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Rashmi Prakash

Inspirational

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Rashmi Prakash

Inspirational

इज़्ज़त सिर पर पल्लू रखने से नहीं दिल से दी जातीं

इज़्ज़त सिर पर पल्लू रखने से नहीं दिल से दी जातीं

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पढ़ी लिखी सुमन की शादी बहुत धूमधाम से पढ़े लिखे सुमेर से कर माँ बाप ख़ुशी से उसे ससुराल भेज दिए। नये घर में बहुरानी का स्वागत किया गया । सब रस्मों रिवाज के बाद सुमन को एक कमरे में छोड़कर सब चले गये। सुमन ने सर से भारी पल्लू हटाकर थोड़ा सुस्ताने का सोच ही रहीं थीं कि उसकी सासु माँ कमरे में आ गयी। सुमन पल्लू सर पर रखने लगी तो सास ने बोला ,” देखो बहु सर पर से पल्लू हटना नहीं चाहिए। घर में बहुत लोग हैं और रिश्तेदारों से घर भरा हुआ है । पल्लू हमेशा सर पर होना चाहिए नहीं तो लोग कहेंगे देखो इसकी बहु को बड़ों का इज़्ज़त करना भी नहीं आता।” 

  सुमन ने सिर झुकाकर बोला जी माँ जी ध्यान रखूँगी। जब तक घर में रिश्तेदार रहे सुमन ने पल्लू हटने नहीं दिया । जब सब चले गए तों उसने सोचा उफ़्फ़ इतनी गर्मी में सर पर पल्लू कौन रखे उसने पल्लू हटाकर कुछ काम करने लगी।घर में अब बस सास ,जेठ ,जेठानी उनके बच्चे और सुमेर सुमन ही थे। छोटे से परिवार मे आकर सुमन बड़े प्रेम से रहने लगी। पर एक बात उसको हमेशा चुभती रहती सासु माँ पल्लू के पीछे ही पड़ी रहती मसलन जेठ जी आ रहे तुम दूसरे कमरे में चली जाओ, तो कभी यहाँ मत बैठो जेठ जी आ रहे।जैसे ही जेठ जी आने वाले होते हिदायत देती पल्लू लो। 

सुमन ने सोचा ठीक है जब तक यहाँ हूँ पल्लू रख लेती कौन सा मुझे हमेशा यहाँ ही रहना । पति की नौकरी दूसरे शहर में है उधर अपने मन का करूँगी।समय के साथ सब कुछ बदल जाता पर नहीं बदला था तो सुमन की सास का पल्लू प्रेम और जेठ जी जहाँ हो वहाँ सुमन की अनुपस्थिति।अब सुमन के बच्चे भी बड़े हो गए थे। फिर भी पल्लू तो पल्लू है हटना नहीं चाहिए।सुमन ने कई बार सुमेर से बोला भी माँ को बोलो ना ये पल्लू नहीं रखने से क्या मैं जेठ जी की इज़्ज़त नहीं करूँगी? वो आपके बड़े भाई है मैं भी भइया ही मानती इतना पर्दा क्यों करवाती हैं? गर्मी में हालत ख़राब हो जाती मेरी।पर सुमेर पक्के माँ के भक्त सुन कर अनसुना कर देते। उन्हीं दिनों पता चला जेठ जी की बेटी की शादी तय हो गई । लड़के वालों को सुमन जानती थी फिर वो उसके मायके के तरफ के लोग थे। अब जो लड़की ख़ुद को मायके में खुले विचारों में रही हो उन लोगों के सामने पल्लू में तो न जायेंगीं। सुमन ने सोच लिया अब जो भी हो जाये माँ जी की बात न मानेगी। उसने सुमेर से स्पष्ट शब्दों में कहा देखो सुमेर मैंने आज तक माँ जी की बात मानी है अब ये जो लोग शादी के लिए आने वाले वो ख़ुद आधुनिक विचारों वाले उपर से वो मुझे भी जानते, मैं उनलोगो के सामने पल्लू तो ना लूँगी चाहे उधर जेठ जी ही क्यों न हो। नहीं तो मुझे नहीं जाना शादी में। सुमेर समझ गए अब सुमन एक ना सुनेंगी। बस बोले ठीक है मत लेना पल्लू। शादी में जब सासु माँ ने देखा सुमन पल्लू नहीं ले रखी तो उसके पास आकर बोली बहु जेठ जी है पल्लू लो। सुमन माँ को कुछ बोलती उससे पहले सुमेर आकर माँ को बोले,” माँ इतने साल से सुमन पल्लू ही तो रखी थी क्या भइया की इज़्ज़त नहीं करती ? उधर देखो पड़ोस में जो चाचा है उनकी सब बहु पल्लू मे ही रहती पर हमेशा झगड़ा ही करते रहते ।इज़्ज़त पल्लू रखने से नहीं माँ दिल से दी जाती, और उपर से इतनी गर्मी है सुमन ही सब कुछ कर रही वो काम करें और पल्लू सम्भाले? अब तुम भी थोड़ा समझो उसको । पहली बार सुमेर के मुँह से अपने हित में सुन कर उसे अच्छा लगा। सुमन मन ही मन सोचने लगी सब संभव हो जाये जो तुम अगर साथ हो ।सासु माँ को भी समझ आ गया पड़ोसी चाची के घर में पल्लू में कितनी इज़्ज़त मिलती।

सच ही तो है इज़्ज़त सर ढँककर नहीं सर झुकाकर दी जाती है बस समझने वाले का नज़रिया बदलना पड़ता।


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