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Rashmi Prakash

Inspirational

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Rashmi Prakash

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मेरी श्यामा

मेरी श्यामा

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वृंदावन में रहने वाले कमल किशोर जी के घर सालो बाद आज बच्चे की किलकारी गुंजने का दिन आया था। वो बाहर बरामदे में बैठ कर इंतज़ार कर रहे थे कब डाक्टर साहिबा आकर उनको ख़ुशख़बरी दे।उनकी पत्नी कांता देवी की तबियत ज़्यादा बिगड़ गई तो डॉक्टर ने घर में ही प्रसव का इंतज़ाम करवा दिया था। तभी उनके घर काम करने वाली कम्मो दौड़ती हुई आई और बोली साहब बेटियाँ आई है। बीबी जी और डाक्टर साहब आपको बुला रहे हैं । कमल किशोर जी लगभग भागते हुए कमरे में गये। डाक्टर ने उनको बताया दोनों बेटियाँ ठीक है बस कांता जी की तबियत ठीक होने में थोड़ा वक़्त लगेगा पर ये ठीक हो जायेगी।

   कमल किशोर जी अपनी अम्मा और बहन को बीवी और बच्चियों की देखभाल के लिए बुलवा लिये। अम्मा ने जब बच्चियों को देखा तो बोली किशोर एक तो गोरी चिट्टी है दूसरी का रंग थोड़ा दबा सा है। उन्होंने गोरी वाली का नाम रानी और दूसरी का श्यामा रख दिया। धीरे-धीरे दोनों बड़ी होने लगी अब अम्मा इनके साथ ही रहने लगी। कांता देवी भी अपनी बच्चियों पर पूरा ध्यान देती।पर उन्होंने महसूस किया कि अम्मा रानी को ज़्यादा तवज्जो देती श्यामा को दुत्कारती रहती। श्यामा रोनी सी सूरत लेकर माँ को देखती तो माँ उसे पुचकारते हुए बोलती तु तो मेरी समझदार लाडो है क्यों उदास होती। 

समय चक्र कब किसी के लिए रूका है। दोनों अब बडी हो गयी थी पर जहाँ श्यामा सभी कार्य में दक्ष थी ,रानी बस सजने संवरने में लगी रहती।पढ़ाई में भी श्यामा हमेशा अव्वल आती और रानी किसी तरह पास होती रही । दादी हमेशा बोलती श्यामा को अच्छे से पढ़ा क्या पता कोई लड़का इसे पसंद न करें तो कम से कम वो अपने पैर पर खड़ी तो हो जाएगी ,रानी को तो कोई राजकुमार ब्याह कर ले जायेगा । इसका ही सोचना होगा ।

      एक बार कमल किशोर जी के बहुत परम मित्र राजनंदनजी के घर किसी आयोजन में सपरिवार आने का निमंत्रण आया। सब तैयार होकर उनके घर गये। राजनंदन जी का परिवार यू तो बहुत पैसे वाले थे पर रहन सहन में बिल्कुल साधारण। उनके एक ही बेटा था कृष्णा। आयोजन में बहुत लोग आए हुए थे। कांता देवी के साथ श्यामा भी मेज़बान की तरह मेहमानों की ख़ातिरदारी कर रही थी।अम्मा के मन में बार-बार ये ख़्याल आ रहा था रानी की शादी कृष्णा से हो जाये।पर कृष्णा चोरी चोरी नज़रों से बस श्यामा को देख रहा था।कहते है ना प्यार सोच समझ कर नहीं होता बस हो जाता है। ऐसा ही कृष्णा के साथ हुआ।वो बस श्यामा के आसपास घुमते हुए उसकी मदद कर रहा था। श्यामा बार बार बोल रही आप परेशान मत हो मैं सब सँभाल लूँगी पर कृष्णा ये बोल कर चुप करा देता कि,”आप यहाँ पहली बार आई हैं ऐसे अकेले कैसे छोड़ सकता हूँ कुछ ज़रूरत हो तो मैं हूँ ना।”

   श्यामा को भी कृष्णा अच्छा लगने लगा पर वो जानती थी उसके रंगरूप को लेकर कोई उससे बात नहीं करता सब रानी को ही भाव देते थे।स्कूल से लेकर कालेज तक उसने यें दंश झेलने की आदत हो गयी थी। शायद इसलिए कभी प्रेम जैसे शब्द को पास नहीं आने दिया बस अपनी पढ़ाई और काम में ख़ुद को झोंक दी । बस एक माँ ने उसे हमेशा सीने से लगा कर प्यार ममता लुटातीं रही। पिता काम में इतने व्यस्त रहते कि उनके पास बच्चों के लिए वक़्त ही नहीं होता पर उन्होंने कभी रानी और श्यामा में कोई अंतर नहीं किया।पर आज श्यामा का दिल कृष्णा को देख कर ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था। वो उससे जितना दूर जाती वो उसके पास चला आता।आयोजन समाप्त हो गया तो कमल किशोर जी अपने घर जाने की तैयारी करने लगे।तभी उनके मित्र अपनी पत्नी के साथ उनके पास आए और हाथ जोड़ कर बोले,”भाई कमल किशोर छोटी मुँह बड़ी बात है पर मुझे तुम्हारी एक बेटी को बहु बनाना चाहता हूँ। अम्मा ने ये बात जैसे ही सुनी वो खुश होकर बोली,”काहे नहीं बिटवा हमें काहे एतराज़ होगा।अच्छा है दोनों की दोस्ती रिश्तेदारी में बदल जायेगी।”

 ये सुनते ही कमल किशोर जी के दोस्त ने बोला,”फिर मुझे श्यामा का हाथ मेरे कृष्णा के लिए दे दो।”ये सुनते ही सब एक दूसरे को देखने लगे।उन्हें उम्मीद ही नहीं थी श्यामा के लिए कोई सामने से रिश्ता आयेगा। उनके दोस्त ने बोला ये फ़ैसला ख़ुद कृष्णा ने लिया है और हमें भी श्यामा पसंद है। दादी तो आँखें फाड़ के श्यामा को देख रही थी और रानी जो हमेशा श्यामा को नीचा दिखाने में लगी रहती अपना सा मुँह लिए खड़ी थी। कमल किशोर जी ने श्यामा को पास बुलाकर पूछा,” बिटिया तुझे कुछ कहना है तो बोल,”। श्यामा ने बस इतना ही बोला ,”मुझे एक बार कृष्णा जी से बात करनी है ।”

 कृष्णा श्यामा को लेकर घर के पीछे बगीचे में ले गया और श्यामा को बोला ,”क्या बात करनी क्या मैं आपको पसंद नहीं?” श्यामा कुछ बोले उससे पहले कृष्णा बोला श्यामा आप मुझे पहली नज़र में ही पंसद आ गयी थी और ये बात मेरी मम्मी को पता है तभी वो आपके पिताजी से बात करने गये। मैं आपका प्रियतम बनाना चाहता हूँ क्या आप मेरी श्यामा बनेगी?”

श्यामा निःशब्द होकर कृष्णा की तरफ़ देखती और हाँ में सर हिलाते हुए बोलती है,” हाँ मैं हूँ आपकी श्यामा अपने कृष्णा की श्यामा।अंदर आकर दोनों अपनी सहमति दे देते है । परिवार वाले धूमधाम से उनकी शादी करते। एक कांता देवी ही थीं जिन्हें ये भरोसा था है तो दोनों मेरी ही बेटियाँ पर क़िस्मत की धनी तो मेरी श्यामा ही निकली। क्यों अम्मा जी सच कह रही हूँ ना ?” अम्मा भी हाँ में हाँ मिला दी।

अकसर ये बात हम अपने आसपास जरूर देखते सुनते होंगे। सबसे पहले लोग रंगरूप को ही देखते पर उनका दिल व्यवहार नहीं देखते। किसी भी इंसान को रंगरूप से नहीं बल्कि उसके व्यवहार से प्रसिद्धि मिलती। आप लोग मुझे बतायें ऐसा होता है और नहीं ?


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