मेरा हमसफ़र मुझे रास्ते में छोड़ गया
मेरा हमसफ़र मुझे रास्ते में छोड़ गया
पुणे शहर में रमेश नाम का एक लड़का रहता था। रमेश एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी में प्रबंधक के पद पर कार्यरत था। रमेश की शादी एक बैंक में कार्यरत सीमा नाम की लड़की से हुई। दोनों पति-पत्नी बड़ी ख़ुशी से रह रहे थे। शादी के दो वर्ष बाद दोनों की ख़ुशी दोगुनी हो गई। क्योंकि घर में एक लड़के ने जन्म लिया था। लड़के का नामकरण बड़ी धूमधाम से किया गया। लड़के का नाम विजय रखा गया। अब घर में तीन सदस्य हो गए थे। सब ठीक ठाक चल रहा था। एक दिन रमेश का ह्रदय गति रूकने से देहांत हो गया। अब घर में माँ और बेटा रह गए थे। माँ ने बेटे को लिखा-पढ़ाकर एक बड़ा कम्प्यूटर इंजीनियर बना दिया। उसके बाद बेटे को पुणे में ही एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी मिल गई। घर में अब फिर से सब अच्छा चलने लगा। माँ भी अब बैंक से सेवानिवृत्त हो गईं थी। अब सीमा को कोई चिंता नहीं थी। क्योंकि अब विजय घर में बड़ा और कमाने वाला हो गया था। माँ को अब विजय की शादी करनी बाक़ी रह गई थी। माँ ने अपने दूर के रिश्तेदार की एक लड़की को पसंद किया। माँ ने विजय को उस लड़की के विषय में बताया। विजय ने माँ को यह कहकर मना कर दिया कि वह मेरे बराबर की नहीं है। माँ ने बेटे की बात मान ली। कुछ दिनों बाद विजय ने अपने साथ में नौकरी करने वाली एक लड़की से अपनी माँ को मिलवाया। विजय ने माँ को बताया कि हम दोनों प्यार करते और शादी करना चाहते हैं। माँ को वह लड़की सुंदर लगी और दोनों की शादी के लिए सहमति दे दी। विजय की शादी हो गई। अब माँ की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। क्योंकि घर में बहू जो आ गई थी। माँ की यह ख़ुशी कुछ दिनों तक ही रही। एक दिन बेटे और बहू ने विदेश जाने की ख़बर माँ को सुनाई। मानो माँ के पैरों तले से ज़मीन निकल गई हो। माँ को अकेला छोड़ बेटा और बहू विदेश चलने लगे। बेटे ने माँ को विदा होते हुए कहा माँ अपना ध्यान रखना। माँ तो मानो मुर्दा बनकर रह गई थी। बहु और बेटे के विदेश जाने के बाद, माँ अकेले एक फ़्लैट में रह रही थी। माँ का जीवन तो मानो अब वीरांन घर में बीत रहा था। अकेली माँ खुशहाल परिवार होते हुए भी बे-सहारा हो गई थी। माँ प्रतिदिन मर-मर कर जी रही थी। बेटे का फ़ोन महीने दो महीने में आ जाता था। फ़ोन पर बेटा एक ही बात कहता, माँ अपना ध्यान रखना मेरी नौकरी का सवाल है, मैं नहीं आ सकता है। मुझे आने में समय लगेगा। एक दिन बे-सहारा माँ की फ़्लैट में मृत्यु हो गई। माँ की लाश पाँच दिनों तक घर में ही पड़ी सड़ती रही। जब आसपास बदबू आने लगी तो पुलिस को सोसाइटी के प्रबंधक ने सूचना दी। पुलिस ने माँ के रिश्तेदारों से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन किसी रिश्तेदार की जानकारी नहीं मिली। इसके बाद पुलिस ने ही माँ का अंतिम संस्कार कर दिया। बेटा विदेश से आया या नहीं इसकी जानकारी कभी किसी को नहीं मिली। आधुनिक और पश्चिमी सभ्यता की खाल पहने बेटा और बहू की आज तक किसी को कोई ख़बर नहीं मिली। फ़्लैट पर पुलिस ने ताला लगा दिया था।
