छुटकी
छुटकी
राम और रूपा की शादी को पांच वर्ष हो गए थे और उनके घर में अभी तक नन्हे बच्चों की किलकारियां नहीं गूंज पाई थी। गांव की औरतों को जैसे आपस में बात करने के लिए मुद्दा ही मिल गया था। पर इन सब बातों से दूर राम अपनी पत्नी रूपा को काफी खुश रखता था। उसने कभी रूपा के सामने जाहिर ही नहीं होने दिया कि उसे भी बच्चों की कमी महसूस होती है। रूपा समझती थी पर कुछ कह नहीं पाती थी। न जाने कितने पीर पैगम्बर, मंदिर, दरगाह की चौखट पर सर टेका पर कोई हल नहीं। डॉक्टर को दिखाया और उसके बताए अनुसार ही वह दवाइयां ले रही थी।
वो कहते है न ऊपर वाले के घर में देर है अन्धेर नहीं। रूपा और राम के घर भी एक चांद सी प्यारी बेटी ने जन्म लिया। दोनों ने उसका नाम नंदिनी रखा लेकिन सभी प्यार से उसे छुटकी कहकर पुकारते थे। राम की तो जैसे जान बसती थी छुटकी में वो थी बहुत प्यारी। पास पड़ोस में भी सभी की चहेती थी।
समय आगे बढ़ता रहा और छुटकी अब स्कूल जाने लायक हो गई। राम और रूपा के लिए तो छुटकी ही उनकी बेटी और बेटा दोनों थी इसलिए उन्होंने दूसरी संतान का कभी सोचा भी नहीं। राम अपने खेतों से इतनी तो खेती कर लेता जिससे वे सब सुख से अपना जीवन बिता सकें। एक दिन छुटकी दौड़ती हुई राम के पास आई और बोली
छुटकी -- बाबा! सुनो तो ! सुनो ना बाबा!!!!
राम -- हां बिटिया सुन रहा हूं कहो तो।
छुटकी -- बाबा! वो पड़ोस की पूनम है न....अरे जो मेरे जित्ती है उसके बाबा उसका नाम स्कूल में लिखा आए हैं। बाबा मेरा नाम कब लिखाओगे ??? बताओ न बाबा ?? मैं कब जाऊंगी स्कूल???
राम -- अच्छा ऐसा है तो कल ही तुम्हरा नाम लिखवा देते हैं पर एक शर्त है कि आप रोज स्कूल जाओगी और खूब मन लगाकर पढ़ाई करोगी। ठीक है???
छुटकी मान जाती है राम दूसरे दिन राम उसका दाखिला स्कूल में करा दिया।
अब रोज छुटकी स्कूल के लिए तैयार हो जाती और राम उसे रोज़ स्कूल छोड़ने जाता और फिर खेती का काम करता। राम के खेतों के पास से ही रेलवे की लाइन थी। कभी कभी जब छुटकी राम के साथ खेतों की तरफ आती तो रेल की पटरी पर खेलने लग जाती और जब रेलगाड़ी आती दिखाई देती झट से वापस राम के पास आ जाती थी।
एक दिन जब राम छुटकी को छोड़ने स्कूल जा रहा था तो गांव में रहने वाले एक बुजुर्ग जो पंच भी थे वो रास्ते में ही मिल गए उन्हें देखकर राम ने अपनी साइकिल रोक दी और उनसे नमस्कार करने लगा। छुटकी चुपचाप उनकी बातें सुन रही थी। वे बुजुर्ग राम से बोले कि बेटियां तो पराया धन होती है उन्हें पढ़ा लिखा कर क्या करना है कौन सी उन्हें नौकरी करवाना है। ज्यादा पढ़ाओगे तो देखना एक दिन अपने मन की करेगी और अपने फैसले खुद करने लगेगी। नाम रौशन तो बेटा करता है। बात सुनकर राम मुस्कुरा देता है और छुटकी को लेकर स्कूल की ओर आगे बढ़ जाता है रास्ते में छुटकी राम से कहती है बाबा यह मन की करना क्या होता है और बाबा बेटे क्यों नाम रोशन करते हैं ?? बेटियां नहीं कर सकती?? उसकी बात सुनकर राम कहता है कि बेटियां भी माता पिता का नाम रोशन कर सकती है। छुटकी तुम पढ़ लिख कर बहुत नाम कमाना और तुम्हारी मां और मेरा नाम रोशन करना और अपने फैसले खुद लेना अपने मन की करना बस यही हमारा सपना है कि तुम बहुत आगे बढ़ो। छुटकी राम की बात सुनकर कहती है हां बाबा मैं खूब पढ़ूँगी और आगे बढ़ूँगी और आपका नाम रोशन करूंगी।
समय आगे बढ़ते रहता है एक दिन छुटकी राम के साथ खेतों की तरफ चली जाती है और जैसा कि हमेशा की तरह वह रेलवे ट्रैक की तरफ खेलने चली गई और थोड़ी ज्यादा दूर निकल जाती है कुछ दूरी पर जाकर वह देखती है कि रेल की पटरिया अलग-अलग टूटी हुई है जिससे दुर्घटना हो सकती है एक बार राम ने बताया था कि अगर पटरियां टूटी रहेंगी तो दुर्घटना हो सकती है। स्कूल की टीचर ने कक्षा एक दिन बताया था कि जब जब कोई खतरा होता है तो लाल रंग दिखाने से खतरे का संकेत दिया जा सकता है उसका बाल मन तेजी से दौड़ने लगा । छुटकी ने चारों ओर देखा तो उसे कुछ दूरी पर माता का छोटा सा मंदिर दिखाई दिया जिसमें एक लाल झंडा लगा हुआ था और दूसरी तरफ से रेल का सायरन सुनाई दे रहा था। छुटकी वहां से मंदिर की तरफ़ दौड़ पड़ी और उस मंदिर से झंडा निकालने की कोशिश करने लगी। बहुत मुश्किल से वह झंडा निकाल पाई जिसके कारण उसके नन्हे हाथ छिल गए पर छुटकी तो जैसे कुछ याद ही नहीं था वो बस टूटी हुई पटरियों की तरफ भागे जा रही थी। छुटकी अपने हाथों में झंडा संभाले खड़ी थी पटरियों पर बिना किसी डर के। इधर राम जब देखता है कि छुटकी को पटरियों पर गए काफी समय हो गया तो वह भी उसी ओर जाता है दूर से उसे भी रेल आती दिखाई देती है पर यह क्या कुछ ही दूरी पर छुटकी हाथ में झंडा थामे हुए खड़ी थी।राम का तो जैसे खून ही जम गया। इधर रेल भी आगे बढ़ रही थी। रेल के ड्राइवर की नज़र जैसे ही लाल झंडे पर पड़ी वो खतरा भांप गया और उसने रेल रोक दी। रेल और छुटकी के बीच का फासला बस कुछ ही मीटर का था पर छुटकी बिना डरे खड़ी रही। ड्राइवर रेल से उतर कर छुटकी की ओर दौड़ पड़ा उसे ऐसे देख कर रेल में बैठे कुछ यात्री भी उतरकर उस ओर जाने लगे जहां छुटकी खड़ी थी।
उसके पास जाकर जब सबने देखा तो सबकी आंखें फटी की फटी रह गई क्यूंकि रेल की पटरियां टूटी हुई थीं। तब तक राम भी छुटकी के पास पहुंच गया और छुटकी को ऐसे देख कर उसकी आंखों में आंसू रूक नहीं पाए। बाकी के लोग भी छुटकी की समझ की तारीफ करते हुए कहते हैं कि इतनी छोटी उम्र में इतनी समझ और इतना साहस बहुत कम देखने मिलता है।
कुछ दिनों बाद गांव में एक बहुत बड़ा सम्मान समारोह आयोजित किया गया । राम और रूपा की आंखों में खुशी के कारण आंसू निकल पड़े और गांव वालों ने भी उन्हें बहुत बधाई दी। बेटी हो या बेटा आज के समय में सब समान हैं।