Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Richa Rohit Gupta

Inspirational

2.7  

Richa Rohit Gupta

Inspirational

मेरा हमसफ़र

मेरा हमसफ़र

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ये बात उन दिनों की है जब मैं दिल्ली के एक नामी स्कूल में पढ़ाया करती थी। मेरा रिश्ता पक्का हो चुका था और शादी में लगभग छह महीने का वक्त था।सब कुछ अच्छा चल रहा था। मेरे होने वाले पति और ससुराल वाले भी काफी खुश थे।

फिर अचानक से मेरी ज़िंदगी में एक ऐसा मोड़ आया जिसने कुछ वक़्त के लिए सब कुछ बदल कर रख दिया।

गर्मियों की छुट्टियां होने वाली थी। हमारे स्कूल की प्रिंसिपल ने आखिरी हफ्ते में मुझे बुलाया और कहा कि अगला सेशन शुरू होने से पहले आपको हमारे पैनल के सामने इंटरव्यू देने के लिए आना है। उनकी ये बात सुनकर मुझे बहुत बुरा लगा। और इसके कई कारण भी थे। मेरी ज्वाइनिंग के एक साल के अंदर ही उन्होंने मुझे पूरी सैलरी (गर्वनमेंट ग्रेड) देनी शुरू कर दी। उस साल रसायन शास्त्र (जो मेरा विषय है) का रिज़ल्ट भी सबसे अच्छा आया था। मुझे बात - बात पर ये एहसास करवाया जाता था कि प्रिंसिपल और बच्चों को मेरे पढ़ाने का तरीका बहुत पसंद है। तो फिर दोबारा यह इंटरव्यू क्यों?


शायद उस वक़्त मैं इतनी समझदार नहीं थी कि इन व्यावसायिक बातों को समझ सकूं। मेरे मन में एक अजीब सा अहम था कि जब सब मुझसे इतने खुश हैं तो मेरी जगह वहां कोई नहीं ले सकता। बस यही सब सोचकर मैं इंटरव्यू देने नहीं गई। 

कुछ दिनों बाद छुट्टियों में मुझे स्कूल बुलाया जाता है और मुझे पता चलता है कि क्योंकि मैं उनके कहे अनुसार इंटरव्यू देने के लिए नहीं पहुंची, इसलिए उन्होंने मेरी जगह किसी और को नियुक्त कर लिया है (हालांकि प्रिंसिपल ने इस बात के लिए खेद भी जताया और मुझसे आगे संपर्क में रहने के लिए भी कहा)। यह सब सुनकर मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे पाँव तले ज़मीन खिसक गई हो। अपने परिवार को होने वाली परेशानियों से ज्यादा मुझे अपने ससुराल वालों की चिंता हो रही थी कि वो लोग क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे (क्योंकि जैसा कि अमूमन हर रिश्ते में होता है, हमारे रिश्ते की बुनियाद भी कहीं ना कहीं मेरा उनकी मनपसंद नौकरी करना और एक अच्छी सैलरी थी)।


मन में चल रही इन सब बातों के साथ मैं जैसे - तैसे अपने आंसूओं को छुपाए नज़दीकी मेट्रो स्टेशन पहुंच गई। इतने में तेज़ बारिश शुरू हो गई। अच्छा ही हुआ क्योंकि उस बारिश कि बूंदों में मैं अपने दिल के दर्द को बहते हुए आंसूओं के साथ कुछ कम करने की कोशिश कर रही थी।

मैं करीब दो घंटे मेट्रो स्टेशन पर अकेले एक कोने में बैठी रही। मन में ढेरों सवाल चल रहे थे कि मम्मी - पापा सब कुछ कैसे संभालेंगे, मेरे ससुराल वाले कहीं रिश्ता तो नहीं तोड़ देंगे? यही सोचते - सोचते मैंने हिम्मत करके अपने होने वाले पति को फ़ोन किया और सब बात बताई। उस वक़्त तो उन्होंने कुछ खास नहीं कहा, बस मुझे मिलने के लिए बुलाया। 


मैं उसी तेज़ बारिश में उनसे मिलने गई। मेरे आंसूओं और बारिश की बूंदों ने मुझे पूरी तरह भिगो दिया था। वो आए और आते ही उन्होंने मुझे प्यार से अपने पास बिठाया। इससे पहले कि मैं कुछ बोल पाती उन्होंने अपना हाथ मेरे होठों पर रखा और कहा - आपको कुछ कहने और समझाने की जरूरत नहीं है।फिर मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर बोले - मैं हूं ना आपके साथ।ह म दोनों मिलकर कुछ ना कुछ हल निकाल लेंगे। बेशक अभी हमारी शादी नहीं हुई है पर मैंने दिल से आपको अपना जीवन - साथी उसी दिन मान लिया था जब हमारा रोका हुआ था। ये रिश्ता अब जब हम दोनों को मिलकर निभाना है, तो फिर कोई भी परेशानी या तकलीफ़ आप अकेले क्यों झेलेंगी? 


उनके इतना कहते ही मेरे मन में चल रहा तूफ़ान आँसू बन झर - झर बह निकला और एक डरी सहमी सी लड़की सारी शर्म - लिहाज़ छोड़ उनकी बाहों में चली गई।

उस दिन मुझे मेरी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा सबक मिला और वो ये कि चाहे आप कितने ही काबिल और किसी के प्यारे क्यों ना हो, आपकी जगह कभी भी कोई भी ले सकता है।और साथ ही साथ सही मायनों में बहुत प्यार करने वाला और हर सुख - दुख में साथ निभाने वाला एक हमसफ़र भी।



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