मधुबनी
मधुबनी
दुर्गा एक चित्रकार है , उसके खुद के चित्रों का एक अच्छा खासा संग्रह है और इसके साथ ही वो कक्षाएं भी लेती हैं ,।
बचपन से तो नही पर उसने दसवीं क्लास मैं यूँ हीं एक चित्रकला की प्रतोयोगिता में भाग लिया और किस्मत से उसकी पेंटिंग इतनी बुरी थी की टीचर भी बिना हँसे नही रह सके और उन्होंने कहा कि आखिर उसने भाग क्यों लिया ? फालतू मैं बेज्जती हो गईं न ! और बात सबके सामने और एक व्यंग कटाक्ष तीर के समान सीधा उसके दिल पर लगी और बस " ( इसलिए कहा कि किस्मत से )
ज्यादातर उसे मुग़ल चित्रकारी , दीवारों पर बने चित्र और मधुबनी चित्रकला अपनी तरफ आकर्षित करती है , वो हर प्रकार की चित्रकला बनाना जानती है पर वो इनमे खुद को निपुण नही समझती, और हर वक्त कुछ नया सीखने के लिए प्रेरित रहती है , अपने शहर में होने वाली हर चित्रकला की कार्यशाला मैं भाग लेती है ।और जैसा हमे पता चला की उसे मधुबनी पेंटिंग पसंद हैं तो हाल ही आयोजित हुई कार्यशाला में एक प्रतियोगिता हुई और दुर्गा ने दूसरा स्थान पाया ,जिसमे उसे बिहार के मधुबनी जाने का मौका दिया गया 5 सदस्या टीम के साथ , ( वो बहोत ज्यादा खुश थी क्योंकि वो खुद वहां जाना चाहती थी पर उसे मौका ही नही मिल पा रहा था । )
तीसरे दिन वो भोर सुबह उन 5 सदस्या टीम के साथ रवाना होती है , करीब 3 बजे तक वो सीधे मधुबनी पेंटिंग्स के गढ़ , जितवारपुर पहुँचते हैं ( बिहार राज्य के अतरिया जिला मैं स्तिथि एक गांव ) ,
गांव तो गांव जैसा ही होता है , खेत है , पक्के कच्चे घर दोनों ही समान रूप से हैं , जीप से उत्तरते ही गांव के छोटे छोटे बच्चो की टोली भी आ गईं हाँ ! पर हर घर के बहार मनमोहिनी पेंटिंग इस गांव को हर गांव से अलग बना रही हैं , और जैसा आप जानते हैं हमारे देश का रिवाज , कहीं भी चले जाये आम जन सत्कारी मैं कमी नही छोड़ते और पास के ही कई घरों से उन्हें न्योते तक आ जाते हैं ।
चूँकि उनकी ट्रिप सिर्फ 3 दिन की हैं ,जिसमे से इस गांव में वो 1 और आधे दिन के लिए हैं ,फिर ये यहाँ से सीधे बिहार के समस्तीपुर मैं लगी एक प्रदर्शनी मैं भी समिलित होंगे ।
तो वो लोग एक घर में ही शरण लेते हैं , छोटा सा पक्का मकान जो नया ही बना है इसलिए काफी खली है , धीरे धीरे सामान लाये जा रहे थे , पर इनके आते ही ये काम रोक दिया गया और चाय पानी का प्रबंध हुआ , शाम के 5 बजते ही ये लोग गांव की सबसे पुराने कलाकार शिलुदेवी के पास गए , उनका घर पक्का नही था पर हर चीज़ सलीके से थी ।
सबके आने पर अम्मा जिनका एक ही बेटा है जो बाहर कमाने गया है , पति की मौत हो गयी तो अम्मा अकेली ही है , पर भी मना करने के बावजूद बहोत ही स्वादिस्ट निम्बू पानी बना कर लाती हैं और बड़े मनोभाव से देती हैं " दुर्गा देखती है कि इस छोटे से कुटिया सामान घर में कितने सुन्दर चित्र रखें हैं और कितने सलीके से , अम्मा अपनी ही भाषा में बताती हैं कि उनके पति भी उनके साथ चित्रकारी का काम करते थे , और यहाँ के मुख्यमंत्री से उन्हें सम्मान भी प्राप्त है , वो बहोत कुछ साझा करती हैं । कुछ देर की भेंठ के बाद वो सब वहां से निकलने लगते हैं पर दूर्गा को न जाने क्या सूझता है ! कहती है कि मैं यहीं रुकुंगी अम्मा के पास , और वो वहीँ रूकती है , रात होते होते अम्मा खाने की तैयारी पर लग जाती हैं , दुर्गा भी उनका हाथ बांटती हैं पर अम्मा उसे साफ मना कर देती हैं कि नही तुम वहां बैठो , खाना मैं ही बनाउंगी !
खाना बनने के दौरान वो अम्मा से कहती है कि सबने गाये , भेस या बकरी पाल रखी हैं , क्या आपने?
बो कुछ और कहती की अम्मा मुस्कुराते हुए कहती हैं कि " बचपन में हमारे पास भी थी ,पर फिर बेचनी पड़ी बड़े रोये उस दिन पर फिर बाद मैं बकरी रखी ही नही ,
कितनी प्यारी होती हैं और उनके बच्चे ,
अम्मा तो बचपन की स्मृति मैं चली जाती हैं और दुर्गा उन्हें किसी बच्चे के सामान सुनी जा रही थी !
तभी ,वो देखती है कि अम्मा मालपुआ बना लाई हैं , और हंसती हुई उसके सामने रख देती हैं , वो कहती है अम्मा आप भी लीजिये तो वो कहती है कि न ! आज व्रत है हमार् एक वक्त का खान पान हो गया , जे तो तुम्हारे लाने !
अम्मा के इस निर्मल स्वाभाव पर दुर्गा मुग्ध हो जाती है ,
वो चहकते हुए कहती है की ऐसा भोजन तो उसने कभी नही खाया !
पर अचनाक अम्मा की आँखों को वो भीगा देखती हैं ,एक पल को तो वो कुछ समझ नही पाती फिर पूछती है अम्मा ! याद आ गईं क्या ?
अम्मा मुस्कुराती हुई कहती हैं , एक ही बच्चा है और वो भी न कभी फ़ोन , न कुछ ! पूरा दिन अकेला भी इंसान क्या करे , पूरा गांव है पर सबका अपना परिवार है , बस कोई मिलने आ जाता है तो अच्छा लगता है , सबसे कहते हैं कि कोई बेटा से बात ही करवा दे पर पता भी नही है कि कहाँ है वो।
ये बात सुन कर दुर्गा उनसे कहती है की यहाँ की मुखिया जी से नही कहा आपने तो उन्होंने कहा कि खूब ! पर हर बार ही टालमटोल ।वो उन्हें विश्वास दिलाती है कि वो कल सुबह होते ही उसके बारे में पता करेगी , आपकी आपके बेटे से जरूर बात होगी !
पर वो सोचती है कि आखिर वो कैसे उसका पता लगाएगी , सुबह होते ही अम्मा उसके लिए चाय बनाती हैं और वो अपने कहे अनुसार उनके बेटे के बारे में पता लगाना शुरू कर देती हैं पर अचंभित भी है कि गांव से कोई भी अम्मा जी की मदद के लिए आगे नही आया , किसी को तो कुछ पता होगा और वो कुछ घरों में जाकर कुछ लोगो से पूछती है और जो उसे पता चलता है उसे सुन कर तो उसके होश उड़ जाते हैं।
एक परिवार बताता है कि अम्मा की शादी के करीब 15 साल बाद उनको एक बच्चा हुआ था पर किसी कारणवश उसका देहांत हो गया , 10 साल रही होगा उमर जब बच्चे की और उसकी मौत के बाद अम्मा को हार्ट अटैक आया , बड़ी मुश्किल से जान बची पर इस हादसे ने अम्मा को खूब मानसिक यातना दी और कुछ सालो बाद न जाने उनको आभास होने लगा को उनका बच्चा जिन्दा है पर इनके पति ने इन्हें एक बार कह दिया की वो शहर गया है पढाई के लिए , कई दिनों तक तो किसी ने बेटा बन कर बात की , और ये झूठ कुछ हद तक अच्छा भी रहा की अब अम्मा बार बार बच्चे को लेकर नही पूछती पर हृदय घात से डर बाबा उन्हें जबर्दस्ती सच भी नही बताते ! पर सच कब तक छुपा रहे, बस एक दिन बाबा की भी मौत हो गईं पर अम्मा अपने बच्चे के ख्याल से किसी सदमे में नही गयी और रोज उस बच्चे की खैर और घर आने की राह देखती हैं जो है ही नही ! अब हम भी कुछ नही बताते , जितना हो सके अम्मा से मिलते जुलते हैं पर अपना परिवार तो अपना ही होता है न ।
दुर्गा ये सब सुनकर सहम जाती है कि क्या अब शेष जीवन अम्मा इस झूठ में रहे पर ये सही है ?
पर वो क्या करे !
वो सुभम ( पति ) से बात करती है और इस स्थिति के बारे में ,उसे बताती है वो बहुत भावुक हो जाती है और कहती है कि क्या हम उनके लिए कुछ नही कर सकते ! वो बहुत अच्छी हैंसुभम उसे चुप कराते हुए कहता है कि बिलकुल , पर क्या तुम उन्हें सच बताओगी !
"क्यों न एक डॉक्टर से बात करें , क्योंकि अम्मा को सच बताने पर उनका कैसा रिएक्शन हो या वो समझ पाए या न और तुमने बताया उन्हें एक बार हार्ट अटैक भी आ चुका है !"
वो अपने जानकार डॉक्टर को फ़ोन लगता है , डॉक्टर उसे कहते हैं कि ये उम्र नाज़ुक है और हृदयाघात का खतरा है उन्हें कुछ भी सच बताना ठीक नही पर धीरे धीरे उन्हें एहसास दिलाया जा सकता है , उन्हें उनकी रूचि के काम या प्यार भरे माहौल दिया जा सकता है , जहाँ उन्हें महसूस हो की उनका घर है।
ये सब वो दुर्गा को बताता है और दुर्गा कहती है कि मैं समझ गईं की क्या कर सकती हूँ ( वो उसे बाद मैं बात करने की कह फ़ोन रख देती हैं )
वो अपनी टीम को अवगत करवाती है कि आगे का खर्चा स्वम का वो खुद उठायेगी और वो कुछ दिनों बाद यहाँ से आएगी , टीम की एक सदस्य मृणाल जब उससे वजह पूछता है तो वो सब बताती है , और मृणाल भी उसके साथ रुकता है ,
मृणाल कहता है ," मुझे लगता है क्यों न अम्मा जी जो आज भी चित्र कला करती हैं , वो दुसरो को सिखाएं भी , बच्चे और लोग आएंगे तो उनका मन लगा रहेगा ,आखिर तुमने बताया कि उन्हें अब भी कितनी रूचि है इन सब मैं !"
फिर वो दोनों मिल कर गांव के लोगो से भी अपना आईडिया साझा करते हैं और अम्मा को ये बात बताई जाती है ,
अम्मा भी कहती हैं कि ठीक है , और इस तरह अम्मा के अनुकूल वो एक छोटी सी कार्यशाला खोलते हैं , जहाँ कुछ ही दिनों में अम्मा से सिखने के लिए लोग और बच्चे आने लगते हैं और वाकई में अम्मा निपुण हैं ,
अब मृणाल और दुर्गा के जाने की घड़ी भी आ जाती हैतभी वो उन्हें एक छोटा सा बकरी का बच्चा देती हैं और कहती हैं अम्मा ! "परिवार तो कोई भी बन सकता है न ! इसे भी आपकी जरुरत है ! "
और दुर्गा उनके गले लग कर कहती है की "आप बहोत अच्छी हैं , और मुझे अपनी बेटी ही समझिए , आपसे मिलने आती रहूंगी , "
मृणाल उन्हें फ़ोन भी देता है जिसमे वो उन्हें समझाता है कि किसी का फ़ोन आने पर कैसे उठाना है ,।अम्मा कहती है , सबने चित्रकारी देखी और किसी ने माँ देख ली , मेरी बेटी ही है तू बेटा !
ऐसा लग रहा था मानो उसकी विदाई हो रही है , और पूरा गांव इस अनोखे बंधन की नर्माहट मैं आनंदित हो रहा है ।।
