मिलन
मिलन


उसकी आंखे काम वासना की तेज से धधक रही थी और उसके शरीर पर चकोर बने बैठे थे। वो खुद को उस पर पुर जोर थोपने की कोशिश में था, पूरा नंगा। वो इस खौफ़नाक दृश्य को अपनी नज़र से देख पाए, ऐसी हिम्मत उसमें थी। उसने अपनी आँखें अपने दोनों हाथों से बंद कर ली। रवीश को मज़ा आ रहा था। ये भी न सोचा आखिर अर्चना इन सब से डरती क्यों है। उसने भरपूर आनंद लिया और उसे रसहिन छोड़ दिया। कुछ क्षण बाद वो उठी और सीधे शौचालय गई। कुछ धार खून के वहां पार कर आई। वो पेट में एक अजीब सा दर्द लिए लौट आई। वो इस खौफ़नाक दृश्य को फिर से सहन नहीं कर पाई। वो पहली बार भी खौफ़नाक था और आज भी उतना ही, भले ही इस बार ये आदमी उतना खौफ़नाक नहीं था। ये अर्चना की पहली रात थी अपने पति रवीश के साथ शादी के बाद।
उस दिन दोपहर को धूप कुछ ज़्यादा थी, जब अर्चना स्कूल से लौट रही थी। घर लौटते बीच में पड़ता बाज़ार में सन्नाटा छाया था। एक भी इंसान नहीं। सारे दरवाज़े बंद थे। वो अकेली लौट रही थी। उसके सारे दोस्त घर पहुंच चुके थे। उसका घर थोड़ी दूर था और दोपहर को रास्ता सुनसान हो जाता था। वो चल रही थी। लेकिन एक शख्स ने उसके सामने खड़े होकर उसे रोक लिया। उसने कहा उसके पापा ने उसे उनके पास ले जाने को कहा। उसने उस पर भरोसा कर लिया क्योंकि वो उसके पड़ोस का लड़का था। वो उसके साथ चली गई। उसने उसे पूछा उसके पापा कहां है, वो उसे कहां लिए जा रहे है। पर वो उसे ज़रा इंतजार करने को कहा। उसका इंतजार और धैर्य दोनों जवाब देने लगे। उसने शालीनता त्याग किया और पूछा उसके पापा कहां है। पर इसके जवाब में उसके सिर पर ज़ोर का एक लोहे का रॉड पड़ा। वो जब होश में आई तो खुद को उसने नंगा पाया और एक आदमी जो नंगा था और उसकी आंखों में वासना की अंगार थी। वो अचंभे में कुछ कह न पाई, बिना कपड़ों के, मर्दों के बीच, जो उसके पड़ोस के थे। वो अपनी ज़बान नहीं खोल पाई और कोई शब्द भी नहीं कह पाई। उसके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया क्योंकि वो समझ नहीं पा रही थी वो है कहां, आई कैसे। और अंत में उसे वो लोग अकेला छोड़ दिए कपड़े पहनने के लिए। उसे इस बारे में किसी से भी कुछ कहने से मना किया। एक तो वो ऐसे में सहमी सी लड़की थी, शान्त सी, और अब इस हादसे ने उसको और चुप कर दिया।
फिर से वही सब ... आदमी ...
नंगा आदमी, आंखों में लालसा की अंगार। और खून, अगर भी ये उसका पति है , लेकिन ये सब फिर से। किसी ने शायद सच ही कहा है, " शादी एक कानूनन वैश्यावृत्ति है।"
"क्या मैं इन सब के लिए ही बनी हूं ? क्या इन सबको छोड़कर कुछ भी नहीं मेरे जीवन में ? मुझे ये सब पसंद नहीं, बल्कि मुझे डर है इस भूख से, वासना के अंगार से भरी आंखों से और नंगे बदन से।
मैं इन सब से मुक्ति कैसे पाऊं ? "अर्चना सोच रही थी। उसने सोचा," काश मैं वहीं उन सब को मार देती, उन चार लड़कों को, पूरा नंगा ।
वो यही सोच रही थी और रात हो गई। चाँद आ गया, वो से रही थी। साथ उसके एक तेज़ तररार छुरी थी, अगर उसे उन चार लड़कों का भयानक सपना आए तो उनको वहीं मार डालेगी। रवीश आया, उसे जगाने की कोशिश की। उस पर होने की कोशिश की। अर्चना नींद में थी और शायद वो भयानक सपना देख रही थी, वे लड़के उसके साथ फिर से ...।
उसने छुरी उठाई और प्रहार किया उन लोगों का। एक चीख ने उसे जगा दिया। उसने सोचा उन चारों में से किसी ने चीखा हो, पर नहीं ...
वो रवीश था, उसका पति जो दर्द से चीख रहा था...