मेरा मित्र और उसका बैग
मेरा मित्र और उसका बैग


कई बार हम सोचते हैं की, हम अकेले क्यों हैं... या फिर हमारा मन अकेला क्यों हैं| तनहा क्यों हैं यह दिल, यह शामें सर्द क्यों हैं| हम खुद से पूछे हुए इस प्रश्न का उत्तर कभी खोज नहीं पाते... हाल ही में मेरा मित्र रोहन शहर से मुझसे मिलने आया था| मेरा कार्यालय प्रातः ८.०० बजे खुल जाया करता था, में उस वक्त सोच रहा था की, आज छुट्टी ले लेता हूँ कार्यालय से... मगर कुछ पल बाद मैंने सोचा की मेरा वेतन ना कट जाए|
मैं फिर कार्यालय चला गया... रोहन को लेने रेलवे स्टेशन नहीं जा पाया| मैं जब शाम को घर पहुंचा तो मेरा घर का दरवाजा पहले से ही खुला था... मैं भयभीत हो गया की मेरे घर में चोर तो नहीं प्रवेश कर गया है|
मैं जैसे-तैसे साहस इकट्ठा करके दरवाजे के समीप गया तो देखा की मेरा मित्र रोहन कुर्सी पर बैठे मेज़ पर टांगे टिकाए टीवी देख रहा हैं| मैं घर के भीतर दाखिल हुआ तो उसने मुझसे पूछा की, तुम मुझ स्टेशन पर लेने क्यों नही आऐ ?
मैं क्या कहूं मेरे भाई! मैने कहा|
जो सच हैं वही कहो, उसने कहा|
वो मुझे कार्यालय के काम से प्रातः ६ बजे जाना पड़ा अचानक इसीलिए नहीं आ पाया|
चल अब तो आ ही गया हूँ, उसने कहा| चल अब हम दोनो भोजन करते हैं, उसके बाद बात करेंगे| तू भोजन बना, थाली में परोस... मैं हाथ धो आता हूँ| यह कह कर फ़िर वो हाथ धोने चला गया|
हम भोजन ग्रहण कर रात १० बजे विश्राम करने अपने अपने कमरे में चले गए| मध्य रात्रि के १२ बजे रोहन के कमरे से बड़बड़ाने की आवाज़ सुनाई दी| मैंने जाकर देखा तो वो नींद में बोल रहा था| मैंने उसे नींद से उठा दिया...
वो उठा और कहने लगा की, क्यों किया मेरे साथ ऐसा क्यों!
मैने उसे कंधे से हिलाया-डुलाया और कहा की, क्या हुआ!
वो होश में जेसे ही आया तो मैंने उससे पूछा की, कुछ परेशानी हैं क्या?
उसने कुछ नही कहा और बिस्तर पर नयन मूंद लेट गया| मैं कमरे से जाने लगा तो वह कहने लगा की, मैं तुमसे कल एक जरूरी बात करना चाहता हूँ| तुमको मैं कल बताऊंगा|
मैं अपने कमरे में चला गया... मगर मुझे नींद नही आई... मैं यही सोच रहा था की, क्या बात हैं जो वो कहना चाहता हैं| जैसे-तैसे मैने रात काटी, मेरी जिंदगी की सबसे लंबी रात|
भोर हुई तो मैं भागता हुआ टीवीवाले कमरे में पहुँचा, तो देखा की रोहन के हाथ में एक काला बैग हैं...
मैंने उससे पूछा की, रोहन इस बैग में क्या हैं?
उसने कहा पैसे| मैं सोच में पड़ गया की, यह इस तरह बैग में पैसे क्यों लाया हैं|
मैने फ़िर पूछा की, कितन पैसे हैं इसमें?
रोहन ने कहा, ४ करोड़ रुपए हैं|
मैंने कहा, क्या! ४ करोड़!! इतने पैसे तेरे पास कैसे आए|
उसने कहा, यह काला धन है इसे संभाल कर रख... मेरे घर पर पुलिस की रेड पड़ी है... अभी तेरे पास देने आया हूं... बाद में ले जाऊंगा, ठीक है।
मैंने कहा की, मैं यह पैसे नहीं रखूंगा... यह काला धन है और इसे रखना गलत बात है... तुम्हें भी यह सोचना चाहिए की, यह सरकार का पैसा है... यह गरीब लोगों की मदद के लिए है।
उसने कहा की, हां तू शायद सही कह रहा है... मैं यह पैसा सरकार के आयकर विभाग के कर्मचारियों को दे दूंगा और सारी सजा भी भुगत लूंगा|
इसके बाद हम दोनों शहर गए... वहां पर हमने आयकर विभाग के कर्मचारियों को यह पैसे खुद अपने ही हाथों से दिए और जितना जुर्माना लगना था उतना भर दिया और फिर हम दोनों की दोस्ती हमारी मित्रता और भी गहरी होती चली गई और आज हम दोनों एक सच्चे और अच्छे दोस्त हैं और एक सच्चे देशभक्त भी हैं...