मेरा देश महान्
मेरा देश महान्
जाड़े के दिन थे, इस वर्ष कंपकंपाने वाली ठंड पड़ रही थी। सूरज देवता भी कुछ नाराज़ से चल रहे थे। सुबह देर से दिखाई देते और दिन भर बादलों में आंखमिचौली खेलते, ऐसा प्रतीत होता था "जाड़े में इनका तेज भी कम हो गया हो!"
"मां" की आवाज़ ने राजू को गहरी नींद से जगाया। राजू उठ तो गया परंतु स्नान करना तो दूर पानी में हाथ डालने की हिम्मत भी जुटा न पाया।
तभी मां की आवाज़ आई "क्या पानी को देखता रहेगा, हाथ मुंह धो कर तैयार हो जा, स्कूल नहीं जाना क्या?"
मां की आवाज़ ने राजू को याद दिलाया कि "आज गणतंत्र दिवस है और आज स्कूल भी थोड़ा जल्दी जाना है। झटपट राजू स्कूल जाने के लिए तैयार हुआ, आज उसे स्कूल में "मेरा देश महान्" विषय पर भाषण देना था।स्कूल बस में आज सभी बच्चे बड़े उत्साहित थे। सभी देश को आज़ादी दिलाने वाले शहीदों भगत सिंह, आज़ाद,सुभाष चंद्र बोस आदि को याद कर रहे थे। हर कोई देश की महानता की बातें कर रहा था।
तभी एक ट्रैफिक सिग्नल पर स्कूल बस रुकी, राजू की नज़र ट्रैफिक सिग्नल पर "तिरंगा" बेच रहे अधनग्न बच्चे पर पड़ी। जाड़े की यह सर्दी भी उसकी भूख के आगे बौनी जान पड़ रही थी। "तिरंगा" हाथ में लिए वह उम्मीद में कभी इस गाड़ी तो कभी उस गाड़ी की ओर दौड़ता कि कोई तो "तिरंगा" खरीद ले।
राजू से उसकी हालत देखी न गई, राजू को याद आया कि"मां" ने आज पॉकेट मनी के लिए दस रुपए दिए थे, राजू ने उस बच्चे को आवाज़ दी और पांच रुपए में एक "तिरंगा" खरीद लिया। उस बच्चे का चेहरा पांच रुपए देख चमक उठा।
राजू स्कूल पहुंचने तक उसी बालक की स्थिति के बारे में सोचता रहा। राजू ने गणतंत्रता दिवस पर भाषण दिया और कहा "कभी तो ये अमीरी-गरीबी वाली दूरियां खत्म होंगी, कभी तो भुखमरी वाली स्थिति सुधरेगी और कभी तो सभी को शिक्षा का अधिकार मिलेगा तभी तो मेरा देश महान् बनेगा।"