तब रेखा ने कहा
रेखा--" ममता दीदी !! मैं कुछ कहना चाहती हूं आपसे "
ममता--" (मुस्कुराकर) कहो रेखा??"
रेखा--"देखिए दीदी आज तक आपने राजू के लिए जो भी किया वह आपका फर्ज था। कोई भी बड़ा भाई बहन वही करता जो आपने किया। लेकिन अब राजू की भी अपनी जिम्मेदारियां हैं अपना परिवार है। आप समझ रहे हैं ना मैं क्या कहना चाह रही हूं ??"
ममता--" हां रेखा मैं समझ रही हूं।"
रेखा--"मैं नहीं चाहती कि हमारा बच्चा इस बस्ती में जन्म ले और जैसा माहौल उसके पिता ने देखा है वह भी देखें। तो आपसे यही कहना है मुझे की राजू को किसी भी तरह तैयार कीजिए कि वह यहां से जाने तैयार हो जाए। नहीं तो मजबूरी में मुझे अपने बच्चे के साथ अकेले ही रहना पड़ेगा। क्योंकि वह मेरे कहने पर तो नहीं जाएंगे यहां से। "
ममता--" ठीक है रेखा मैं शाम में राजू से बात करती हूं। तुम फिक्र मत करो तुम्हारा बच्चा मां-बाप में से किसी की भी कमी महसूस नहीं करेगा कभी।"
शाम में जब राजू घर आया तो ममता ने उसे अलग जाकर रहने कहा। राजू समझ गया कि रेखा ने ही ममता से ऐसा कहा होगा वह बिल्कुल तैयार नहीं हुआ उसने कहा
राजू--" नहीं दीदी!! आप मेरी मां है!! जन्म देने वाली मां को तो ठीक से जान नहीं पाया। जब से जाना है आपको ही जाना है। ऐसे कैसे अपनी मां को अकेले रहने के लिए छोड़ दूं बताइए?? (राजू रोने लगा)
ममता (आंसू पोंछकर)--"नहीं भैया!! ऐसा नहीं है !!देखो !अब तुम्हारे ऊपर भी जिम्मेदारियां हैं। जो मेरा कर्तव्य था वह मैंने पूरा किया। अब तुम अपना कर्तव्य पूरा करो ताकि कोई मेरी परवरिश को नाम न रखें। कोई यह ना कहे कि देखो कैसी बहन है जिसने अपने स्वार्थ के लिए अपने भाई का घर बर्बाद कर दिया तुम जाओ भैया खुश रहो। और मैं आती रहूंगी ना तुमसे मिलने।"
राजू उस दिन ममता की गोद में सिर रखकर बहुत रोया फिर दूसरे दिन ममता ने रेखा और राजू को विदा कर दिया। उस दिन ममता बिल्कुल अकेली हो उससे कुछ खाया भी नहीं गया। धीरे धीरे सब सामान्य सा होने लगा था लेकिन ममता के लिए तो जैसे अब कुछ बचा ही नहीं था। एक दिन अचानक अस्पताल से ममता को फोन आया और ममता घबराकर अस्पताल पहुंची तो देखा राजू आईसीयू में है और डॉक्टर उसका ट्रीटमेंट कर रहे हैं। ममता ने वही एक कुर्सी पर बैठी रेखा को देखा वह रो रही थी ममता ने जब उससे पूछा तो रेखा ने बताया कि कुछ दिनों से राजू की तबीयत थोड़ी खराब चल रही थी। एक दिन ऑफिस में राजू बेहोश होकर गिर गया और जब चेक करवाया तो पता चला कि राजू की दोनों किडनी खराब हो चुकी है। अगर जल्द से जल्द दूसरी किडनी का इंतजाम नहीं किया तो कुछ भी हो सकता है। ममता के पैरों तले से जमीन खिसक गई। आखिर उसने राजू को अपनी औलाद की तरह पाला था। खुद को संभाल कर ममता उठी और डॉक्टर से कहा
ममता--" डॉक्टर साहब !!!मेरी किडनी काम आ सकती है राजू के लिए। मैं इनकी बहन हूं।
डॉक्टर--" जी !!बस कुछ टेस्ट करवाने होंगे फिर देखते हैं कि क्या हो सकता है "
सारे टेस्ट हुए और फिर ममता की एक किडनी राजू को लगा दी गई। राजू ने वापस ममता के साथ रहने की बात कही पर ममता ने उसे मना कर दिया और वह ऐसे ही अकेली रहने लगी। पर अब वह अपना बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखती थी। जैसे उसके जीवन में कुछ बचा ही नहीं था। एक दिन ममता काम करते-करते बेहोश होकर गिर गई। बस्ती वालों ने उसे अस्पताल तक पहुंचाया और राजू को फोन किया लेकिन वह उस दिन शहर से बाहर गया हुआ था। तो रेखा ने फोन अटेंड किया और फिर सब सुनकर फोन कट कर दिया। रघु और कमला काकी रोज ममता के पास आते थे। डॉक्टर ने सारे टेस्ट करने के बाद बताया कि इंटरनल इंफेक्शन हुआ है जिसके कारण ममता की दूसरी किडनी खराब हो चुकी है और अब उसका इन्फेक्शन पूरे शरीर में फैल चुका है अब उसका बचना बहुत मुश्किल है। ममता यही सब सोच रही थी।
जिस दिन रघु ने यह सुना था उस पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा था। वह तो इंतजार कर रहा था इतने सालों से ममता का की कब वो ममता को अपना पाए। उसे वह सारी खुशियां दे पाए जो उसने कभी देखी भी नहीं थी ना कभी सोचा था उनके बारे में। पूरी जिंदगी खुद को जिम्मेदारियों की भट्टी में झोंक दिया था ममता ने और आज वो ऐसे साथ छोड़कर जाने के लिए मौत के दरवाजे पर खड़ी थी। रघु ममता को दवाई देने उसके पास बैठा था। तब ममता ने उससे कहा
ममता--" रघु!!"
रघु--"हां ममता!! कहो?? तुम्हें कहीं दर्द तो नहीं हो रहा है न?? डॉक्टर को बुलाऊं??"
ममता--"नहीं रघु मुझे कहीं दर्द नहीं हो रहा है। एक बात कहूं तुमसे??"
रघु--"हां ममता तुम्हें जो कहना है वह सब कह देना पर पहले यह दवाई खा लो "
ममता (दवाई खाकर )--"मुझसे शादी करोगे रघु ???"
रघु कुछ पल ममता को ऐसे ही देखते रह गया और उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। उसने ममता को कसकर सीने से लगा लिया। ना जाने कब तक दोनों ऐसे ही रोते रहे फिर रघु ने कहा
रघु--"हां ममता मैं तुमसे आज ही शादी करूंगा। तुम्हारी इच्छा मैं जरूर पूरी करूंगा ममता। तुम नहीं जानती तुमने आज मुझे क्या दे दिया। जीने की वजह दे दी तुमने ममता मैं सारी जिंदगी तुम्हारी याद के सहारे जी लूंगा जी !!लूंगा ममता!!!"
उसी दिन रघु ने डॉक्टरों और अस्पताल प्रशासन से परमिशन लेकर वही ममता से शादी की और वही ममता के हाथों को थामें हुए बैठ गया। उन्हें ऐसा देखकर कमला काकी की आंखों में आंसू थम ही नहीं रहे थे। ममता की आंखों में एक अलग सी खुशी थी संतुष्टि थी। आज वह यह महसूस कर रही थी कि उसका जीवन अपूर्ण नहीं रह गया था उसने अपने जीवन को पूर्ण कर लिया था। खुद को पूरा कर लिया था ममता ने। कुछ देर ऐसे ही रघु की गोद में सिर रखे हुए ममता ने अपनी आखिरी सांसे ली। और रघु का चेहरा अपनी आंखों में बसाए हमेशा हमेशा के लिए दुनिया से विदा हो गई...
