मेनिका
मेनिका
ग्रीष्म ऋतु का मौसम रात का समय है। चांद का दूधिया प्रकाश पूरे जगत को गुंजार कर रही है। मंद मंद मंद्धिम होता और सहसा तेज प्रकाश पृथ्वी पर आती है। रात कि वह शीलत वायु तन को एक अलग विकार देकर आगे बह जाती है। लोग बैठे हुते सामने बड़ा सा मंच लगा हुआ कलाकारों के प्रदर्शन का इंतजार किया जा रहा है लोगों में उत्साह है और आंखों में तेज रोशनी चमक रही है। मंच के नेपथ्य से आवाज आती है
एक पुरूष मंच पर आता है।
अरे - सुन रहा है कोई
नेपथ्य से एक सुंदर स्त्री
सुशीला- हां सुन रहा हूं। आती हूं बस क्षण भर रूको।
पंकज- अरे देखो तो हमारे बीच आज कितने जन जुड़ें और ये कितने व्याकुल है। आओ इस कथा का आरम्भ किया जाये।
मंच पर एक स्त्री आती हां जी आज कथा ही एक ऐसे पुरूष की है कि कोई भी हो इस कथा को सुनने के लिए आ जाये मनुष्य ही क्या ये पेड पौधे में नदियां ये हवा ये और मैं शांत जल रही ज्वाला में सब इस कथा ही इंतजार कर रहे हैं।
सुशीला - ये कथा है एक महान राजा जिसके अभिमान और उसके घमंड के कारण वह हर बार हारा लेकिन उसकी संबल इतने जर्जर हो चुके थे कि जब उसने अभिमान छोडा तो दुनिया का पहला ऐसा क्षत्रिय हुआ जिसने केवल राजर्षि ही नही ब्रम्हर्षि की पदवी भी पायी
राजा विश्वामित्र
सुशीला
घनघोर भयांनक तम में कुटिल कनन में
है कौन बैठा जलाये दीप कठिन तपोवन मे
सांय सांय वयनाद छायी खुले जागति अंबर मे
खोलकर बांहे समेटे वन तम मुग्ध गगन मे
चिंता चिता बनकर तप पर है निछावर
जटिल तप में डूबा मानव शाद विछाकर
विश्वरथ - बैठा वह समासीन था तप में और तपन में चारों ओर कुंजो कि कातार छाया है। शांति फैली है चारों ओर वह जाप कर रहा है। तभी अचानक एक बाला आती जो कि एक अप्सरा है। जिसका नाम मेनिका है।
जिसे इंद्र ने भेजा था विश्वरथ कि तपस्या भंग करने के लिए।
वो एक वृक्ष के पास खड़ी हो अपने मादक नैनो से उस तपस्वी को बड़े ध्यान से दैख रही थी। अंदर ही अंदर मुस्का रही थी
मंद कदमों से उसके ओर बढ़ी और पायल झंकार पूरे कुंज को गुंजन से भर दे रही थी। छम छम कि आवाज सुनकर विश्वरथ आंखें खोला देखा
पंकज
जिधर जिधर देखते वन में नेत्रों को घुमाकर
वन पल्लव सी उडकर आती नयनों के समक्ष
अंग उसके है पराग पुष्पों से सुसाज्जित सुमधुर
सर पर है विरजे एक पुलकमय मुकुट मुकुल
नेत्र से पुलकित प्रेम बरसता है
ह्रदय में विस्मय बोध झलकता है
तथा वह गीत गान और नृत्य करने लगती है जिससे विश्वरथ कुछ मोहित होने लगता है। उसके अंतर में काम वीणा कि तार का झंकार उठता है और वह उस नारी से अतिप्रसन्न होता है।
धीरे धीरे उसके प्रेम में पड़ जाता है
सुशीला
तपोनिष्ठ ज्ञानी के तप की निष्ठा को भंग करके
खुद को गर्वीली कुशल कुटील अपराजित बता के
इंद्र को भेंट चढ़ा दिया एक भग्नताप की बुझती आग
हे मेनिका कैसा अनर्थ किया मिटाकर उसका तप ताप
मिट कर साधना भरती मय उन्माद
अंतर में ज्योत्सना सी प्रेम निनाद
काम देव के प्रहार से ज्यो ज्यो को कामुकता फैलाती उसका प्रहार चौगुना हो जाता जीससे विश्वरथ मेंनिका के प्रेम में व्याकुल हो जाता है फिर वह मेनिका से पूछता है।
हे स्त्री कौन हो और किस लिए वन में आयी हो।
मेनिका -मैने सुना था आपके बारे में कि आप बहुत महान है और अपनी साधना के लोग गीत गाते आपके जैसा प्रतापी और साहसी व्यक्ति पूरे विश्व में नहीं है। तभी मैंने निश्चय किया कि मैं आपके दर्शन करूगी
और मैंने मन ही मन आपको अपने हृदय में बसा लिया है।
यदि आप मुझे आप आश्रय दे तो मैं यही आपकी सेवा में रहना चाहती हूं।
मेनिका वहीं रूक जाती है और दोनों दोनों के भीतर प्रेम का संचार होता और कुछ दिन के बाद दोनों विवाह के बंधन में बंध जाते और और उन्हें एक पुत्री मेनिका कि प्राप्ती होती है।
पंकज
तुमने प्रभा की मणि कुट्टिमा को किया भंग
जलती हुती दीप की लौ में डाल दिया झंझा सा अडचन
बुझा कर तप कि ज्वाला का भंगिमा उन्माद जगाया
जलाये कैसे जोत जब दीपक तले निष्ठूर अंधेरा
दीप बुझे पर जल उठे प्रेम लहर
ज्वाल सा उद्वेलित यमा प्रीत पहर
इसी के साथ परदा गिरता है और मंच पर तेज तालियों का गुंजन होता है। लोगों मैं उत्साह और दूसरे दिन का इंतजार था।

