Saurabh Mishra

Inspirational

4.4  

Saurabh Mishra

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मेरे दादू कौन हैं?

मेरे दादू कौन हैं?

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साकेत हर रोज की भांति आज जब अपने दोस्त रवि के यहाँ से खेल कर आ रहा था तब वह कुछ अनमना सा कहीं खोया हुआ था मानो उसके मन में कई सवाल उठ रहे हैं जिनके जवाब उसके पास नहीं। वह घर पहुँचता है और उदास होकर बैठ जाता है। जब उसकी माँ रश्मि उसे देखती है तो वह दुलारते हुए पूछती है, क्या हुआ मेरे साकेत को? यह सुनकर साकेत एक ही सांस में रश्मि से पूछता है, “माँ मेरे दादू कौन हैं? वो कहां रहते हैं? कब आएंगे?” 

     दरअसल साकेत एक पांच साल का बच्चा है जो प्रतिदिन स्कूल से आने के बाद खेलने के लिए अपने हमउम्र दोस्त रवि के यहाँ जाता है। दोनों रवि के घर पर ही खेला करते हैं। वहीं कभी–कभी रवि के दादा जी भी उनके साथ समय बिताने आ जाते, उनके साथ बातें करते। कभी दोनों को पास बुलाकर अपनी जेब से टॉफी निकालकर देते। कभी मन करता तो दोनों को पास बैठाकर कहानियाँ सुनाते। दोनों दोस्त भी दादा जी को कहाँ छोड़ते थे। खेलते–खेलते दोनों के मन में जो भी सवाल उठता दादा जी से पूछ आते। दादू इस फूल का रंग लाल क्यूँ है? चिड़ियाँ भी एक दूसरे से बातें करते हैं? क्या उनके भी मम्मी-पापा होते हैं? ऐसे ढेर सारे सवाल उनसे पूछते रहते, जिनका जवाब दादा जी भी ख़ुशी–ख़ुशी बताते। इससे बच्चों को जानकारी भी मिल जाती और उनका भी मन लगा रहता।

   आज जब साकेत और रवि खेल रहे थे, तब रवि ने साकेत से पूछा “साकेत तुम्हारे दादू कौन हैं?” जिसका जवाब साकेत के पास नहीं था। इस सवाल से वह परेशान हो गया और सोचने लगा कि मेरे दादू कौन हैं? घर आकर जब उसने यह सवाल रश्मि से पूछा तो रश्मि अचानक से यह सवाल सुनकर हैरान हो गयी, क्योंकि उसने और उसके पति अमर ने कभी भी उसके दादा जी का जिक्र उसके पास किया ही नहीं था। साकेत जब एक वर्ष का था तब अमर कि नौकरी दूसरे शहर में लग गयी थी। उसी समय रश्मि और अमर ने अपने पिता को उस शहर के वृद्धाश्रम में पहुँचा दिया और खुद दूसरे शहर में जाकर रहने लगे।   

रश्मि साकेत के सवाल पूछने पर उस वक्त उसका जवाब नहीं देती है और उसका मन बदलने के लिए फ्रिज में रखे हुए केक को निकलकर उसे खाने दे देती है। साकेत केक खाकर टीवी देखने लगता है तबतक अमर भी घर आ जाता है। घर आते ही रश्मि अमर को सारी बात बताती है। वह रश्मि कि बातों को सुनकर हाथ-पैर धोने चला जाता है और वापस आकर साकेत के पास बैठ जाता है। साकेत उसे देखकर रुआँसा हो जाता है और पास जाकर बोलता है, “पापा मेरे दादू कौन हैं? मैंने मम्मी से पूछा तो उन्होंने नहीं बताया”। यह सुनकर अमर उसे अपनी गोद में बैठाते हुए बोलता है, “बेटा आपके दादा जी तो यहाँ नहीं रहते, वो दुसरे शहर में रहते हैं, और यहाँ आते भी नहीं”। इतना सुनते ही साकेत फिर पूछता है, “क्यूँ नहीं आते?” अमर कहता है, “मुझे नहीं पता बेटा”। “मुझे उनसे मिलना है, मुझे उनके पास ले चलो”, यह कहते हुए वह रोने लगता है। वह रोते - रोते सो जाता है और रात में जब रश्मि उसे खाना खिलाने के लिए उठाती है तब उठता भी नहीं है। तब रश्मि उसे बिस्तर पर अच्छे से सुला देती है और अपना और अमर का खाना परोस कर खाने लगती है। खाना खाते-खाते रश्मि अमर को बताती है कि साकेत खाना खाने नहीं उठा, सोया रह गया। यह सुनकर वह कुछ सोचने लगता है और अपना खाना खत्म करके सोने चला जाता है। 

सुबह उठकर अमर रश्मि से कहता है, “आज इतवार है, चलो साकेत को पिताजी से मिलाकर ले आते हैं”। रश्मि मना करते हुए कहती है, “क्यूं जाना? बेकार में वो यहां आने की जिद करने लगे तो?” अमर कहता है, “नहीं करेंगे , और करेंगे भी तो हम कुछ बहाना बना देंगे”। इससे साकेत भी खुश हो जाएगा। तब रश्मि हामी भर देती है। कुछ देर बाद सभी नाश्ता करके तैयार हो जाते हैं। तैयार होकर तीनों अपनी गाड़ी से अपने पुराने शहर की ओर निकल जाते हैं। दो-ढाई घंटे बाद वे सब उस शहर के वृद्धाश्रम के पास पहुँचते हैं। सभी गाड़ी से उतरकर वृद्धाश्रम के अंदर जाते हैं। साकेत अपने दादू से मिलने की खुशी में मुस्कुराते हुए अंदर जाता है। वहाँ पूछने पर पता चलता है कि दादा जी वहीं के बागान में बैठे हुए हैं। तीनों वहीं चले जाते हैं। रश्मि और अमर देखते हैं कि पिताजी एक पेड़ के नीचे बहुत से वृद्ध लोगों के साथ बैठकर बातें कर रहे होते हैं। अमर साकेत को इशारे से बताता है कि देखो वही तुम्हारे दादा जी हैं। इतना सुनते ही साकेत दौड़कर वहाँ चला जाता है और दादा जी से लिपट जाता है। पहले तो दादा जी कुछ समझ नहीं पाते हैं पर रश्मि और अमर को आते देख वो पहचान जाते हैं कि वह साकेत है। दादा जी साकेत का हाथ पकड़कर उन दोनों के पास आ जाते हैं फिर सभी एक पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर जाकर बैठ जाते हैं। अमर पिताजी को बताता है कि साकेत आपके बारे में पूछ रहा था इसलिए सोचा आपसे मिला दूँ। यह सुनते ही दादा जी साकेत को अपनी गोद में बैठा लेते हैं और रोने लगते हैं। अपने दादू को रोता देख कर वह भी रोने लगता है। उनको देख कर लग रहा था मानों दोनों एक दूसरे को बहुत अच्छे से जानते हैं, देखने से लगता ही नहीं साकेत अपने होश में पहली बार दादा जी से मिल रहा है। रोते-रोते वह बोलता है, “दादू मैं आपसे गुस्सा हूं, आप यहां क्यूं रहते हैं? आप हमारे साथ क्यूं नहीं रहते? रवि के दादू उसके साथ रहते हैं”। इसका जवाब वो नहीं दे पाते हैं और अमर और रश्मि की तरफ देखकर सिर नीचे कर लेते हैं। अमर और रश्मि भी अपना सिर नीचे कर लेते हैं।

      थोड़ी देर बाद सभी खाना खाते हैं, जो वे लोग घर से लेकर आए रहते हैं। खाना खाने के बाद बातों ही बातों में अमर पिताजी से बोलता है, “अब चलता हूँ पिताजी। जाना है, देर हो जाएगी”। “चलो साकेत अब घर भी वापस जाना है”, रश्मि साकेत से कहती है तो वह मना कर देता है। वह कहता है, “मैं नहीं जाऊँगा, मैं यहीं दादू के साथ रहूँगा”। रश्मि इस बात पर उसे डाँटती है तो वह रोने लगता है, वह रोते हुए दादू से लिपट जाता है और बोलता है, “दादू को साथ ले चलो तभी चलूँगा”। यह सुनकर रश्मि और अमर कुछ बोल नहीं पाते हैं, तभी दादा जी साकेत के चेहरे से आंसू पोंछते हुए कहते हैं, “नहीं बेटा जिद नहीं करते, अभी मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकता”। यह सुनकर साकेत और जोर से रोने लगता है। आस - पास बैठे सभी वृद्ध उनकी तरफ देखने लगते हैं। साकेत रोते-रोते कहता है, “नहीं, आपको हमारे साथ चलना ही होगा”। इसके बाद कोई कुछ बोलता उससे पहले रश्मि बोल पड़ती है, “चलिए न पिताजी, साकेत भी इतना जिद कर रहा है”। अमर मुस्कुराते हुए रश्मि की ओर देखता और हाँ में सिर हिलाता है, फिर चहकते हुए बोलता है, “हाँ पिताजी, तब आपको यहाँ छोड़ना हमारी मजबूरी थी , अब आप हमारे साथ ही चल रहे हैं”। दादा जी जाने के लिए राजी हो जाते हैं और जाने से पहले साकेत का हाथ पकड़कर अपने वृद्धाश्रम के साथियों के पास ले जाते हैं, वहाँ जाकर खुशी-खुशी बताते हैं, “देखिए यह मेरा पोता है, मुझे लेने आया है”। इतना कहकर सभी को वह अलविदा कहते हैं और अपने कमरे में पड़े कुछ एक सामान को लेने चले जाते हैं। वहाँ से आकर सभी बाहर निकलते हैं और घर की ओर चल देते हैं। 

  यहाँ आने समय साकेत के चेहरे पर जितनी चमक थी उससे कहीं ज्यादा अभी वापस जाते वक्त है, मानो उसे जो चंद्रमा सा एक खिलौना चाहिए था वह मिल गया है। घर पहुँचते-पहुँचते देर हो जाती है तो घर पहुँचकर सभी खाना खा कर सोने चले जाते हैं। साकेत अपने दादू के साथ ही बातें करते-करते सो जाता है।

    सुबह साकेत स्कूल चला जाता है और जब वापस आता है तो दादा जी से कहता है, “दादू तैयार हो जाइए आपको किसी से मिलाने के लिए लेकर जाना है”। फिर दोनों खाना खाकर आराम करते हैं और कुछ देर बाद घर से निकलकर रवि के यहाँ जाते हैं। वहाँ जाकर वह रवि से कहता है, “रवि देखो मैं किसे साथ लाया हूँ, मेरे दादू”। वहीं थोड़ी दूर में रवि के दादा जी भी बैठे रहते हैं, साकेत और रवि दोनों दादू को एक दूसरे से मिलाते हैं। दोनों दादू फिर बैठकर बातें करने लगते हैं और वहीं पास में साकेत और रवि खेलने लगते हैं।


                       



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